Thursday, January 14, 2016

2>=सांख्य-1 भारतीय दर्शन2 अचित् तथा चित्पुरुष3 +Phyमतवाद+वेदों कीमौलिक शिक्षाये+मृत्यु रहस्ययमराज द्वारा

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1--------भारतीय दर्शन - सांख्य - अचित् प्रकृति तथा चित् पुरुष - 2
2--------भारतीय दर्शन - सांख्य - अचित् प्रकृति तथा चित् पुरुष - 2
3--------सांख्य - अचित् प्रकृति तथा चित् पुरुष - 3
4--------हिन्दू धर्म के बिषय में Philosophers मतवाद  
5--------वेदों की कुछ मौलिक शिक्षाये – संस्कृति।
6--------यमराज द्वारा बताये मृत्यु रहस्य
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2> सांख्य -भारतीय दर्शन -

1> सांख्य - अचित् प्रकृति तथा चित् पुरुष - 1 +2 + 3

भारतीय दर्शन - अचित् प्रकृति तथा चित् पुरुष - 1
भारतीय संस्कृति में किसी समय सांख्य दर्शन का अत्यंत ऊँचा स्थान था। उदात्त मस्तिष्क सांख्य की विचार पद्धति से सोचते थे। वस्तुत: महाभारत में दार्शनिक विचारों की जो पृष्ठभूमि है, उसमें सांख्यशास्त्र का महत्वपूर्ण स्थान है। सांख्य दर्शन का प्रभाव गीता में प्रतिपादित दार्शनिक पृष्ठभूमि पर पर्याप्त रूप से विद्यमान है।

इस दर्शन ने जीवन में दिखाई पड़ने वाले वैषम्य का समाधान त्रिगुणात्मक प्रकृति की सर्वकारण रूप में प्रतिष्ठा करके बड़े सुंदर ढंग से किया। सांख्याचार्यों के इस प्रकृति-कारण-वाद का महान गुण यह है कि पृथक्-पृथक् धर्म वाले सत्, रजस् तथा तमस् तत्वों के आधार पर जगत् की विषमता का किया गया समाधान बड़ा बुद्धिगम्य प्रतीत होता है। किसी लौकिक समस्या को ईश्वर का नियम न मानकर इन प्रकृतियों के तालमेल बिगड़ने और जीवों के पुरुषार्थ न करने को कारण बताया गया है। "त्रिगुणात्मिका प्रकृति नित्य परिणामिनी है। उसके तीनों गुण ही सदा कुछ न कुछ परिणाम उत्पन्न करते रहते हैं, पुरुष अकर्ता है" - सांख्य का यह सिद्धांत गीता के निष्काम कर्मयोग का आवश्यक अंग बन गया है

सांख्य दर्शन की सबसे बड़ी महानता यह है कि इसमें सृष्टि की उत्पत्ति भगवान के द्वारा नहीं मानी गयी है बल्कि इसे एक विकासात्मक प्रक्रिया के रूप में समझा गया है और माना गया है कि सृष्टि अनेक अनेक अवस्थाओं से होकर गुजरने के बाद अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त हुई है। कपिलाचार्य को कई अनीश्वरवादी मानते हैं पर भग्वदगीता और सत्यार्थप्रकाश जैसे ग्रंथों में इस धारणा का निषेध किया गया है।
भारतीय दर्शन के छः प्रकारों में से सांख्य एक है जो प्राचीनकाल में अत्यंत लोकप्रिय तथा प्रथित हुआ था। यह अद्वैत वेदान्त से सर्वथा विपरीत मान्यताएँ रखने वाला दर्शन है। इसकी स्थापना करने वाले मूल व्यक्ति कपिल कहे जाते हैं। 'सांख्य' का शाब्दिक अर्थ है - 'संख्या सम्बंधी' या विश्लेषण, वस्तुत: इसका अर्थ तत्व ज्ञान है।। इसकी सबसे प्रमुख धारणा सृष्टि के प्रकृति-पुरुष से बनी होने की है, यहाँ प्रकृति (यानि पञ्चमहाभूतों से बनी) जड़ है और पुरुष (यानि जीवात्मा) चेतन। 


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2** भारतीय दर्शन - सांख्य - अचित् प्रकृति तथा चित् पुरुष - 2

सांख्य दृश्यमान विश्व को प्रकृति-पुरुष मूलक मानता है। उसकी दृष्टि से केवल चेतन या केवल अचेतन पदार्थ के आधार पर इस चिदविदात्मक जगत् की संतोषप्रद व्याख्या नहीं की जा सकती। इसीलिए लौकायतिक आदि जड़वादी दर्शनों की भाँति सांख्य न केवल जड़ पदार्थ ही मानता है और न अनेक वेदांत संप्रदायों की भाँति वह केवल चिन्मात्र ब्रह्म या आत्मा को ही जगत् का मूल मानता है। अपितु जीवन या जगत् में प्राप्त होने वाले जड़ एवं चेतन, दोनों ही रूपों के मूल रूप से जड़ प्रकृति, एवं चिन्मात्र पुरुष इन दो तत्वों की सत्ता मानता है।
जड़ प्रकृति सत्व, रजस एवं तमस् - इन तीनों गुणों की साम्यावस्था का नाम है। ये गुण "बल च गुणवृत्तम्" न्याय के अनुसार प्रति क्षण परिगामी हैं। इस प्रकार सांख्य के अनुसार सारा विश्व त्रिगुणात्मक प्रकृति का वास्तविक परिणाम है। शंकराचार्य के वेदांत की भाँति भगवन्माय: का विवर्त, अर्थात् असत् कार्य अथवा मिथ्या विलास नहीं है। इस प्रकार प्रकृति को पुरुष की ही भाँति अज और नित्य मानने तथा विश्व को प्रकृति का वास्तविक परिणाम सत् कार्य मानने के कारण सांख्य सच्चे अर्थों में बाह्यथार्थवादी या वस्तुवादी दर्शन हैं। किंतु जड़ बाह्यथार्थवाद भोग्य होने के कारण किसी चेतन भोक्ता के अभाव में अपार्थक या अर्थशून्य अथवा निष्प्रयोजन है, अत: उसकी सार्थकता के लिए सांख्य चेतन पुरुष या आत्मा को भी मानने के कारण अध्यात्मवादी दर्शन है।

मूलत: दो तत्व मानने पर भी सांख्य परिणामिनी प्रकृति के परिणामस्वरूप तेईस अवांतर तत्व भी मानता है। तत्व का अर्थ है 'सत्य ज्ञान'। इसके अनुसार प्रकृति से महत् या बुद्धि, उससे अहंकार, तामस, अहंकार से पंच-तन्मात्र (शब्द, स्पर्श, रूप, रस तथा गंध) एवं सात्विक अहंकार से ग्यारह इंद्रिय (पंच ज्ञानेंद्रिय, पंच कर्मेंद्रिय तथा उभयात्मक मन) और अंत में पंच तन्मात्रों से क्रमश: आकाश, वायु, तेजस्, जल तथा पृथ्वी नामक पंच महाभूत, इस प्रकार तेईस तत्व क्रमश: उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार मुख्यामुख्य भेद से सांख्य दर्शन 25 तत्व मानता है। जैसा पहले संकेत कर चुके हैं,
प्राचीनतम सांख्य ईश्वर को 26वाँ तत्व मानता रहा होगा। इसके साक्ष्य महाभारत, भागवत इत्यादि प्राचीन साहित्य में प्राप्त होते हैं। यदि यह अनुमान यथार्थ हो तो सांख्य को मूलत: ईश्वरवादी दर्शन मानना होगा। परंतु परवर्ती सांख्य ईश्वर को कोई स्थान नहीं देता। इसी से परवर्ती साहित्य में वह निरीश्वरवादी दर्शन के रूप में ही उल्लिखित मिलता है।
भारतीय साहित्य पर साँख्य के अनुपम प्रभाव का लाभ उठाने की भावना से अनीश्वरवादी बोद्ध विद्वानों ने अपने उदय काल, व् उसके पश्चात उक्त विचार के प्रभाव में मध्य-कालिक विद्वानों द्वारा साँख्य के ईश्वरासिद्धेः सूत्र के वास्तविक आर्थ समझने में भ्रान्ति हो जाने के कारण इस विचार को काफी हवा दी गयी और इस आधार पर कपिल को अनीश्वरवादी मान लिया गया। जबकि यह सत्य नहीं है.
इस विषय पर आगे और है.

सांख्य दर्शन के २५ तत्व

आत्मा (पुरुष)
अंत:करण (4) : मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार
ज्ञानेन्द्रियाँ (5) : नासिका, जिह्वा, नेत्र, त्वचा, कर्ण
कर्मेन्द्रियाँ (5) : पाद, हस्त, उपस्थ, पायु, वाक्
तन्मात्रायें (5) : गन्ध, रस, रूप, स्पर्श, शब्द
महाभूत (5) : पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश

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3**सांख्य - अचित् प्रकृति तथा चित् पुरुष - 3
अब ध्यान लगाए तीन गुणों पर सत्व, रजस और तमस - सत्व उज्जवल प्रकाश है, रज लाल प्रकाश है व् तम अँधेरा या प्रकाश रहित अवस्था है.
प्रकाश रहित तम भी उतना ही गुण है जितना सत्व या रज पर उनकी प्रकृति भिन्न है. हम अपने जीवन में कई बार या एक ही दिन में कई बार इन
तीनो गुणों से गुजर सकते हैं. सत्व को अधिक रजस तत्व मिले तो वह भी रजस बन सकता है, कई बार अधिक रजस हो तो वह सत्व भी तम बन सकता है. एक साधारण उदाहरण लेते हैं, आप कुछ सफ़ेद चावल के दाने, अग्नि पर रखकर उबाले, जरा सी अग्नि से वह चावल अपना थोड़ा सा रूप बदल लेंगे और आप उन्हें खा सकते हैं, अब इन्ही चावलों को अग्नि पर १० से १३ मिनट रहने दे वो कुछ देर में अपना रूप सफ़ेद से काले रंग में बदल लेंगे और अब वह सत्व भोजन कोयला जैसे हो गया. इसी प्रकार जीवन के हर पहलु में, हर पदार्थ, हर धातु, खनिज, रासायन से लेकर मनो के भाव भी इन्ही गुणों से परिवर्तित होते रहते हैं.
कई लोग, समाज, पशु, मान्यताये भी इन तीनो गुणों से गुजर सकते हैं.कई समाज या लोग अपने कर्मो के कारण एक लम्बे समय तक एक ही गुण से लिप्त रहते हैं. किसी मूर्ख जड़ "महात्मा" की जिद किसी पुरे समुदाय या समाज की तमस अवस्था बन जाती है और किसी स्तिथि व् समय में एक ऋषि की प्रेरणा से रजस गुण को अपनाया जाता है. युद्ध को टाला या उद्वेलित कर दुश्मन को खदेडा जा सकता है.
उसी प्रकार किसी युग अथवा समय में पवित्रता व् आत्म तत्व की प्रबलता होने पर सत्व युग या अध्याय भी आरम्भ हो जाता है.
आत्मा के बल से हम इन तीनो गुणों में किसी एक को चुन भी सकते हैं या किसी एक की प्रधानता होने पर उसे कम कर किसी दूसरे गुण में जा जाने का प्रयास कर सकते हैं.
इस विषय पर आगे भी हम बात करेंगे ताकि हम जान सके के किस तरह हम अपनी दिनचर्या व जीवन में इन गुणों की प्रकृति को समझ व् अंतरज्ञान से अपने अंतर् जगत व् बाहरी जगत में स्थायी परिवर्तन ला सकते हैं. उदाहरण के लिए हमारा मन शरीर व आत्मा एक ही या अलग समय
में इन तीनो गुणों में से किसी एक गुण से प्रभावित होकर काफी समय व्यर्थ में गवा देते है और इस तत्व को न समझ कर हम अपने मन या शरीर या आत्मा को व्याधि या बीमारी से लिप्त बना देते हैं. जब आपको इन मूल प्रकृति के तीनो आंतरिक गुणों की समझ होगी - आप अपने जीवन को
जिस तरफ ले जाना चाहे ले जा सकते हैं. तो सांख्य के दर्शन को समझने के लिए अब हम उसके तत्वों को समझने का प्रयास करते हैं.
आप इन्हे ध्यान से पढ़े या लिख कर इन पर विचार मनन करें.

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4> हिन्दू धर्म के बिषय में Philosophers मतवाद  

       पश्चिमी philosophers को मतवाद 

1. लियो टॉल्स्टॉय (1828 -1910):
   "हिन्दू शरीयत ही एक दिन दुनिया पर राज करेगी क्योंकि इसी में ज्ञान और बुद्धि का संयोजन है"।

2. हर्बर्ट वेल्स (1846 - 1946):
  " हिन्दू का अनावरण फिर उगता होने तक कितनी पीढ़ियां अत्याचार और जीवन कट जाएगा तभी पूरी दुनिया उसकी 
    ओर आकर्षित हो जाएगी और उसी दिन ही दिल शाद होंगे और उसी दिन दुनिया आबाद होगी सलाम हो उस दिन "।

3. अल्बर्ट आइंस्टीन (1879 - 1955):
   "मैं समझता हूँ कि हिन्दूओ ने अपनी बुद्धि और जागरूकता के माध्यम से वह किया जो यहूदी न कर सके, हिन्दू
    मे ही वह शक्ति है जिससे शांति स्थापित हो सकती है"।

4. हसटन स्मिथ (1919):
   "जो विश्वास पर हम इससे बेहतर कुछ भी दुनिया में है और वे हिन्दू है अगर हम अपना दिल और दिमाग इसके 
    लिए खोलें तो उसमें हमारी भलाई होगी"।

5. माइकल नोस्टरीडाम (1503 - 1566):
   " हिन्दू ही यूरोप में शासक धर्म बन जाएगा बल्कि यूरोप के प्रसिद्ध शहर हिन्दू राजधानी बन जाएगा"।

6. बर्टरांड रोसल (1872 - 1970):
   "मैंने हिन्दू को पढ़ा और जान लिया कि यह सारी दुनिया और सारी मानवता का धर्म बनने के लिए आया है,
    हिन्दू यूरोप में फैल जाएगा और यूरोप में हिन्दू के बड़े दाई सामने आएंगे एक दिन ऐसा आएगा कि हिन्दू ही 
    दुनिया की वास्तविक उत्तेजना होगा "।

7. गोस्टा लोबोन (1841 - 1931):
  " हिन्दू ही सुलह और सुधार की बात करता है सुधार ही विश्वास की सराहना में ईसाइयों को ही आमंत्रित किया हूँ"।

8.बरनार्डशो (1856 - 1950):
  "सारी दुनिया एक दिन हिन्दू धर्म स्वीकार कर लेगी, अगर यह वास्तविक नाम स्वीकार नहीं भी कर ले रूपक 
   नाम से ही स्वीकार कर लेगी, पश्चिम एक दिन हिन्दू स्वीकार कर लेगा और हिन्दूही दुनिया में पढ़े लिखे लोगों 
    का धर्म होगा "।

9. जोहान गीथ (1749 - 1832):
   "हम सभी को अभी या बाद मे हिन्दू धर्म स्वीकार करना होगा यही असली धर्म है, मुझे कोई हिन्दू कहे तो
    मुझे बुरा नहीं लगेगा, मैं यह सही बात को स्वीकार करता हू ।

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5>वेदों की कुछ मौलिक शिक्षाये – संस्कृति।

वेद भारत की सबसे प्राचीन पुस्तकें मानी जाती हैं। वेदों में वर्णित ज्ञान को हमेशा से ही उत्तम माना जात रहा है। भारत जो कि हिन्दुस्थान भी कहा जाता है, अधिकतर यहां सनातन धर्म के अनुयायी हैं। आज हम आपको वेदों की कुछ बहुत ही उत्तम मौलिक शिक्षाये बताने जा रहे हैं जिन्हें आत्मसात करने पर मानव अपने जीवन को कल्याण कारी बना सकता है।
वेदो की कुछ मौलिक शिक्षाये..

1. हे भगवन ! हम सत्य का पालन करे, झूठ के पास भी न जावे। (ऋ० ८।६२।१२)
2. उत्तम मति, उत्तम कृति और उत्तम उक्ति का सदा मानव में स्थान होना चाहिए। (ऋ० १०।१९१।१-४)
3. सभा और समिति राजा की पुत्री के सामान हैं। इनमे बैठने पर सत्य और उचित ही सम्मति देनी चाहिए। (अथर्व० ७।१२।१)
4. ऋत की प्रकाशरश्मियाँ पूर्ण हैं। ऋत का ज्ञान बुरे कर्मो से बचाता है। (ऋ० ४।२३।८)
5. इन्द्रियां परमेश्वर को नहीं प्राप्त कर सकती हैं। (यजु० ४०।४)
6. प्रजा के पालक परमेश्वर ने सत्य और असत्य के स्वरुप का व्याकरण कर सत्य में श्रद्धा और असत्य में अश्रद्धा धारण करने का उपदेश             किया है। (यजु० १९।७७)
7. अपने ज्ञान और कर्म से मनुष्य परमेश्वर का भक्त बनता है और इन्ही से दुर्गणों से भी दूर रहता है। (ऋ० ५।४५।११)
8. कुटिल कर्म अथवा उलटे कर्म का नाम ही पाप है। (ऋ० १।१८९।१)
9. हमारा मन सदा उत्तम विचारो वाला ही हो। (यजु० ३४।१)
10. अतपस्वी मनुष्य कच्ची बुद्धि का होता है अतः वह उस परमेश्वर को नहीं प्राप्त कर सकता है। (ऋ० ९।८३।१)
11. यह शरीर अंत में भस्म हो जाने वाला है। हे जीवात्मन ! तू अपना, अपने कर्म और ओ३म का स्मरण कर। (यजु० ४०।१५)
12. सत्य, बृहत, ऋत, उग्र, तपस, दीक्षा, ब्रह्म और यज्ञ पृथ्वी का धारण करते हैं।
13. मनुष्य बनो और उत्तम संतानो को उत्पन्न करो। (ऋ० १०।११४।१०)
14. बहुत संतानो वाला दुःख को प्राप्त होता है। (ऋ० १।१६४।३२)
15. आत्मघाती अंधकारमय लोको को प्राप्त होता है। (यजु० ४०।३)
16. सब दिशाए हमारे लिए मित्रवत होवे। (अथर्व० १९।५।६)
17. ब्रह्मचर्य और तप से विद्वान लोग मृत्यु को पार करते हैं।
18. हम सदा ज्ञान के अनुसार चले कभी भी इसका विरोध न करे। (अथर्व० १।९।४)
19. अपने कानो से हम सदा अच्छी वस्तु सुने, आँखों से अच्छी ही वस्तु को देखे, सदा हष्ट पुष्ट शरीर से स्तुति करे और समस्त आयु उत्तम कर्म के लिए ही हो। (यजु० २५।२१)
20. उत्तम कर्म करने वालो का किया हुआ उत्तम कर्म हमारे लिए कल्याणकारी हो। (ऋ० ७।९५।४)


हमारा ऋग्वेद हमे बाटकर खाने को कहता है !1. हे भगवन ! हम सत्य का पालन करे, झूठ के पास भी न जावे। (ऋ० ८।६२।१२
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6>यमराज द्वारा बताये मृत्यु रहस्य
हम सभी जानते हैं कि हम अमर नहीं हैं और एक दिन हमें मरना है। काल की घड़ी में धनी राज या भिखारी का एक ही स्थान है। जब भी मृत्यु का विषय आता है, चर्चा काफी रोचक हो जाती है क्योकि सभी मृत्यु के बारे में और जानना चाहते हैं। लोग मृत्यु के बारे में सब कुछ जानने के लिये जिज्ञासु हो जाते हैं। जो लोग ऐसी चीजों के बारे में जानना चाहते हैं वो सही जगह पर आये हैं क्योकि बोल्डस्की मृत्यु के देवता यमराज द्वारा मृत्यु के बारे में बताये गये कुछ छिपे रहस्यों को उजागर कर रहा है। प्रचीन धर्मग्रन्थों के अनुसार मृत्यु और आत्मा के रहस्यों के बारे में यमराज और नचिकेत नामक बालक के बीच चर्चा हुई थी। यहाँ पर कुछ रहस्यों को उजागर किया जा रहा है जिन्हें मृत्यु के देवता यमराज द्वारा नचिकेत को बताया गया था। नचिकेत के वरदान – जब नचिकेत यमराज से मिलने गये तो उन्हों ने तीन वरदान माँगे। पहले वरदान में पिता के प्रेम की कामना, दूसरे में अग्नि विद्या का ज्ञान और तीसरे में मृत्यु और आत्मा का ज्ञान माँगा। यमराज अन्तिम वरदान को नहीं पूरा करना चाहते थे लेकिन बालक ने हठ किया। इसलिये यमराज मृत्यु के बाद क्या होता है, इसके रहस्योद्घाटन के लिये तैयार हो गये।रहस्योद्घाटन – धर्मग्रन्थों के अनुसार यमराज ने बताया कि ओउम (ओंकार) परमात्मा का स्वरूप है। उन्होंने यह भी बताया कि मनुष्य के हृदय में ब्रह्मा का वास होता है।आत्मा – यमराज ने कहा कि आत्मा मनुष्य की मृत्यु के बाद भी नहीं मरती। संक्षेप में, शरीर का आत्मा के विनाश से कोई सम्बन्ध नहीं है। आत्मा कभी जन्म नहीं लेती न मरती है।ब्रह्मरूप – मृत्यु के बाद मनुष्य जन्म-मत्यु के चक्र को पूरा करता है। इसका मतलब यह है कि मनुष्य जन्म-मत्यु के चक्र अर्थात ब्रहम रूप से मुक्त हो जाता है।ईश्वरीय शक्ति – यमराज ने कहा कि जो लोग ईश्वर में आस्था नहीं रखते और नास्तिक होते हैं वे मृत्यु के बाद भी शान्ति की तलाश में रहते है। उनकी आत्मायें भी शान्ति की तलाश करती है।
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