Tuesday, January 26, 2016

10>मंत्र-तंत्र केशुभ समय++दुरूपयोग हानि++कई तरह यंत्रों++ डाकिनी++ दुःख दारिद्रय निवारक64 योगिनी तंत्र++चंडिका प्रयोग:-

10>आ =Post=10>***मंत्र-तंत्र***( 1 to 8 )

1---------जानें मंत्र-तंत्र के राजमंत्र साधना में शुभ समय का रखें ध्यान
2-------- तन्त्र समाधान देता है.उलझाता नहीं इसका दुरूपयोग हानि देता है फायदा नही .
3---------हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो में कई तरह के यंत्रों के बारे में बताया गया है
4--------डाकिनी :: एक प्रचंड शक्ति
5--------दुःख दारिद्रय निवारक चमत्कारी उपाय ==64 योगिनी तंत्र:-
6--------चंडिका प्रयोग
7---------तंत्र, मंत्र, यंत्र और योग साधना का लाभ..
8---------काले जादू और बुरी नजर से बचाती है ये साधारण लगने वाली चीजे
9----------गुंजा=श्वेत कुच, लाल कुच


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তন্ত্র = মন্ত্র

1>जानें मंत्र-तंत्र के राजमंत्र साधना में शुभ समय का रखें ध्यान

मंत्र शब्द का अर्थ असीमित है। वैदिक ऋचाओं के प्रत्येक छन्द भी मंत्र कहे जाते हैं। तथा देवी-देवताओं की स्तुतियों व यज्ञ हवन में निश्चित किए गए शब्द समूहों को भी मंत्र कहा जाता है। तंत्र शास्त्र में मंत्र का अर्थ भिन्न है। तंत्र शास्त्रानुसार मंत्र उसे कहते हैं जो शब्द पद या पद समूह जिस देवता या शक्ति को प्रकट करता है वह उस देवता या शक्ति का मंत्र कहा जाता है।

विद्वानों द्वारा मंत्र की परिभाषाएँ निम्न प्रकार भी की गई हैं।

1. धर्म, कर्म और मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रेरणा देने वाली शक्ति को मंत्र कहते हैं।

2. देवता के सूक्ष्म शरीर को या इष्टदेव की कृपा को मंत्र कहते हैं। (तंत्रानुसार)

3. दिव्य-शक्तियों की कृपा को प्राप्त करने में उपयोगी शब्द शक्ति को मंत्र कहते हैं।

4. अदृश्य गुप्त शक्ति को जागृत करके अपने अनुकूल बनाने वाली विधा को मंत्र कहते हैं। (तंत्रानुसार)

5. इस प्रकार गुप्त शक्ति को विकसित करने वाली विधा को मंत्र कहते हैं।

मंत्र साधना के समय

मंत्र साधना के लिए निम्नलिखित विशेष समय, माह, तिथि एवं नक्षत्र का ध्यान रखना चाहिए।

1. उत्तम माह - साधना हेतु कार्तिक, अश्विन, वैशाख माघ, मार्गशीर्ष, फाल्गुन एवं श्रावण मास उत्तम होता है।

2. उत्तम तिथि - मंत्र जाप हेतु पूर्णिमा़, पंचमी, द्वितीया, सप्तमी, दशमी एवं ‍त्रयोदशी तिथि उत्तम होती है।

3. उत्तम पक्ष - शुक्ल पक्ष में शुभ चंद्र व शुभ दिन देखकर मंत्र जाप करना चाहिए।

4. शुभ दिन - रविवार, शुक्रवार, बुधवार एवं गुरुवार मंत्र साधना के लिए उत्तम होते हैं।

5. उत्तम नक्षत्र - पुनर्वसु, हस्त, तीनों उत्तरा, श्रवण रेवती, अनुराधा एवं रोहिणी ‍नक्षत्र मंत्र सिद्धि हेतु उत्तम होते हैं।

मंत्र साधना में साधन आसन एवं माला की विशेषताएँ

आसन - मंत्र जाप के समय कुशासन, मृग चर्म, बाघम्बर और ऊन का बना आसन उत्तम होता है।

माला - रुद्राक्ष, जयन्तीफल, तुलसी, स्फटिक, हाथीदाँत, लाल मूँगा, चंदन एवं कमल की माला से जाप सिद्ध होते हैं। रुद्राक्ष की माला सर्वश्रेष्ठ होती है।
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2> तन्त्र समाधान देता है.उलझाता नहीं इसका दुरूपयोग हानि देता है फायदा नही ..

प्रयोग मात्र विश्वास पर आधारित.....
सरल लेकिन शक्तिशाली गोपनीय मंत्र

तंत्र विद्या गोपनीय और रहस्यमयी होती है। हर किसी को यह फलीभूत भी नहीं होती। तामसिक प्रवृत्तियों वाले व्यक्तियों को इससे दूर रहने की ही सलाह दी गई है। जो लोग सात्विकता के साथ इन्हें आजमाते हैं उन्हें यह अवश्य लाभ प्रदान करती है। कुछ मंत्र स्वयं की रक्षा के लिए वर्णित हैं, तो कुछ मंत्र आकर्षण शक्ति बढ़ाने के लिए। प्रस्तुत है कुछ चमत्कारी अचूक मंत्र-

शक्तिशाली आत्मरक्षा मंत्र

'ॐ क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं फट्'

प्रयोग विधि- उपरोक्त मंत्र का नित्य 500 बार जप करने से साधक को समस्त सुख प्राप्त होते हैं और आत्मभय दूर होकर व्यक्ति ‍'निर्भय' हो जाता है।

स्त्री सौभाग्यवर्धक मंत्र

ॐ ह्रीं कपालिनि कुल कुण्डलिनि मे सिद्धि देहि भाग्यं देहि देहि स्वाहा।।

प्रयोग विधि- यह मंत्र कृष्ण पक्ष की चौदस से प्रारंभ करके अगले महीने की कृष्ण पक्ष की तेरस तक- यानी एक मास तक नित्य एक हजार एक बार जाप करने से स्त्रियों की समस्त आधि-व्याधियां दूर होती हैं और स्त्री पति, पुत्र, परिवार आदि की प्रिय हो जाती है।

चोर भयहरण मंत्र

ॐ करालिनि स्वाहा ॐ कपालिनि स्वाहा चोर बंधय ठ: ठ: ठ:।।

प्रयोग विधि- यह मंत्र 108 बार जाप करने से सिद्धि होती है। प्रयोग के समय 7 बार मंत्र पढ़कर थोड़ी सी मिट्टी द्वार पर की भूमि में गाड़ दे तो भवन में चोर घुसने का भय नहीं रहता।।

धन सहित चोर पकड़ने का मंत्र

ॐ ध्रूमाजक हुंकार स्फटिका दह दह ॐ

प्रयोग विधि- मंगलवार या रविवार क दिन कर्मटिका वृक्ष के नीचे मृगासन पर बैठकर गोधूली की लकड़ी जलाएं। सरसों तथा गुग्गल से उपरोक्त मंत्र पढ़ते हुए हवन करने से चोरी किए धन सहित चोर वापस आ जाता है।यह साधको की मान्यता है ..


वशीकरण मंत्र


सबसे पहला मंत्र मोहन और सम्मोहन के सबसे बड़े देवता अर्थात् श्रीकृष्ण का है. मंत्र है-

ॐ क्लीं कृष्णाय नमः

अगर आप किसी व्यक्ति को ध्यान में रखकर और सकंल्प के साथ कहते हैं कि - हे प्रभु! आपकी कृपा से यह व्यक्ति मेरे वश में हो जाये क्योंकि मुझे स्वयं को सही साबित करने का और कोई साधन नही है. ऐसा संकल्प लेकर भगवान श्रीकृष्ण के संमुख कहेंगे तो निश्चित ही आपको लाभ मिलेगा. जिस किसी व्यक्ति को सम्मोहित करना चाहते हैं, अपनी तरफ़ करना चाहते हैं हो जायेगा.

दूसरा मंत्र भगवान नारायण का है-

ॐ नमो नारायणाय सर्व लोकन मम वश्य कुरु कुरु स्वहा.

अर्थात् हे प्रभु नारायण आपकी कृपा से सर्वलोक को वशीकरण करने की शक्ति मुझमे आ जाये. (सर्वलोक की जगह उस व्यक्ति का भी नाम लिया जा सकता है जिसे सम्मोहित करना हो) वह अवश्य आपके प्रति आकर्षित होगा.
तीसरा मंत्र दुर्गासप्तशती से है-

ज्ञानिनामपि चेतान्शी देवी भगवति हि सा

बलादाsकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्क्षति.

इस अत्यधिक चमत्कारिक मंत्र का 40 दिन तक नियमित रुप से 108 बार जाप करना है. यह मंत्र इतना प्रभावशाली है कि इसका जाप होते ही कितना भी ज्ञानी, विद्वान व्यक्ति क्यों न हो आपके नियंत्रण में आ जायेगा.


चौथा भी एक प्रयोग ही है. इसके लिये -

कही भी जाते समय मोर की कलगी पीले रेशमी वस्त्र में बाँधकर अपने साथ रख लें.

इससे सम्मोहन और आकर्षण की शक्ति बढ़ती है. अथवा

श्वेत अपामार्ग की जड़ को घिसकर माथे पर तिलक लगायें.

इससे भी आपके अन्दर जो सम्मोहन की शक्ति है, उसमे निरन्तर वृद्धि होती है.

पांचवा एक प्रयोग है जिसको करने से केवल एक व्यक्ति ही नही पूरी-पूरी सभा को सम्मोहित किया जा सकता है. इसके लिये आपको करना यह है कि-

तुलसी के चूर्ण में सहदेई के रस को मिलाकर माथे पर तिलक करें.

यदि ऐसा तिलक करके आप किसी सभा अथवा पार्टी में जाते हैं तो सभी आपसे इम्प्रेस रहेंगे. यदि आप किसी एक व्यक्ति को ही आकर्षित करना चाहते हैं तो भी उसके संमुख यही टीका लगाकर जायें. वह अवश्य आपके नियंत्रण में आ जायेगा.
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3>हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो में कई तरह के यंत्रों के बारे में बताया गया है

हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो में कई तरह के यंत्रों के बारे में बताया गया है जैसे हनुमान प्रश्नावली चक्र, नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र, राम श्लोकी प्रश्नावली, श्रीगणेश प्रश्नावली चक्र आदि। इन यंत्रों की सहायता से हम अपने मन में उठ रहे सवाल, हमारे जीवन में आने वाली कठिनाइयों आदि का समाधान पा सकते है। इन्ही में से एक श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र के बारे में आज आपको बता रहे है।

हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य माना गया है अर्थात सभी मांगलिक कार्यों में सबसे पहले श्रीगणेश की ही पूजा की जाती है। श्रीगणेश की पूजा के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र के माध्यम से आप अपने जीवन की परेशानियों व सवालों का हल आसानी से पा सकते हैं। यह बहुत ही चमत्कारी यंत्र है।

उपयोग विधि

जिसे भी अपने सवालों का जवाब या परेशानियों का हल जानना है वो पहले पांच बार ऊँ नम: शिवाय: मंत्र का जप करने के बाद 11 बार ऊँ गं गणपतयै नम: मंत्र का जप करें। इसके बाद आंखें बंद करके अपना सवाल पूछें और भगवान श्रीगणेश का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक(खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक के फलादेश को ही अपने अपने प्रश्न का उत्तर समझें।

1- आप जब भी समय मिले राम नाम का जप करें। आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।
2- आप जो कार्य करना चाह रहे हैं, उसमें हानि होने की संभावना है। कोई दूसरा कार्य करने के बारे में विचार           करें। गाय को चारा खिलाएं।
3- आपकी चिंता दूर होने का समय आ गया है। कष्ट मिटेंगे और सफलता मिलेगी। आप रोज पीपल की पूजा            करें।
4- आपको लाभ प्राप्त होगा। परिवार में वृद्धि होगी। सुख संपत्ति प्राप्त होने के योग भी बन रहे हैं। आप कुल              देवता की पूजा करें।
5- आप शनिदेव की आराधना करें। व्यापारिक यात्रा पर जाना पड़े तो घबराएं नहीं। लाभ ही होगा।
6- रोज सुबह भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। महीने के अंत तक आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।
7- पैसों की तंगी शीघ्र ही दूर होगी। परिवार में वृद्धि होगी। स्त्री से धन प्राप्त होगा।
8- आपको धन और संतान दोनों की प्राप्ति के योग बन रहे हैं। शनिवार को शनिदेव की पूजा करने से आपको           लाभ होगा।
9- आपकी ग्रह दिशा अनुकूल चल रही है। जो वस्तु आपसे दूर चली गई है वह पुन: प्राप्त होगी।
10- शीघ्र ही आपको कोई प्रसन्नता का समाचार मिलने वाला है। आपकी मनोकामना भी पूरी होगी। प्रतिदिन              पूजन करें।
11- यदि आपको व्यापार में हानि हो रही है तो कोई दूसरा व्यापार करें। पीपल पर रोज जल चढ़ाएं। सफलता             मिलेगी।
12- राज्य की ओर से लाभ मिलेगा। पूर्व दिशा आपके लिए शुभ है। इस दिशा में यात्रा का योग बन सकता है।              मान-सम्मान प्राप्त होगा।
13- कुछ ही दिनों बाद आपका श्रेष्ठ समय आने वाला है। कपड़े का व्यवसाय करेंगे तो बेहतर रहेगा। सब कुछ            अनुकूल रहेगा।
14- जो इच्छा आपके मन में है वह पूरी होगी। राज्य की ओर से लाभ प्राप्ति का योग बन रहा है। मित्र या भाई से          मिलाप होगा।
15- आपके सपने में स्वयं को गांव जाता देंखे तो शुभ समाचार मिलेगा। पुत्र से लाभ मिलेगा। धन प्राप्ति के योग            भी बन रहे हैं।
16- आप देवी मां पूजा करें। मां ही सपने में आकर आपका मार्गदर्शन करेंगी। सफलता मिलेगी।
17- आपको अच्छा समय आ गया है। चिंता दूर होगी। धन एवं सुख प्राप्त होगा।
18- यात्रा पर जा सकते हैं। यात्रा मंगल, सुखद व लाभकारी रहेगी। कुलदेवी का पूजन करें।
19- आपके समस्या दूर होने में अभी करीब डेढ़ साल का समय शेष है। जो कार्य करें माता-पिता से पूछकर करें।         कुल देवता व ब्राह्मण की सेवा करें।
20- शनिवार को शनिदेव का पूजन करें। गुम हुई वस्तु मिल जाएगी। धन संबंधी समस्या भी दूर हो जाएगी।
21- आप जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता मिलेगी। विदेश यात्रा के योग भी बन रहे हैं। आप श्रीगणेश का पूजन         करें।
22- यदि आपके घर में क्लेश रहता है तो रोज भगवान की पूजा करें तथा माता-पिता की सेवा करें। आपको शांति        का अनुभव होगा।
23- आपकी समस्याएं शीघ्र ही दूर होंगी। आप सिर्फ आपके काम में मन लगाएं और भगवान शंकर की पूजा              करें।
24- आपके ग्रह अनुकूल नहीं है इसलिए आप रोज नवग्रहों की पूजा करें। इससे आपकी समस्याएं कम होंगी              और लाभ मिलेगा।
25- पैसों की तंगी के कारण आपके घर में क्लेश हो रहा है। कुछ दिनों बाद आपकी यह समस्या दूर जाएगी।              आप मां लक्ष्मी का पूजन रोज करें।
26- यदि आपके मन में नकारात्मक विचार आ रहे हैं तो उनका त्याग करें और घर में भगवान सत्यनारायण का            कथा करवाएं। लाभ मिलेगा।
27- आप जो कार्य इस समय कर रहे हैं वह आपके लिए बेहतर नहीं है इसलिए किसी दूसरे कार्य के बारे में                विचार करें। कुलदेवता का पूजन करें।
28- आप पीपल के वृक्ष की पूजा करें व दीपक लगाएं। आपके घर में तनाव नहीं होगा और धन लाभ भी होगा।
29- आप प्रतिदिन भगवान विष्णु, शंकर व ब्रह्मा की पूजा करें। इससे आपको मनचाही सफलता मिलेगी और घर        में सुख-शांति रहेगी।
30- रविवार का व्रत एवं सूर्य पूजा करने से लाभ मिलेगा। व्यापार या नौकरी में थोड़ी सावधानी बरतें। आपको              सफलता मिलेगी।
31- आपको व्यापार में लाभ होगा। घर में खुशहाली का माहौल रहेगा और सबकुछ भी ठीक रहेगा। आप छोटे             बच्चों को मिठाई बांटें।
32- आप व्यर्थ की चिंता कर रहे हैं। सब कुछ ठीक हो रहा है। आपकी चिंता दूर होगी। गाय को चारा खिलाएं।
33- माता-पिता की सेवा करें, ब्राह्मण को भोजन कराएं व भगवान श्रीराम की पूजा करें। आपकी हर अभिलाषा            पूरी होगी।
34- मनोकामनाएं पूरी होंगी। धन-धान्य एवं परिवार में वृद्धि होगी। कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं।
35- परिस्थितियां आपके अनुकूल नहीं है। जो भी करें सोच-समझ कर और अपने बुजुर्गो की राय लेकर ही करें।          आप भगवान दत्तात्रेय का पूजन करें।
36- आप रोज भगवान श्रीगणेश को दुर्वा चढ़ाएं और पूजन करें। आपकी हर मुश्किल दूर हो जाएंगी। धैर्य बनाएं           रखें।
37- आप जो कार्य कर रहे हैं वह जारी रखें। आगे जाकर आपको इसी में लाभ प्राप्त होगा। भगवान विष्णु का              पूजन करें।
38- लगातार धन हानि से चिंता हो रही है तो घबराइए मत। कुछ ही दिनों में आपके लिए अनुकूल समय आने              वाला है। मंगलवार को हनुमानजी को सिंदूर अर्पित करें।
39- आप भगवान सत्यनारायण की कथा करवाएं तभी आपके कष्टों का निवारण संभव है। आपको सफलता भी          मिलेगी।
40- आपके लिए हनुमानजी का पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा। खेती और व्यापार में लाभ होगा तथा हर क्षेत्र में सफलता        मिलेगी।
41- आपको धन की प्राप्ति होगी। कुटुंब में वृद्धि होगी एवं चिंताएं दूर होंगी। कुलदेवी का पूजन करें।
42- आपको शीघ्र सफलता मिलने वाली है। माता-पिता व मित्रों का सहयोग मिलेगा। खर्च कम करें और गरीबों            का दान करें।
43- रुका हुआ कार्य पूरा होगा। धन संबंधी समस्याएं दूर होंगी। मित्रों का सहयोग मिलेगा। सोच-समझकर                  फैसला लें। श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं।
44- धार्मिक कार्यों में मन लगाएं तथा प्रतिदिन पूजा करें। इससे आपको लाभ होगा और बिगड़ते काम बन                  जाएंगे।
45- धैर्य बनाएं रखें। बेकार की चिंता में समय न गवाएं। आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। ईश्वर का               चिंतन करें।
46- धार्मिक यात्रा पर जाना पड़ सकता है। इसमें लाभ मिलने की संभावना है। रोज गायत्री मंत्र का जप करें।
47- प्रतिदिन सूर्य को अध्र्य दें और पूजन करें। आपको शत्रुओं का भय नहीं सताएगा। आपकी मनोकामना पूरी            होगी।
48- आप जो कार्य कर रहे हैं वही करते रहें। पुराने मित्रों से मुलाकात होगी जो आपके लिए फायदेमंद रहेगी।               पीपल को रोज जल चढ़ाएं।
49- अगर आपकी समस्या आर्थिक है तो आप रोज श्रीसूक्त का पाठ करें और लक्ष्मीजी का पूजा करें। आपकी             समस्या दूर होगी।
50- आपका हक आपको जरुर मिलेगा। आप घबराएं नहीं बस मन लगाकर अपना काम करें। रोज पूजा अवश्य         करें।
51- आप जो व्यापार करना चाहते हैं उसी में सफलता मिलेगी। पैसों के लिए कोई गलत कार्य न करें। आप रोज          जरुरतमंद लोगों को दान-पुण्य करें।
52- एक महीने के अंदर ही आपकी मुसीबतें कम हो जाएंगी और सफलता मिलने लगेगी। आप कन्याओं को              भोजन कराएं।
53- यदि आप विदेश जाने के बारे में सोच रहे हैं तो अवश्य जाएं। इसी में आपको सफलता मिलेगी। आप                   श्रीगणेश का आराधना करें।
54- आप जो भी कार्य करें किसी से पुछ कर करें अन्यथा हानि हो सकती है। विपरीत परिस्थिति से घबराएं नहीं।           सफलता अवश्य मिलेगी।
55- आप मंदिर में रोज दीपक जलाएं, इससे आपको लाभ मिलेगा और मनोकामना पूरी होगी।
56- परिजनों की बीमारी के कारण चिंतित हैं तो रोज महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। कुछ ही दिनों में आपकी यह        समस्या दूर हो जाएगी।
57- आपके लिए समय अनुकूल नहीं है। अपने कार्य पर ध्यान दें। प्रमोशन के लिए रोज गाय को रोटी खिलाएं।
58- आपके भाग्य में धन-संपत्ति आदि सभी सुविधाएं हैं। थोड़ा धैर्य रखें व भगवान में आस्था रखकर लक्ष्मीजी को         नारियल चढ़ाएं।
59- जो आप सोच रहे हैं वह काम जरुर पूरा होगा लेकिन इसमें किसी का सहयोग लेना पड़ सकता है। आप              शनिदेव की उपासना करें।
60- आप अपने परिजनों से मनमुटाव न रखें तो ही आपको सफलता मिलेगी। रोज हनुमानजी के मंदिर में                  चौमुखी दीपक लगाएं।
61- यदि आप अपने करियर को लेकर चिंतित हैं तो श्रीगणेश की पूजा करने से आपको लाभ मिलेगा।
62- आप रोज शिवजी के मंदिर में जाकर एक लोटा जल चढ़ाएं और दीपक लगाएं। आपके रुके हुए काम हो               जाएंगे।
63- आप जिस कार्य के बारे में जानना चाहते हैं वह शुभ नहीं है उसके बारे में सोचना बंद कर दें। नवग्रह की पूजा        करने से आपको सफलता मिलेगी।
64- आप रोज आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं। आपकी हर समस्या का निदान स्वत: ही हो                जाएगा।

1 = 2 = 3 = 4 = 5 = 6 = 7 = 8


16= 15= 14 = 13 = 12 = 11 =10 = 9


17 =18 = 19 = 20 = 21 = 22 =23 = 24


32 =31 = 30 = 29 = 28 = 27 =26 = 25


33 =34 = 35 = 36 = 37 = 38 =39 = 40


48 =47 = 46 = 45 = 44 = 43 =42 = 41


49 =50 = 51 = 52 = 53 = 54 =55 = 56


64 =63 = 62 =61 = 60 = 59 =58 = 57
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4>डाकिनी :: एक प्रचंड शक्ति

तंत्र जगत में डाकिनी का नाम अति प्रचलित है |सामान्यजन भी इस नाम से परिचित हैं |डाकिनी नाम आते ही एक उग्र स्वरुप की भावना मष्तिष्क में उत्पन्न होती है |अथवा एक भयानक स्वरुप और गुण की महिला की आकृति उभरती है जो पैशाचिक गुण रखती है |वास्तव में यह ऊर्जा का एक अति उग्र स्वरुप है अपने सभी रूपों में |डाकिनी की कई परिभाषाएं हैं |डाकिनी का अर्थ है --ऐसी शक्ति जो "डाक ले जाए "|यह ध्यान रखले लायक है की प्राचीनकाल से और आज भी पूर्व के देहातों में डाक ले जाने का अर्थ है -चेतना का किसी भाव की आंधी में पड़कर चकराने लगना और सोचने समझने की क्षमता का लुप्त हो जाना |यह शक्ति मूलाधार के शिवलिंग का भी आधार है |
तंत्र में काली को भी डाकिनी कहा जाता है यद्यपि डाकिनी काली की शक्ति के अंतर्गत आने वाली एक अति उग्र शक्ति है |यह काली की उग्रता का प्रतिनिधित्व करती हैं और इनका स्थान मूलाधार के ठीक बीच में माना जाता है |डाकिनी पृथ्वी की सतह पर क्रियाशील शक्तियों में से सर्वाधिक शक्तिशाली एक शक्ति है जबकि काली ब्रह्माण्ड की सर्वाधिक शक्तिशाली शक्तियों में से एक |डाकिनी ,काली का पृथ्वी की सतह पर एक स्वरुप है जो उनकी समस्त उग्रता के साथ उपस्थित है |यह प्रकृति की सर्वाधिक उग्र शक्ति है |यह समस्त विध्वंश और विनाश की मूल हैं ,|इन्ही के कारण काली को अति उग्र देवी कहा जाता है जबकि काली सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति की भी मूल देवी हैं |

जिस प्रकार भैरव एक उग्र शक्ति हैं उसी तरह समान ऊर्जा स्त्री रूप में डाकिनी के पास है |यह कहा जाए की यह और अधिक उग्र है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी |इसलिए इसकी साधना की हिम्मत कोई कोई ही साधक जूता पाता है और गलतियों पर अथवा शक्ति सँभालने की क्षमता न होने पर ख़तरा हो जाता है |वैसे भी यह खुद को जल्दी किसी के नियंत्रण में नहीं आने देती और तीब्र प्रतिक्रिया करती है |तंत्र में डाकिनी की साधना स्वतंत्र रूप से भी होती है और माना जाता है की यदि डाकिनी सिद्ध हो जाए तो काली की सिद्धि आसान हो जाती है और काली की सिद्धि अर्थात मूलाधार की सिद्धि हो जाए तो अन्य चक्र अथवा अन्य देवी-देवता आसानी से सिद्ध हो सकते हैं कम प्रयासों में |इस प्रकार सर्वाधिक कठिन डाकिनी नामक काली की शक्ति की सिद्धि ही है |

डाकिनी नामक देवी की साधना अघोरपंथी तांत्रिकों की प्रसिद्द साधना है |हमारे अन्दर क्रूरता ,क्रोध ,अतिशय हिंसात्मक भाव ,नख और बाल आदि की उत्पत्ति डाकिनी की शक्ति से अर्थात तरंगों से होती है |डाकिनी की सिद्धि पर व्यक्ति में भूत-भविष्य-वर्त्तमान जानने की क्षमता आ जाती है ,किसी को नियंत्रित करने की क्षमता ,वशीभूत करने की क्षमता आ जाती है |यह साधक की रक्षा करती है और मार्गदर्शन भी |यह डाकिनी साधक के सामने लगभग काली के ही रूप में अवतरित होती है और स्वरुप उग्र हो सकता है |इस रूप में माधुर्य-कोमलता का अभाव होता है |सिद्धि के समय यह पहले साधक को डराती है ,फिर तरह तरह के मोहक रूपों में भोग के लिए प्रेरित करती है[यद्यपि मूल रूप से यह उग्र और क्रूर शक्ति है ,भ्रम उत्पन्न और लालच के लिए ऐसा कर सकती है ] ,इसके भय और प्रलोभन से बच गए तो सिद्ध हो सकती है |मस्तिष्क को शून्यकर इसके भाव में डूबे बिना यह सिद्ध नहीं होती |इसमें और काली में व्यावहारिक अंतर है जबकि यह काली के अंतर्गत ही आती है |इसे जगाना पड़ता है जबकि काली एक जाग्रत देवी हैं |डाकिनी की साधना में कामभाव की पूर्णतया वर्जना होती है |

तंत्र जगत में एक और डाकिनी की साधना होती है जो अधिकतर वाममार्ग में साधित होती है |यह डाकिनी प्रकृति [पृथ्वी] की ऋणात्मक ऊर्जा से उत्पन्न एक स्थायी गुण है और निश्चित आकृति में दिखाई देती है |इसका स्वरुप सुन्दर और मोहक होता है |यह पृथ्वी पर स्वतंत्र शक्ति के रूप में पाई जाती है |इसकी साधना अघोरियों और कापालिकों में अति प्रचलित है |यह बहुत शक्तिशाली शक्ति है और सिद्ध हो जाने पर साधक की राह बेहद आसान हो जाती है ,यद्यपि साधना में थोड़ी सी चूक होने अथवा साधक के साधना समय में थोडा सा भी कमजोर पड़ने पर उसे ख़त्म कर देती है |यह भूत-प्रेत-पिशाच-ब्रह्म-जिन्न आदि से उन्नत शक्ति होती है |यह कभी-कभी खुद किसी पर कृपा कर सकती है और कभी किसी पर स्वयमेव आसक्त भी हो सकती है |तंत्र कहानियों में इसके किन्ही व्यक्तियों पर आसक्त होने ,विवाह करने और संतान तक उत्पन्न करने की कथाएं मिलती हैं |इसका स्वरुप एक सुन्दर ,गौरवर्णीय ,तीखे नाक नक्श [नाक कुछ लम्बी ]वाली युवती की होती है जो काले कपडे में ही अधिकतर दिखती है |काशी के तंत्र जगत में इसकी साधना ,विचरण और प्रभाव का विवरण मिलता है |इस शक्ति को केवल वशीभूत किया जा सकता है ,इसको नष्ट नहीं किया जा सकता ,यह सदैव व्याप्त रहने वाली शक्ति है जो व्यक्ति विशेष के लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी |इसे नकारात्मक नहीं कहा जा सकता अपितु यह ऋणात्मक शक्ति ही होती है यद्यपि स्वयमेव भी प्रतिक्रिया कर सकती है |सामान्यतया यहनदी-सरोवर के किनारों , घाटों ,शमशानों, तंत्र पीठों ,एकांत साधना स्थलों आदि पर विचरण कर सकती हैं ,जो उजाले की बजाय अँधेरे में होना पसंद करती हैं |इस डाकिनी और मूलाधार की डाकिनी में अंतर होता है |

मूलाधार की डाकिनी व्यक्ति के मूलाधार से जुडी होती है ,कुंडलिनी सुप्त तो वह भी सुप्त |तंत्र मार्ग से कुंडलिनी जगाने की कोसिस पर सबसे पहले इसका ही जागरण होता है |इसकी साधना स्वतंत्र रूप से भी होती है और कुंडलिनी साधना के अलावा भी यह साधित होती है |कुंडलिनी की डाकिनी शक्ति की साधना पर प्रकृति की डाकिनी का आकर्षण हो सकता है और वह उपस्थित हो सकती है, यद्यपि प्रकृति में पाई जाने वाली डाकिनी प्रकृति की स्थायी शक्ति है जिसकी साधना प्रकृति भिन्न होती है किन्तु गुण-भाव समान ही होते हैं |इसमें अनेक मतान्तर हैं की डाकिनी की स्वतंत्र साधना पर काली से सम्बंधित डाकिनी का आगमन होता है अथवा प्रकृति की डाकिनी का ,क्योकि प्रकृति भी तो काली के ही अंतर्गत आता है |वस्तुस्थिति कुछ भी हो किन्तु डाकिनी एक प्रबल शक्ति होती है और यह इतनी सक्षम है की सिद्ध होने पर व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही आवश्यकताएं पूर्ण कर सकती है तथा साधना में सहायक हो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है |
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5> दुःख दारिद्रय निवारक चमत्कारी उपाय ==64 योगिनी तंत्र:-

उपाय के लिए रविपुष्य नक्षत्र (जिस रविवार को पुष्य नक्षत्र हो) चुनिए इस दिन कहीं सिद्ध भैरव जी के मन्दिर से उनके चरणों की कालिमा एकत्र कर लें। इसे स्याही की तरह प्रयोग करना है। एक साफ-सा आयताकार भोजपत्र ले लें। इस पत्र पर यंत्र अंकित करना है। सिरस के वृक्ष की एक लकड़ी से कलम बना लें। यह न मिले तो अनार के वृक्ष की लकड़ी से बना लें।

भोजपत्र पर शतरंज के कोष्ठकों की तरह 64 कोष्ठक बना लें। प्रत्येक कोष्ठक में क्रमशः एक-एक योगिनी का नाम अंकित कर लें। लिखने का क्रम बाएं से दाएं तथा नीचे से ऊपर की ओर रहे, इसका ध्यान रखें। यदि सक्षम हैं तो यह यंत्र तांबे, चांदी अथवा सोने की शीट पर अंकित करवाकर प्राण-प्रतिष्ठा कर लें। 64 योगिनीयों के नाम निम्न प्रकार हैं।

दिव्ययोगिनी, 2. महायोगिनी, 3. सिद्धयोगिनी, 4. गणेश्वरी, 5. प्रेताक्षी, 6. डाकिनी, 7. काली, 8. कालरात्रि, 9. निशाचरी, 10. हुंकारी, 11. रूद्रवैताली, 12. खर्परी, 13. भूतयामिनी, 14. ऊर्ध्वकेशी, 15. विरुपाक्षी, 16. शुष्कांगी, 17. मॉसभोजनी, 18. फेत्कारी, 19. वीरभद्राक्षी, 20. धूम्राक्षी, 21. कलहप्रिया, 22. रक्ता, 23. घाररक्ताक्षी, 24. विरुपाक्षी, 25. भयंकरी, 26. चौरिका, 27. मारिका, 28. चंडी, 29. वाराही, 30. मुंडधारिणी, 31. भैरवी, 32. चक्रिणी, 33. क्रोधा, 34. दुर्मुखी, 35. प्रतवाहिनी, 36. कंटकी, 37. दीर्घलंबौष्ठी, 38. मालिनी, 39. मंत्रयोगिनी, 40. कालाग्रि, 41. मोहिनी, 42. चक्री, 43. कंकाली, 44. भुवनेश्वरी, 45. कुंडलाक्षी, 46. जुही, 47. लक्ष्मी, 48. यमदूती, 49. करालिनी, 50. कौशिकी, 51. भाक्षिणी, 52. यक्षी, 53. कौमारी, 54. यंत्रवाहिनी, 55. विशाला, 56. कामुकी, 57. व्याघ्री, 58. याक्षिणी, 59. प्रेतभूषणी, 60. धूर्जटा, 61. विकटा, 62. घोरा, 63. कपाला, 64. लांगली।

कालरात्रि शुष्कांगी विरुपाक्षी चक्रिणी कालागि यमदूती कामुकी लांगली

काली विरुपाक्षी घाररक्ताक्षी भैरवी मंत्रयोगिनी लक्ष्मी विशाला कपाला

डाकिनी ऊर्ध्वकेशी रक्ता मुंडधारिणी मालिनी जुही यंत्रवाहिनी घोरा

प्रेताक्षी भूतयामिनी कलहप्रिया वाराही दीर्घलंबौष्ठी कुंडलाक्षी कौमारी विकटा

गणेश्वरी खर्परी धूम्राक्षी चंडी कंटकी भुवनेश्वरी यक्षी धूर्जटा

सिद्धयोगिनी रूद्रवैताली वीरभद्राक्षी मारिका प्रतवाहिनी कंकाली भाक्षिणी प्रेतभूषणी

महायोगिनी हुंकारी फेत्कारी चौरिका दुर्मुखी चक्री कौशिकी याक्षिणी

दिव्ययोगिनी निशाचरी मॉसभोजनी भयंकरी क्रोधा मोहिनी करालिनी व्याघ्री

यंत्र के सूखने तक प्रतीक्षा करें। जिस क्रम से नाम अंकित किए थे उसी क्रम से प्रत्येक कोष्ठक में एक चुटकी नागकेसर चढ़ाएं। यथा भक्ति यंत्र की धूप-दीप से पूजा अर्चना करें। अनामिका उंगली का पोर दबाते हुए यह उंगली अब पहले कोष्ठक में रखें तथा इसमें अंकित पहला नाम दिव्ययोगिनी 64 बार ‘‘ॐ दिव्ययोगिनी नमः’’ जपें। दूसरी बार दूसरे कोष्ठक पर उंगली रखकर 64 बार दूसरा नाम महायोगिनी जपें, ‘‘ॐ महायोगिनी नमः’’। इसी प्रकार यंत्र के प्रत्येक कोष्ठक में उंगली रखते हुए वह नाम 64-64 बार जपें। अन्त 11 माला ‘‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्री हंसौः चतुःषश्ठियोगिनोभ्यो नमः’’ जप करके यंत्र को ऐसे ही सुरक्षित रख लें। अगले दिन यंत्र बनाने की प्रक्रिया छोड़कर 64 कोष्ठकों में उंगली रखकर 64-64 बार नाम जप करें और अन्त में योगिनी महामंत्र की ग्यारह माला जप करें। यह तांत्रिक अनुष्ठान 64 दिन चलेगा। चौसठवें अर्थात् अन्तिम दिन मंत्र जप के बाद योगिनी महामंत्र की एक माला से हवन करें। हवन सामग्री में कमलगट्टे, गूगल, जौ, बताशे, घृत तथा पंचमेवा अवश्य मिला लें। इन चौसठ दिनों में नित्य गुग्गुल धूनी करें। शान्तिकुज हरिद्वार में गुग्गुल की अगरबत्ती मिलती है यह उपयोग करें तो थोड़ी सुविधा हो जाएगी। अन्तिम दिन एक, दो अथवा अधिक, अपने सामर्थ्य अनुसार सौभाग्यशाली स्त्रीयों को भोजन दक्षिणा से प्रसन्न करके उनका आशीष लें।

यंत्र को सुन्दर सा फ्रेम करवाकर अपने आवास, दुकान फैक्ट्री आदि में उत्तर दिशा वाली दीवार में रख दें अथवा टांग दें। पुष्प की माला सदैव इस यंत्र पर चढ़ी रहे। यंत्र पर चढ़े हुए नागकेसर एक लाल कपड़े में बांधकर यंत्र के पास ही रख लें। सम्भव हो तो नित्य योगिनी महामंत्र की एक माला जप करें।

आप कुछ ही समय में चमत्कारी रुप से अपने तथा अपने आस-पास के वातावरण में परिवर्तन अनुभव करने लगेगें। ऋण का भार, व्यापार अथवा अन्य कार्य का अकस्मात् बाधित हो जाना, धन संपदा के लिए लोगों से बैर, भूमि-भवन आदि के क्रय विक्रय में व्यवधान आदि अनेक बातों से आप अपने मुक्त कर शान्तिमय जीवन जीने लगेंगे।

यह उपाय सरलतम उपायों की श्रंखला में कठिन अवश्य है परन्तु यदि संयम से कर लिया जाए तो बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध होता है। समय के अभाव में जो साधक यह करने में असमर्थ में वह यह यंत्र बनाकर रख लें तथा योगिनी महामंत्र की एक माला नित्य जप करें। पूजा के समय यंत्र को गूगुल की धूनी अवश्य दें। इस सरल उपाय से भी कई लोगों को लाभ पहुचा है। मै बार-बार लिख रहा हॅू कि लाभ के पीछे आपके प्रारब्ध का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
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6>चंडिका प्रयोग

प्रस्तुत साधना तब करे जब जीवन पूरी तरह अस्त व्यस्त हो गया हो.कोई मार्ग नज़र न आ रहा हो.दरिद्रता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हो.क्युकी ये प्रयोग मारण प्रयोग है,अरे नहीं किसी व्यक्ति का नहीं, अपने कष्टो पर भी तो मारण किया जा सकता है न

दरिद्रता,रोग,गृह क्लेश और भी न जाने क्या क्या कष्ट है जीवन में,जो आपको रात दिन तील तील मारते रहते है,इससे पहले कि ये आपको पूरी तरह मारदे आप कर ही दीजिये इन पर चंडिका प्रयोग।

ये प्रयोग तीन दिन का है,किसी भी रविवार या अमावस्या कि रात्रि १२ बजे इसे किया जा सकता सकता है.दक्षिण कि और मुख कर बैठ जाये,आसन वस्त्र लाल हो तथा जाप होगा रुद्राक्ष कि माला से.सामने महाकाली का कोई भी चित्र स्थापित करे लाल वस्त्र पर.माँ का सामान्य पूजन करे,तील के तेल का दीपक हो.भोग में माँ को गूढ़ अर्पण करे.रक्त पुष्पो से पूजन करे.इसके बाद २१ माला आप मंत्र का जाप करे.भोग नित्य स्वयं खा ले.अंतिम दिन जाप के बाद घी में कालीमिर्च तथा काले तील मिलाकर १०८ आहुति प्रदान करे,तथा अंत में एक निम्बू पर मंत्र को २१ बार पड़कर फुक मार दे.और मंत्र पड़ते हुए ही निम्बू अग्नि कुंड में डाल दे.नित्य पूजन के बाद भी स्नान कर लिया करे.

मंत्र: क्रीं ह्रीं क्रीं महाकाली चण्डिके आपदउद्दारिणी अनंगमालिनि सर्वोपद्रव नाशिनी क्रीं ह्रीं क्रीं फट।

मित्रो इस प्रकार ये प्रयोग पूर्ण होता है,जो आपके जीवन से समस्त शोक दुःख आदि को दूर कर देगा।
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7>तंत्र, मंत्र, यंत्र और योग साधना का लाभ..

हिंदू धर्म में हजारों तरह की साधनाओं का वर्णन मिलता है। साधना से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। व्यक्ति सिद्धियां इसलिए प्राप्त करना
चाहता है, क्योंकि या तो वह उससे सांसारिक लाभ प्राप्त करना चाहता है या फिर आध्यात्मिक लाभ।
मूलत:---------
साधना के चार प्रकार माने जा सकते हैं- तंत्र साधना, मंत्र साधना, यंत्र साधना और योग साधना। तीनों ही तरह की साधना के कई उप प्रकार हैं। आओ जानते हैं साधना के तरीके और उनसे प्राप्त होने वाला लाभ...

  तांत्रिक साधना...

तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी। वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है। वाम मार्गी तंत्र साधना में 6 प्रकार के कर्म बताए गए हैं जिन्हें षट् कर्म कहते हैं।

तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है-

एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी। वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है। वाम मार्गी तंत्र साधना में 6 प्रकार के कर्म बताए गए हैं जिन्हें षट् कर्म कहते हैं।

शांति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा।
गोरणों तनिसति षट कर्माणि मणोषणः॥

अर्थात शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण ये छ: तांत्रिक षट् कर्म।

इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:-

मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्‌।
आकर्षण यक्षिणी चारसासनं कर त्रिया तथा॥

मारण, मोहनं, स्तम्भनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये 9 प्रयोग हैं।
रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शन्तिर किता।
विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्‌॥
पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्‌।
स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥
प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्‌।

जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाए, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तम्भन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं।

मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है। मं‍त्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है। मंत्र का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना। मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। ‘मंत्र साधना’ भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है।

मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1. वैदिक मंत्र, 2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र।

मंत्र जप के भेद- 1. वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप।


वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है।

मंत्र नियम :

मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है।

किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए।

यंत्र साधना सबसे सरल है। बस यंत्र लाकर और उसे सिद्ध करके घर में रखें लोग तो अपने आप कार्य सफल होते जाएंगे। यंत्र साधना को कवच साधना भी कहते हैं।

यं‍त्र को दो प्रकार से बनाया जाता है- अंक द्वारा और मंत्र द्वारा। यंत्र साधना में अधिकांशत: अंकों से संबंधित यंत्र अधिक प्रचलित हैं। श्रीयंत्र, घंटाकर्ण यंत्र आदि अनेक यंत्र ऐसे भी हैं जिनकी रचना में मंत्रों का भी प्रयोग होता है और ये बनाने में अति क्लिष्ट होते हैं।

इस साधना के अंतर्गत कागज अथवा भोजपत्र या धातु पत्र पर विशिष्ट स्याही से या किसी अन्यान्य साधनों के द्वारा आकृति, चित्र या संख्याएं बनाई जाती हैं। इस आकृति की पूजा की जाती है अथवा एक निश्चित संख्या तक उसे बार-बार बनाया जाता है। इन्हें बनाने के लिए विशिष्ट विधि, मुहूर्त और अतिरिक्त दक्षता की आवश्यकता होती है।

यंत्र या कवच भी सभी तरह की मनोकामना पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं जैसे वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण, धन अर्जन, सफलता, शत्रु निवारण, भूत बाधा निवारण, होनी-अनहोनी से बचाव आदि के लिए यंत्र या कवच बनाए जाते हैं।

दिशा- प्रत्येक यंत्र की दिशाएं निर्धारित होती हैं। धन प्राप्ति से संबंधित यंत्र या कवच पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं तो सुख-शांति से संबंधित यंत्र या कवच पूर्व दिशा की ओर मुंह करके रख जाते हैं। वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण के यंत्र या कवच उत्तर दिशा की ओर मुंह करके, तो शत्रु बाधा निवारण या क्रूर कर्म से संबंधित यंत्र या कवच दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं। इन्हें बनाते या लिखते वक्त भी दिशाओं का ध्यान रखा जाता है।

सभी साधनाओं में श्रेष्ठ मानी गई है योग साधना। यह शुद्ध, सात्विक और प्रायोगिक है। इसके परिणाम भी तुरंत और स्थायी महत्व के होते हैं। योग कहता है कि चित्त वृत्तियों का निरोध होने से ही सिद्धि या समाधि प्राप्त की जा सकती है- 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः'।

मन, मस्तिष्क और चित्त के प्रति जाग्रत रहकर योग साधना से भाव, इच्छा, कर्म और विचार का अतिक्रमण किया जाता है। इसके लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ये 5 योग को प्राथमिक रूप से किया जाता है। उक्त 5 में अभ्यस्त होने के बाद धारणा और ध्यान स्वत: ही घटित होने लगते हैं।

योग साधना द्वार अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति की जाती है। सिद्धियों के प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अपनी सभी तरह की मनोकामना पूर्ण कर सकता है।

जानिए... योग साधना की सात बाधाएं

योग साधना की सात बाधा

योग एक ‍कठिन साधना है। इसका अभ्यास किसी गुरु के सानिध्य में रहकर ही किया जाता है। विभिन्न योगाचार्यों अनुसार अभ्यास के समय कुछ आदतें साधक के समक्ष बाधाएँ उपस्थित कर सकती हैं, जिससे हठ योग साधना में विघ्न उत्पन्न होता हैं। ये आदतें निम्न हैं:- अधिक आहार, अधिक प्रयास, दिखावा, नियम विरुद्ध, लोक-संपर्क तथा चंचलता।

1.अधिक आहार : अधिक आहार की आदत योग में बाधा उत्पन्न करती है। डटकर भोजन करने वाले आलस्य, निद्रा, मोटापा आदि के शिकार बन जाते हैं। यौगिक आहार नियम को जानकर ही आहार करें। आहार संयम होना आवश्यक है।
2.अधिक प्रयास : कुछ अभ्यास ठीक से नहीं हो पाते तब साधक जोर लगाकर अधिक प्रयास से अभ्यास को साधना चाहता है, यह आदत घातक है। शरीर और मन की क्षमता को ध्यान में रखते हुए अपनी ओर से कभी अधिक प्रयास नहीं करना चाहिए।
3.दिखावापन : इसे योगाचार्य प्रजल्प भी कहते हैं। कुछ लोग अपने अभ्यासों के संबंध में लोगों के समक्ष बढ़ा-चढ़ाकर बखान करते हैं। बहुत से अपने अभ्यास की थोड़ी बहुत सफलता का प्रदर्शन भी करते हैं। यही दिखावेपन की आदत योगी को योग से दूर कर देती है। अतः जो भी अभ्यास करें, उसकी चर्चा, जहाँ तक हो सके दूसरों से खासकर अनधिकारी व्यक्तियों से कभी न करें।
4.नियम विरुद्ध : योग के नियम के विरुद्ध है मन से नियम बनाना, इसे नियमाग्रह कहते हैं। बहुत से लोग कुछ खास नियम बना लेते हैं और आग्रह रखते हैं कि उसी के अनुसार चलेंगे। एक अर्थ में यह ठीक है और ऐसा करना भी चाहिए। किन्तु कभी-कभी यह विघ्नकारक भी हो जाता है।

उदाहरणार्थ-

जैसे खाने के नियम बना लेते हैं कि एक फल ही खाऊँगा या सप्ताह में तीन दिन ही खाऊँगा। अभ्यास के नियम कि स्नान के बाद ही अभ्यास करेंगे या सुबह ही करेंगे या किसी खास स्थान में ही करेंगे। बुखार होगा तब भी अभ्यास नहीं छोड़ेगे। इस तरह मनमाने नियम से शरीर और मन को कष्ट होता है जबकि योग कहता है कि मध्यम मार्ग का अनुसरण करो। नियम हो लेकिन सख्‍त न हो। नियमों में लचीलापन बना रहना चाहिए।

5.जन-संपर्क : योग का अभ्यास करने वाले को अधिक जन-संपर्क में नहीं रहना चाहिए। उसे बहस, वाद-विवाद, सांसारिक चर्चा से दूर रहना चाहिए। अधिक जन संपर्क या संग से खानपान की बुरी आदतें भी बनने लगती हैं। अतः जहाँ तक संभव हो लोगों से कम संपर्क रखें।
6.चंचलता : कभी यहाँ, कभी वहाँ, कभी कुछ, कभी कुछ, यह शरीर की चंचल प्रवृत्ति ठीक नहीं होती। शारीरिक चंचलता से मन की चंचलता या मन की चंचलता से शारीरिक चंचलता उत्पन्न होती है। अतः शरीर को भी स्थिर रखें, अधिक दौड़धूप न करें और मन को भी शांत व स्थिर रखें। अधिक इधर-उधर की न सोचें।

7.संकल्प और धैर्य : संकल्पवान और धैर्यशील व्यक्ति ही योग में सफल हो सकता। संकल्प और धैर्य के अभाव में योग ही नहीं किसी भी विद्या या कार्य में सफलता अर्जित नहीं की जा सकती। संकल्प और धैर्यशीलता से ही सभी तरह की बाधाओं को पार किया जा सकता है अत: संकल्प और धीरज का होना बहुत जरूरी है।

इस प्रकार उपर्युक्त यह सात विघ्नकारक तत्व हैं, जिनसे योगाभ्यास में बाधा उत्पन्न होती है। सच्चा साधक इन विघ्नों से सदा दूर रहकर और अपनी आदतों में सुधार कर अपने योगाभ्यास को सफल बनाता है।
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8>काले जादू और बुरी नजर से बचाती है ये साधारण लगने वाली चीजे

कालेजादू और बुरी दृष्टि से बचाने के लिए वास्तुशास्त्र में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ने के लिए या किसी भी प्रकार के वास्तु दोष को दूर करने के लिए घर की छत पर उत्तर पूर्व दिशा में पांच तुलसी का पौधा लगाना चाहिए। पांच नहीं तो कम से कम एक तुलसी का पौधा इस दिशा में जरुर लगाएं। इससे घर में आने वाले नकारात्मक प्रभाव में कमी आती है। वास्तुविज्ञान में बताया गया है बाहर से घर में आने वाले लोग भी कई बार नकारात्मक उर्जा लेकर आते हैं। जिनके घर के मुख्य द्वार पर तुलसी का पौधा होता है उनके घर में इस तरह के नकारात्मक उर्जा का प्रवेश नहीं हो पाता है।

सूरज भगवन की तस्वीर भी शुभ फलदायी होती होती है, पर इन्हे के घर में कहीं भी लगाने से आपके शुभ फल नहीं मिलता है। घोड़े की तस्वीर लगाने के लिए पूर्व दिशा को शुभ माना गया है। सूर्यदेव पूर्व दिशा से उदित होते हैं और उनके रथ में सात अश्व माने गए हैं। माना जाता है कि ऐसी तस्वीरों से घर में सकारात्मक उर्जा का संचार होता है जो लोगों को स्वस्थ और उर्जावान बनाए रखता है। ऐसी तस्वीरों को उन्नति और सफलता का भी प्रतीक माना गया है।

मेहमानो को जिस कमरे में बिठाते है वंहा श्री कृष्ण की बाललीलाओं वाली तस्वीर और अपने गुरु या किसी महापुरुष जिनसे आपको प्रेरणा मिलती हो उनकी तस्वीर लगाना चाहिए। ऐसी तस्वीरों से आपको सकारात्मक उर्जा का लाभ मिलता है। वास्तु सिद्घांत के अनुसार घर के अग्नेय कोण यानी (दक्षिण पूर्व) हिस्से में हवन की तस्वीर लगानी चाहिए। लेकिन अगर आपके घर में शयन कक्ष आग्नेय कोण में है तब इस तस्वीर की बजाय समुद्र की तस्वीर लगाएं। लेकिन ध्यान रखें समुद्र शांत हो।
वास्तु विज्ञान में शंख का बड़ा महत्व बताया गया है। घर में जब भी विशेष पूजा जैसे होली दिवाली, रामनवमी, कृष्णजन्माष्टमी, नवरात्रे के दिन शंख को पूजा स्थल में रखकर इसकी धूप-दीप से पूजा की जाए तो घर में वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है। शंख में गाय का दूध रखकर इसका छिड़काव घर में किया जाए तो इससे भी सकारात्मक उर्जा का संचार होता है। अगर संभव हो तो शाम ढ़लने से पहले और सूर्योदय के समय शंख बजाएं इससे घर और आपके आस-पास का वातावरण शुद्घ और उर्जावान बना रहता है।

घर के बहार नकारात्मक उर्जा और वास्तुदोष से मुक्त रखने के लिए मुख्य द्वार पर स्वास्तिक या ओम लगाना चाहिए। गणेश जी की मूर्ति पर मुख्य द्वार पर लगाई जाती है लेकिन गणेश जी की मूर्ति लगाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि गणेश जी का मुख घर के अंदर की तरफ हो।

जिन घर में रसोई घर दक्षिण पूर्व में नहीं हो तब वास्तुदोष को दूर करने के लिए रसोई के उत्तर पूर्व यानी ईशान कोण में सिंदूरी गणेश जी की तस्वीर लगानी चाहिए।
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9>गुंजा=श्वेत कुच, लाल कुच

गुंजा का प्रयोग अनेक तांत्रिक कार्यों में होता है. यह एक लता का बीज होता है. जो लाल रंग का होता है. सफ़ेद और काले रंग की गुंजा भी मिल सकती है. काली गुंजा बहुत दुर्लभ होती है और वशीकरण के कार्यों में रामबाण की तरह काम करती है. गुंजा के बीजों के अलावा उसकी जड़ को बहुत उपयोगी मन गया है. गुंजा की महिमा कुछ इस प्रकार है

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१. आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रुभी वशीभूत हो जाते हैं. यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.
२. गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.
३. जिस व्यक्ति को नजर बहुत लगती हो उसको गुंजा का ब्रासलेट कलाई पर बांधना चाहिए. किसी सभा में या भीड़ भाद वाली जगह पर जाते समय गुंजा का ब्रासलेट पहनने से दूसरे लोग प्रभावित होते हैं.
४. गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.
काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।
रक्तगुंजा: गुंजा का बीज होता है, जो लाल रंग का होता है। इस पर काले रंग का छोटा सा बिंदू बना होता है। लक्ष्मी की प्राप्ति व उसे चिरकाल तक स्थिर रखने हेतु गुंजा का प्रयोग किया जाता है। तंत्रशास्त्र में इसका कई रूपों में प्रयोग होता है।

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गुंजा

गुंजा की लता पर लगी फली में बीज

गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी के स्थान में भी प्रयुक्त होती है।

गुंजा गुंजा दो प्रकार की होती है।विभिन्न भाषाओं में नामअंग्रेजी Coral Bead हिन्दी गुंजा, चौंटली, घुंघुची, रत्ती संस्कृत सफेद केउच्चटा, कृष्णला, रक्तकाकचिंची बंगाली श्वेत कुच, लाल कुच मराठी गुंजा गुजराती धोलीचणोरी, राती, चणोरी तेलगू गुलुविदे फारसी चश्मेखरुस अरबी हबसुफेद

हानिकारक प्रभाव

पाश्चात्य मतानुसार गुंजा के फलों के सेवन से कोई हानि नहीं होती है। परन्तु क्षत पर लगाने से विधिवत कार्य करती है। सुश्रुत के मत से इसकी मूल गणना है।

गुंजा को आंख में डालने से आंखों में जलन और पलकों में सूजन हो जाती है।

गुण

दोनों गुंजा, वीर्यवर्द्धक (धातु को बढ़ाने वाला), बलवर्द्धक (ताकत बढ़ाने वाला), ज्वर, वात, पित्त, मुख शोष, श्वास, तृषा, आंखों के रोग, खुजली, पेट के कीड़े, कुष्ट (कोढ़) रोग को नष्ट करने वाली तथा बालों के लिए लाभकारी होती है। ये अन्यंत मधूर, पुष्टिकारक, भारी, कड़वी, वातनाशक बलदायक तथा रुधिर विकारनाशक होता है। इसके बीज वातनाशक और अति बाजीकरण होते हैं। गुन्जा से वासिकर्न भि कर सक्ते ही ग्न्जा

अंग्रेजी Coral Bead हिन्दी गुंजा, चौंटली, घुंघुची, रत्ती संस्कृत सफेद केउच्चटा, कृष्णला, रक्तकाकचिंची बंगाली श्वेत कुच, लाल कुच मराठी गुंजा गुजराती धोलीचणोरी, राती, चणोरी तेलगू गुलुविदे फारसी चश्मेखरुस अरबी हबसुफेद============================================================

चमत्कारी तंत्र वनस्पति गुंजा

चमत्कारी है गुंजा
तांत्रिक जड़ीबूटियां भाग -9

गुंजा एक फली का बीज है। इसको धुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसकी बेल काफी कुछ मटर की तरह ही लगती है किन्तु अपेक्षाकृत मजबूत काष्ठीय तने वाली। इसे अब भी कहीं कहीं आप सुनारों की दुकानों पर देख सकते हैं। कुछ वर्ष पहले तक सुनार इसे सोना तोलने के काम में लेते थे क्योंकि इनके प्रत्येक दाने का वजन लगभग बराबर होता है करीब 120 मिलीग्राम। ये हमारे जीवन में कितनी बसी है इसका अंदाज़ा मुहावरों और लोकोक्तियों में इसके प्रयोग से लग जाता है।

यह तंत्र शास्त्र में जितनी मशहूर है उतनी ही आयुर्वेद में भी। आयुर्वेद में श्वेत गूंजा का ही अधिक प्रयोग होता है औषध रूप में साथ ही इसके मूल का भी जो मुलैठी के समान ही स्वाद और गुण वाली होती है। इसीकारण कई लोग मुलैठी के साथ इसके मूल की भी मिलावट कर देते हैं।

वहीं रक्त गूंजा बेहद विषैली होती है और उसे खाने से उलटी दस्त पेट में मरोड़ और मृत्यु तक सम्भव है। आदिवासी क्षेत्रों में पशु पक्षी मारने और जंगम विष निर्माण में अब भी इसका प्रयोग होता है।

गुंजा की तीन प्रजातियां मिलती हैं:-

1• रक्त गुंजा: लाल काले रंग की ये प्रजाति भी तीन तरह की मिलती है जिसमे लाल और काले रंगों का अनुपात 10%, 25% और 50% तक भी मिलता है।

ये मुख्यतः तंत्र में ही प्रयोग होती है।

श्वेत गुंजा • श्वेत गुंजा में भी एक सिरे पर कुछ कालिमा रहती है। यह आयुर्वेद और तंत्र दोनों में ही सामान रूप से प्रयुक्त होती है। ये लाल की अपेक्षा दुर्लभ होती है।

काली गुंजा: काली गुंजा दुर्लभ होती है, आयुर्वेद में भी इसके प्रयोग लगभग नहीं हैं हाँ किन्तु तंत्र प्रयोगों में ये बेहद महत्वपूर्ण है।

इन तीन के अलावा एक अन्य प्रकार की गुंजा पायी जाती है पीली गुंजा ये दुर्लभतम है क्योंकि ये कोई विशिष्ट प्रजाति नहीं है किन्तु लाल और सफ़ेद प्रजातियों में कुछ आनुवंशिक विकृति होने पर उनके बीज पीले हो जाते हैं। इस कारण पीली गूंजा कभी पूर्ण पीली तो कभी कभी लालिमा या कालिमा मिश्रित पीली भी मिलती है।

इस चमत्कारी वनस्पति गुंजा के कुछ प्रयोग:-

1• सम्मान प्रदायक :

शुद्ध जल (गंगा का, अन्य तीर्थों का जल या कुएं का) में गुंजा की जड़ को चंदन की भांति घिसें। अच्छा यही है कि किसी ब्राह्मण या कुंवारी कन्या के हाथों से घिसवा लें। यह लेप माथे पर चंदन की तरह लगायें। ऐसा व्यक्ति सभा-समारोह आदि जहां भी जायेगा, उसे वहां विशिष्ट सम्मान प्राप्त होगा।

2• कारोबार में बरकत

किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार के दिन 1 तांबे का सिक्का, 6 लाल गुंजा लाल कपड़े में बांधकर प्रात: 11 बजे से लेकर 1 बजे के बीच में किसी सुनसान जगह में अपने ऊपर से 11 बार उसार कर 11 इंच गहरा गङ्ढा खोदकर उसमें दबा दें। ऐसा 11 बुधवार करें। दबाने वाली जगह हमेशा नई होनी चाहिए। इस प्रयोग से कारोबार में बरकत होगी, घर में धन रूकेगा।

3"• ज्ञान-बुद्धि वर्धक :

(क) गुंजा-मूल को बकरी के दूध में घिसकर हथेलियों पर लेप करे, रगड़े कुछ दिन तक यह प्रयोग करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि, स्मरण-शक्ति तीव्र होती है, चिंतन, धारणा आदि शक्तियों में प्रखरता व तीव्रता आती है।

(ख) यदि सफेद गुंजा के 11 या 21 दाने अभिमंत्रित करके विद्यार्थियों के कक्ष में उत्तर पूर्व में रख दिया जाये तो एकाग्रता एवं स्मरण शक्ति में लाभ होता है।

4• वर-वधू के लिए :

विवाह के समय लाल गुंजा वर के कंगन में पिरोकर पहनायी जाती है। यह तंत्र का एक प्रयोग है, जो वर की सुरक्षा, समृद्धि, नजर-दोष निवारण एवं सुखद दांपत्य जीवन के लिए है। गुंजा की माला आभूषण के रूप में पहनी जाती है।

5• पुत्रदाता :

शुभ मुहुर्त में श्वेत गुंजा की जड़ लाकर दूध से धोकर, सफेद चन्दन पुष्प से पूजा करके सफेद धागे में पिरोकर। “ऐं क्षं यं दं” मंत्र के ग्यारह हजार जाप करके स्त्री या पुरूष धारण करे तो संतान सुख की प्राप्ती होती है।

6• वशीकरण -

(क) आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रु भी वशीभूत हो जाते हैं. यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.

(ख) गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.

( गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.

7• विद्वेषण में प्रयोग :

किसी दुष्ट, पर-पीड़क, गुण्डे तथा किसी का घर तोड़ने वाले के घर में लाल गुंजा - रवि या मंगलवार के दिन इस कामना के साथ फेंक दिये जाये - 'हे गुंजा ! आप मेरे कार्य की सिद्धि के लिए इस घर-परिवार में कलह (विद्वेषण) उत्पन्न कर दो' तो आप देखेंगे कि ऐसा ही होने लगता है।

8• विष-निवारण :
गुंजा की जड़ धो-सुखाकर रख ली जाये। यदि कोई व्यक्ति विष-प्रभाव से अचेत हो रहा हो तो उसे पानी में जड़ को घिसकर पिलायें।

इसको पानी में घिस कर पिलाने से हर प्रकार का विष उतर जाता है।

9• दिव्य दृष्टि :-

(क) अलौकिक तामसिक शक्तियों के दर्शन :

भूत-प्रेतादि शक्तियों के दर्शन करने के लिए मजबूत हृदय वाले व्यक्ति, गुंजा मूल को रवि-पुष्य योग में या मंगलवार के दिन- शुद्ध शहद में घिस कर आंखों में अंजन (सुरमा/काजल) की भांति लगायें तो भूत, चुडैल, प्रेतादि के दर्शन होते हैं।

(ख) गुप्त धन दर्शन :

अंकोल या अंकोहर के बीजों के तेल में गुंजा-मूल को घिस कर आंखों पर अंजन की तरह लगायें। यह प्रयोग रवि-पुष्य योग में, रवि या मंगलवार को ही करें। इसको आंजने से पृथ्वी में गड़ा खजाना तथा आस पास रखा धन दिखाई देता है।

10• शत्रु में भय उत्पन्न :

गुंजा-मूल (जड़) को किसी स्त्री के मासिक स्राव में घिस कर आंखों में सुरमे की भांति लगाने से शत्रु उसकी आंखों को देखते ही भाग खड़े होते हैं।

11• शत्रु दमन प्रयोग :

यदि लड़ाई झगड़े की नौबत हो तो काले तिल के तेल में गुंजामूल को घिस कर, उस लेप को सारे शरीर में मल लें। ऐसा व्यक्ति शत्रुओं को बहुत भयानक तथा सबल दिखाई देगा। फलस्वरूप शत्रुदल चुपचाप भाग जायेगा।

12• रोग - बाधा

(क) कुष्ठ निवारण प्रयोग :

गुंजा मूल को अलसी के तेल में घिसकर लगाने से कुष्ठ (कोढ़) के घाव ठीक हो जाते हैं।

(ख)अंधापन समाप्त :

गुंजा-मूल को गंगाजल में घिसकर आंखों मे लगाने से आंसू बहुत आते हैं।नेत्रों की सफाई होती है आँखों का जाल कटता है।

देशी घी (गाय का) में घिस कर लगाते रहने से इन दोनों प्रयोगों से अंधत्व दूर हो जाता है।

(ग) वाजीकरण:

श्वेत गुंजा की जड को गाय के शुद्ध घृत में पीसकर लेप तैयार करें। यह लेप शिश्न पर मलने से कामशक्ति की वृद्धि के साथ स्तंभन शक्ति में भी वृद्धि होती है।

13: नौकरी में बाधा
राहु के प्रभाव के कारण व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो तो लाल गुंजा व सौंफ को लाल वस्त्र में बांधकर अपने कमरे में रखें।

**दुर्लभ काली गुंजा के कुछ प्रयोग:

1• काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।

2• दिवाली के दिन अपने गल्‍ले के नीचे काली गुंजा जंगली बेल के दाने डालने से व्‍यवसाय में हो रही हानि रूक जाती है।

3• दिवाली की रात घर के मुख्‍य दरवाज़े पर सरसों के तेल का दीपक जला कर उसमें काली गुंजा के 2-4 दाने डाल दें। ऐसा करने पर घर सुरक्षित और समृद्ध रहता है।

4• होलिका दहन से पूर्व पांच काली गुंजा लेकर होली की पांच परिक्रमा लगाकर अंत में होलिका की ओर पीठ करके पाँचों गुन्जाओं को सिर के ऊपर से पांच बार उतारकर सिर के ऊपर से होली में फेंक दें।

5• घर से अलक्ष्मी दूर करने का लघु प्रयोग-

ध्यानमंत्र :

ॐ तप्त-स्वर्णनिभांशशांक-मुकुटा रत्नप्रभा-भासुरीं ।
नानावस्त्र-विभूषितां त्रिनयनां गौरी-रमाभ्यं युताम् ।
दर्वी-हाटक-भाजनं च दधतीं रम्योच्चपीनस्तनीम् ।
नित्यं तां शिवमाकलय्य मुदितां ध्याये अन्नपूर्णश्वरीम् ॥

मन्त्र :

ॐ ह्रीम् श्रीम् क्लीं नमो भगवति माहेश्वरि मामाभिमतमन्नं देहि-देहि अन्नपूर्णों स्वाहा ।


विधि :

जब रविवार या गुरुवार को पुष्प नक्षत्र हो या नवरात्र में अष्टमी के दिन या दीपावली की रात्रि या अन्य किसी शुभ दिन से इस मंत्र की एक माला रुद्राक्ष माला से नित्य जाप करें । जाप से पूर्व भगवान श्रीगणेश जी का ध्यान करें तथा भगवान शिव का ध्यान कर नीचे दिये ध्यान मंत्र से माता अन्नपूर्णा का ध्यान करें ।

इस मंत्र का जाप दुकान में गल्ले में सात काली गुंजा के दाने रखकर शुद्ध आसन, (कम्बल आसन, या साफ जाजीम आदि ) पर बैठकर किया जाए तो व्यापार में आश्चर्यजनक लाभ महसूस होने गेगा ।

6• कष्टों से छुटकारे हेतु

यदि संपूर्ण दवाओं एवं डाक्टर के इलाज के बावजूद भी यदि घुटनों और पैरों का दर्द दूर नहीं हो रहा हो तो रवि पुष्य नक्षत्र, शनिवार या शनि आमवस्या के दिन यह उपाय करें। प्रात:काल नित्यक्रम से निवृत हो स्नानोपरांत लोहे की कटोरी में श्रद्धानुसार सरसों का तेल भरें। 7 चुटकी काले तिल, 7 लोहे की कील और 7 लाल और 7 काली गुंजा उसमें डाल दें। तेल में अपना मुंह देखने के बाद अपने ऊपर से 7 बार उल्टा उसारकर पीपल के पेड़ के नीचे इस तेल का दीपक जला दें 21 परिक्रमा करें और वहीं बैठकर 108 बार

ऊँ शं विधिरुपाय नम:।।

इस मंत्र का जाप करें। ऐसा 11 शनिवार करें। कष्टों से छुटकारा मिलेगा।


पीली गुंजा:

1• पीले रंग की गुंजा के बीज ,हल्दी की गांठे, सात कौडियों की पूजा अर्चना करके श्री लक्ष्मीनारायण भगवान के मंत्रों से अभिमंत्रित करके पूजा स्थान में रखने से दाम्पत्य सुख एवं परिवार,मे एकता तथा आर्थिक व्यावसायिक सिद्धि मिलती है

2• इसकी माला या ब्रेसलेट धारण करने से व्यक्ति का चित्त शांत रहता है, तनाव से मुक्ति मिलती है।
3• पीत गुंजा की माला गुरु गृह को अनुकूल करती है।
4• अनिद्रा से पीड़ित लोगों को इसकी माला धारण करने से लाभ मिलता है।
5• बड़ी उम्र के जो लोग स्वप्न में डरते हैं या जिन्हें अक्सर ये लगता है की कोई उनका गला दबा रहा है उन्हें इसकी माला या ब्रेसलेट पहनना चाहिए।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
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क्या आप जानते है बड़े काम की और चमत्कारी होती है गूंजा


गुंजा या रत्ती (Coral Bead) लता जाति की एक वनस्पति है। शिम्बी के पक जाने पर लता शुष्क हो जाती है। गुंजा के फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी और दस्त हो जाते हैं। इसकी जड़े भ्रमवश मुलहठी के स्थान में भी प्रयुक्त होती है

इसको चिरमिटी, धुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसे आप सुनारों की दुकानों पर देख सकते हैं। इसका वजन एक रत्ती होता है, जो सोना तोलने के काम आती है। यह तीन रंगों में मिलती है। सफेद गुंजा का प्रयोग तंत्र तथा उपचार में होता है, न मिलने पर लाल गुंजा भी प्रयोग में ली जा सकती है। परंतु काली गुंजा दुर्लभ होती है।

गुंजा का प्रयोग अनेक तांत्रिक कार्यों में होता है. यह एक लता का बीज होता है. जो लाल रंग का होता है. सफ़ेद और काले रंग की गुंजा भी मिल सकती है. काली गुंजा बहुत दुर्लभ होती है और वशीकरण के कार्यों में रामबाण की तरह काम करती है. गुंजा के बीजों के अलावा उसकी जड़ को बहुत उपयोगी मन गया है. गुंजा की महिमा कुछ इस प्रकार है -

वर-वधू के लिए : विवाह के समय लाल गुंजा वर के कंगन में पिरोकर पहनायी जाती है। यह तंत्र का एक प्रयोग है, जो वर की सुरक्षा, समृद्धि, नजर-दोष निवारण एवं सुखद दांपत्य जीवन के लिए है। गुंजा की माला आभूषण के रूप में पहनी जाती है। भगवान श्री कृष्ण भी गुंजामाला धारण करते थे। पुत्र की चाह वाली स्वस्थ स्त्री, शुभ नक्षत्र में गुंजा की जड़ को ताबीज में भरकर कमर में धारण करें। ऐसा करने से स्त्री पुत्र लाभ करती है।


विद्वेषण में प्रयोग :

किसी दुष्ट, पर-पीड़क, गुण्डे तथा किसी का घर तोड़ने वाले के घर में लाल गुंजा - रवि या मंगलवार के दिन इस कामना के साथ फेंक दिये जाये - 'हे गुंजा ! आप मेरे कार्य की सिद्धि के लिए इस घर-परिवार में कलह (विद्वेषण) उत्पन्न कर दो' तो आप देखेंगे कि ऐसा ही होने लगता है। विष-निवारण : गुंजा की जड़ धो-सुखाकर रख ली जाये।

यदि कोई व्यक्ति विष-प्रभाव से अचेत हो रहा हो तो उसे पानी में जड़ को घिसकर पिलायें। इसको पानी में घिस कर पिलाने से हर प्रकार का विष उतर जाता है।

सम्मान प्रदायक :

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शुद्ध जल (गंगा का, अन्य तीर्थों का जल या कुएं का) में गुंजा की जड़ को चंदन की भांति घिसें। अच्छा यही है कि किसी ब्राह्मण या कुंवारी कन्या के हाथों से घिसवा लें। यह लेप माथे पर चंदन की तरह लगायें। ऐसा व्यक्ति सभा-समारोह आदि जहां भी जायेगा, उसे वहां विशिष्ट सम्मान प्राप्त होगा। पुत्रदाता : पुत्र की चाह वाली स्वस्थ स्त्री, शुभ नक्षत्र में गुंजा की जड़ को ताबीज में भरकर कमर में धारण करें। ऐसा करने से स्त्री पुत्र लाभ प्राप्त करती है। शत्रु में भय उत्पन्न : गुंजा-मूल (जड़) को किसी स्त्री के मासिक स्राव में घिस कर आंखों में सुरमे की भांति लगाने से शत्रु उसकी आंखों को देखते ही भाग खड़े होते हैं।

अलौकिक तामसिक शक्तियों के दर्शन :

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भूत-प्रेतादि शक्तियों के दर्शन करने के लिए मजबूत हृदय वाले व्यक्ति, गुंजा मूल को रवि-पुष्य योग में या मंगलवार के दिन- शुद्ध शहद में घिस कर आंखों में अंजन (सुरमा/काजल) की भांति लगायें तो भूत, चुडैल, प्रेतादि के दर्शन होते हैं। ज्ञान-


बुद्धि वर्धक :

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गुंजा-मूल को बकरी के दूध में घिसकर हथेलियों पर लेप करे, रगड़े कुछ दिन तक यह प्रयोग करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि, स्मरण-शक्ति तीव्र होती है, चिंतन, धारणा आदि शक्तियों में प्रखरता व तीव्रता आती है। गुप्त धन दर्शन : अंकोल या अंकोहर के बीजों के तेल में गुंजा-मूल को घिस कर आंखों पर अंजन की तरह लगायें। यह प्रयोग रवि-पुष्य योग में, रवि या मंगलवार को ही करें। इसको आंजने से पृथ्वी में गड़ा खजाना तथा आस पास रखा धन दिखाई देता है।

शत्रु दमन प्रयोग : काले तिल के तेल में गुंजामूल को घिस कर, उस लेप को सारे शरीर में मल लें। ऐसा व्यक्ति शत्रुओं को बहुत भयानक तथा सबल दिखाई देगा। फलस्वरूप शत्रुदल चुपचाप भाग जायेगा। कुष्ठ निवारण प्रयोग : गुंजा मूल को अलसी के तेल में घिसकर लगाने से कुष्ठ (कोढ़) के घाव ठीक हो जाते हैं।

अंधापन समाप्त : गुंजा-मूल को गंगाजल में घिसकर आंखों मे लगाने से आंसू बहुत आते हैं। देशी घी (गाय का) में घिस कर लगाते रहने से इन दोनों प्रयोगों से अंधत्व दूर हो जाता है।

१. आप जिस व्यक्ति का वशीकरण करना चाहते हों उसका चिंतन करते हुए मिटटी का दीपक लेकर अभिमंत्रित गुंजा के ५ दाने लेकर शहद में डुबोकर रख दें. इस प्रयोग से शत्रु भी वशीभूत हो जाते हैं. यह प्रयोग ग्रहण काल, होली, दीवाली, पूर्णिमा, अमावस्या की रात में यह प्रयोग में करने से बहुत फलदायक होता है.

२. गुंजा के दानों को अभिमंत्रित करके जिस व्यक्ति के पहने हुए कपड़े या रुमाल में बांधकर रख दिया जायेगा वह वशीभूत हो जायेगा. जब तक कपड़ा खोलकर गुंजा के दाने नहीं निकले जायेंगे वह व्यक्ति वशीकरण के प्रभाव में रहेगा.

३. जिस व्यक्ति को नजर बहुत लगती हो उसको गुंजा का ब्रासलेट कलाई पर बांधना चाहिए. किसी सभा में या भीड़ भाद वाली जगह पर जाते समय गुंजा का ब्रासलेट पहनने से दूसरे लोग प्रभावित होते हैं.

४. गुंजा की माला गले में धारण करने से सर्वजन वशीकरण का प्रभाव होता है.

काली गुंजा की विशेषता है कि जिस व्यक्ति के पास होती है, उस पर मुसीबत पड़ने पर इसका रंग स्वतः ही बदलने लगता है ।
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रक्त गुंजा

रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो,शुक्र तथा मंगल गोचर में अनुकूल हों अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हस्त नक्षत्र हो, कृष्ण चतुर्दशी को स्वाति नक्षत्र हो या पूर्णिमा को शतभिषा नक्षत्र हो, तो आधी रात को निमंत्रण पूर्वक रक्त गुंजा की जड़ उखाड़ कर ले आएं। घर में लाकर उसकी मिट्टी हटा कर साफ कर दें फिर दूध से स्नान करवा कर धूप-दीप से पूजा करें। इस जड़ के घर में रहने से सर्प भय नहीं रहता…

गुंजा एक प्रकार का लाल रंग का बीज है जो देखने में बहुत सुंदर लगता है। इसके ऊपरी हिस्से पर छोटा सा काला बिंदु होता है। इसकी बेल जंगलों में वृक्षों पर लिपटी पाई जाती है। इसे रत्ती भी कहते हैं और किसी जमाने में इससे सोने की तौल की जाती थी। गुंजा का एक और प्रचलित नाम घुंघची है। यह दो प्रकार की होती है रक्तगुंजा और श्वेत गुंजा। इसके तांत्रिक प्रयोग निम्न हैं-

1-बकरी के दूध में गुंजा मूल को घिस कर हथेलियों पर रगड़ने से बुद्धि का विकास होता है। मेधा,चिंतन, धारणा, विवेक तथा स्मृति की प्रखरता के लिए यह प्रयोग उत्तम होता है।

2-रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो,शुक्र तथा मंगल गोचर में अनुकूल हों अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हस्त नक्षत्र हो , कृष्ण चतुर्दशी को स्वाति नक्षत्र हो या पूर्णिमा को शतभिषा नक्षत्र हो, तो आधी रात को निमंत्रण पूर्वक रक्त गुंजा की जड़ उखाड़ कर ले आएं। घर में लाकर उसकी मिट्टी हटा कर साफ कर दें फिर दूध से स्नान करवा कर धूप-दीप से पूजा करें। इस जड़ के घर में रहने से सर्प भय नहीं रहता।

3- इसकी जड़ को घिस कर माथे पर तिलक की तरह लगाने से मनुष्य में सम्मोहक शक्ति आ जाती है और हर व्यक्ति उसकी बात मानने को तैयार हो जाता है।

4-कहते हैं कि गुंजा की जड़ को बेल पत्र के साथ घिस कर काजल की तरह लगाने से पिछले जीवन की घटनाएं याद आ जाती हैं।

इसकी जड़ को गाय के दूध में पीस कर शरीर पर लेपन करने से कोई भी तांत्रिक साधना सफल होती है यहां तक कि कभी-कभी अशरीरी आत्माएं भी वश में हो जाती हैं जो हमेशा साधक की सहायता करती हैं और उसे छोड़ कर कहीं नहीं जातीं।

श्वेत गुंजा के तांत्रिक प्रयोग

जिस दिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी हो उस दिन निम्न मंत्र पढ़ते हुए जंगल से श्वेत गुंजा की फली और वहीं से मिट्टी खोद कर लावे और अपने बगीचे में बो दे ।

मंत्र-ऊँ श्वेतवर्णे सितपर्वतवसिनि अप्रतिहते मम कार्य कुरु ठःठःस्वाहा।

फली लाने और उसे बोते समय यही मंत्र पढें़। फिर प्रति दिन सायंकाल उसमें पानी डालते रहें और इस मंत्र का जप करते रहें।

ऊँ सितवर्णे श्वेतपर्वतवासिनि सर्व कार्याणि कुरु कुरु अप्रतिहते नमो नमः।

गुंजा के बीजों को किसी वृक्ष के समीप बोना चाहिए तकि वह लता उसका सहारा लेकर चढ़ सके। जब लता बड़ी हो जाए तो उसी वृक्ष के नीचे बैठ कर अंगन्यास करें और उसकी पंचोपचार पूजा कर निम्न मंत्र की 21 माला जाप करें।

ऊँ श्वेत वर्णे पद्म मुखे सर्व ज्ञानमये सर्व शक्तिमिति सितपर्वतवासिनि भगवति हृं मम कार्य कुरु कुरु ठःठःनमः स्वाहा।

किसी भी कामना की पूर्ति के लिए संकल्प ले कर मंत्र जप करने पर कामना पूर्ण होती है।

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वे विशेष उपाय हैं जिन्हें आप केवल दीवाली के दिन ही कर सकते हैं और पूरे वर्ष उनका असर बना रहता है। ये बहुत ही सस्ते और आसान हैं और असरदार इतने मानो चमत्कारी हों।
बुरी बलाओं से बचने के लिए
लगभग 100 ग्राम रत्ती या गुंजा या घुंघुची के दाने लें जो लाल रंग के हों। इन दानों को तांबे की कटोरी में रखें। फिर शनि के मंत्र की 11 मालाएं जपें। जप का समय है 23.29 से 1.51 तक। रात का जप ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है। यह जप पूर्ण समर्पण के साथ हो। यह आप के पास एक ऐसी औषधि तैयार हो गई जो आपको इन बातों में मदद करेगी-
ल्ल गुप्त शत्रु की चालों को समाप्त कर देगी।
ल्ल बच्चों को नजर दोष होने पर इसे काले कपड़े में बांधकर उनके गले में पहनाएं।
ल्ल यदि घर में गरीबी अचानक आई हो या संतान गर्भ में ही प्राण त्याग देती हो, तो इसके कुछ दाने अपने घर के कोनों में बिखरा दें।
ल्ल यदि आपने कोई नया घर लिया है जहां आपका मन उखड़ने लगा है या आपका मन अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान से उखड़ रहा है, तो वहां इन दानों को पूजा स्थान में रखें।
अच्छी पढ़ाई व नौकरी में सफलता
दीवाली के दिन शाम 6.14 बजे से लेकर रात 8 बजे के बीच दूब घास, गुंजा तथा शमी अथवा पीपल की छोटी सी लकड़ी लेकर एक तांबे के बर्तन में रखें, फिर गणेश जी की पूजा करें। इसे सदैव पूजा में ही रहने दें। जो लोग पढ़ाई या नौकरी में बहुत संघर्ष कर रहे हैं उन्हें सफलता मिलेगी। इसे अपने बैग या पढ़ने की मेज या कार्य करने वाली मेज पर भी रख सकते हैं।
घबराहट व सिरदर्द की समस्या है तो
इस यंत्र को सादे कागज पर हल्दी का रंग बनाकर लिखें। लिखते समय 'ॐ' का जाप करते रहें। ऐसे कई सारे यंत्र बनाकर रख लें।
जब भी सिरदर्द, घबराहट या तनाव हो, तो इसे सिर पर बांधकर सो जाएं।
संपत्ति प्राप्ति के लिए
अनंतमूल की जड़ लें। उसे 'ॐ अं अंगारकाये नम:' की 11 मालाओं से सिद्ध करें। फिर उसे गले में पहनें। संपत्ति की समस्याएं समाप्त होंगी।
दुर्घटनाओं से बचने के लिए
अनंतमूल की जड़ तथा साबूत सुपारी लें। उसे महामृत्युंजय मंत्र की 11 मालाओं से सिद्ध करें। फिर उसे गले मे पहनें। यदि मारकेश भी लगा हो तो भी अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है, इसे घर में कोई भी व्यक्ति परेशानी या मारकेश के संकट के समय पहन सकता है। इसे उस व्यक्ति को भी जरूर पहनना चाहिए जिसके चोटें बहुत लगती हों।
धन प्राप्ति के लिए
ल्ल काली व सफेद गुंजा के दाने पूजा में रखकर कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें । इसे तीन बार लगातार करना होता है, इन दानों को हमेशा संभाल कर रखें।
ल्ल काली व सफेद गुंजा के दाने पूजा में रखकर 11 मालाएं ' ऊं श्रीं नम:' की जपें।
ल्ल एक और मंत्र देखें
ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं क्लीं ॐ वित्तेश्वराय नम:।
शिवजी के सम्मुख बैठकर इस मंत्र का जप सवा लाख बार करें और इस मंत्र को रात 11.39 से 12.30 के बीच में प्रारम्भ करके सवा लाख जाप पूरे होने तक करें, जिसमें कई दिन लगेंगे, पर गरीबी मिटाने में इस मंत्र का जवाब नहीं।
ल्ल बेलपत्र या अशोक या आक या बरगद के 11 पत्तों पर सिंदूर और हल्दी मिलाकर उस पर 'पं दं लं' लिखकर बहते जल में प्रवाहित करें। इसे शाम 6.56 से लेकर 8.13 बजे के बीच करें। ल्ल 

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गुंजा 'रत्ती' सात सौ रुपए किलो, ढूंढ़ रहे व्यापारीUpdated: Tue, 09 Dec 2014 03:01 AM (IST)


0 जिले में अपने आप उगने वाली उपेक्षित सबसे महंगा बीज

विश्वबंधु शर्मा/ सजन बंजारा-जशपुर/कोतबा (निप्र)। जिले में गुंजा जिसे रत्ती भी कहा जाता है, सबसे दुर्लभ वनस्पतियों के नाम के साथ ही सबसे महंगे बीज के रूप में सामने आया है। इस बीज को लेकर पहली बार चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस बीज को व्यापारी सात सौ रुपए किलो तक खरीदने को तैयार हैं और व्यापारी इस बीज को एडवांस में पैसे देकर भी खरीद रहे हैं।

गुंजा जिसे जिले में गूंज के नाम से लोग जानते हैं। नगरीय क्षेत्र के अधिकांश लोग गुंजा के बारे में जानकारी नहीं रखते, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में गुंजा ग्रामीणों के आय का महत्वपूर्ण हिस्सा बनते जा रहा है। जिले में गुंजा की बिक्री ऊंची कीमतों पर खरीदी जा रही है। गुंजा को मुख्य रूप से तीन प्रजातियों के लिए जाना जाता है, जिसका रंग सफेद, लाल-काला और भूरा रंग से है। सबसे ऊंची कीमत सफेद गुंजा की है, जिसके संकलनकर्ताओं को सात सौ रुपए किलो मिल रहे हैं। गुंजा की तीन प्रजातियां जिले में उपलब्ध हैं, जिसकी अलग-अलग कीमत है। सबसे अधिक कीमत सफेद गुंजा के बीज की है, जिसकी कीमत सात सौ रुपए है। प्रतिस्पर्धा में इसकी कीमत अधिक भी होती है। लाल रंग के गुंज की कीमत 70 रुपए किलो है। तीसरी प्रजाति कुछ काली और भूरे रंग लिए होती है उसकी कीमत तीन सौ रुपए किलो है। स्थानीय व्यापारी विजय ने बताया कि वे 10 साल से खरीदी कर बाहर के व्यापारियों को गुंजा बेच रहे हैं, लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि इसका उपयोग क्या है। उन्होंने बताया कि एक बात विचारणीय है कि इसके संकलन और बिक्री करने वाले परंपरागत रूप से ही लगे हैं।

दिसंबर माह में सबसे अधिक व्यवसाय

नवंबर और दिसंबर माह में बीज निकलते हैं और यही समय होता है, जब संकलनकर्ता इस बीज से आय अर्जित करते हैं। बड़े व्यापारियों को जब बीज के कीमत की जानकारी मिल रही है तो कई व्यापारी इस व्यवसाय में खुद को जोड़ने में लगे हैं और स्थिति यह है कि कोतबा, फरसाबहार ब्लाक, पत्थलगांव ब्लाक में व्यापारी ग्रामीणों को एडवांस के रूप में भी पैसे दे रहे हैं, जिससे संग्रहण उनकों मिले। पंड्रीपानी क्षेत्र की स्थिति यह है कि कई किसान अब इसके बीज को लगाने भी लगे हैं। किसान अपने खेतों व आसपास की झाड़ियों के नीचे इसके बीज को लगा रहे हैं। सवाल यह है कि इस बीज का व्यवसाय गुपचुप तरीके से ही क्यों हो रहा है। इस बात को लेकर कई सवाल भी सामने आते हैं, लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि दवाओं के रूप में ही इसका उपयोग होता है, जिसके कारण यह कीमती है। अधिकांश व्यापारियों को इस बात की जानकारी भी नहीं है कि यह कहां जाता है और एक के बाद एक व्यापारियों को यह बीज बेचे जा रहे हैं।

क्या है गुंजा

गुंजा को जिले के पत्थलगांव, फरसाबहार विकासखंड सहित अन्य क्षेत्र में गूंज के नाम से जाना जाता है। मुख्य रूप से इसके क्षेत्रीय व्यापारियों के साथ पत्थलगांव, धरमजयगढ़ व रायगड़ जिले में अधिक व्यापारी हैं। लता जाति की यह वनस्पति है, जिसमें फलियां होती हैं और पकने के बाद फलियां स्वयं फट जाती हैं, जिससे गुंजा का बीज निकलता है और यह बीज काफी कीमती हो रहा है, जिसका कारण इसकी दुर्लभता है। अंग्रेजी नाम कोरल बीड है। हिंदी में इसे गुंजा, चौटली, घुंघची, रत्ती आदि नामों से जाना जाता है। इसके संस्कृत नाम भी कई हैं, जिससे इसकी पौराणिकता भी स्पष्ट होती है। कुछ राज्यों में राज्य की भाषाओं में अलग-अलग नामों से भी यह प्रचलित है। वहीं फारसी में गुंजा को चश्मेखरूस और अरबी में हबसुफेद कहा जाता है। जिले में यह सड़कों के किनारे, निर्गुंडी के पौधों सहित अन्य पौधों और झाड़ियों में लताओं में स्वयं बढ़ता है।

औषधि निर्माण में होता है उपयोग

वनस्पतियों एंव आयर्ुेवेद के जानकार भूपेंद्र थवाईत ने बताया कि आयुर्वेद में गुंजा का विशेष महत्व है और पेट से संबंधित रोगों के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। यह क्षेत्र में अत्यंत दुर्लभ वनस्पतियों में है और विशेष क्षेत्र में होने के कारण ही इसकी ऊंची कीमत है। उन्होंने बताया कि इसके जड़ और पत्तों का भी विशेष महत्व होता है और पत्ते और जड़ भी ऊंचे दामों मे बिकते हैं। पत्थलगांव के व्यापारी मो. हनीफ मेमन ने बताया कि छग में इसके उपयोग संबंधी जानकारी नहीं के बराबर है, लेकिन इसकी दिल्ली व महानगरों में अधिक मांग होती है। सबसे अधिक उपयोग गुंजा का हाजमे की दवा बनाने में किया जाता है और आयुर्वेद की दवा बनाने वाली कंपनियां इसे ऊंची कीमतों में खरीदते हैं।
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5 comments:


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