Sunday, February 21, 2016

21>আরতি কি==+आरतीकेबाद क्योंकर्पूरगौरमंत्र==+बिल्व पत्र का महत्व====>( 1 to 3 )

21>आ =Post=21>***আরতি কি***( 1 to 3 )

1--------------------আরতি কি? এবং কেন আরতি করা হয়?
2--------------------जानिए आरती के बाद क्यों बोलते है कर्पूरगौर मंत्र
3>-----------बिल्व पत्र का महत्व
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1>==আরতি কি? এবং কেন আরতি করা হয়?
আরতিকে নীরাজন বলা হয়। একান্ত মনো নিবেশ করিয়া ভগবান কে ধূপ, দীপ, পুষ্প, প্রদীপ, চামর, অর্ঘ্যপাত্র, ধৌতবস্এ, ব্যজন ইত্যাদি দ্বারা ভগবান কে আরোতি করতে
হয়।
শ্রী বিগ্রহের পদতলে ৪ বার, নাভিদেশে ২ বার, মুখমন্ডোলে ৩ বার, সর্বএ গাত্রকে ৭ বার করিয়া এক এক প্রকারের আরোতি করা হয়।
স্বয়ং দেবাদিদেব মহাদেব পার্বতী দেবী কে বলেছেন যে, ভগবানের পূজা যদি মন্ত্রহীন বা ক্রীয়া হীন হয়, তবে তাআরোতীর দ্বারা সর্বপ্রকারে সম্পূর্ণতা প্রাপ্ত হয়।
স্কন্দ-পুরানে বনর্না আছে যে কেউ যদি আরতি দর্শন করেন বা আরতিতে অংশগ্রহণ করেন,নৃত্য করেন তাহলে ঐ ব্যক্তি কোটি কোটি বছরের সন্চিত সমস্ত পাপ থেকে মুক্ত হন। তিনি যদি এমনকি ব্রক্ষহত্যার মতো জগন্যতম পাপ থেকে
মুক্ত হন।
তন্ত্রশাস্রে বলা হয়েছে,ভগবানের আরোতির পরে কেউ পুষ্প ও প্রদীপ, ধূপ নাসারন্ধ্রে প্রবেশ বা গাত্রকে আভা গ্রহন করলে তাঁর সমস্থ পাপের বন্ধন থেকে মুক্ত হন।
বরাহ পুরানে বলা হয়েছে যে,কেউ যদি আরতির সময় শ্রী ভগবানের শ্রী বিগ্রহ বা মুখমন্ডল আনন্দ ভাবে দর্শন করেন, শ্রী যমরাজ তাকে দেখে ভয় পায় এবং মৃত্যুর পর
তার বৈকুণ্ঠধাম প্রাপ্ত হয়।
তাই আমাদের সকলের কর্তব্য বা উচিত শ্রী ভগবানের আরতিতে অংশগ্রহণ, কির্তন, দর্শন,ও নৃত্য করন। তাতে ভগবান সন্তুষ্ট ও খুব খুশি হন।
যখন ভগবানের আরতি করা হয়, সকল দেব ও দেবী সেখানে উপস্থিথ হইয়া ভগবানের আরতি দর্শন করেন।তবে অনুরোধ কেউ আরতি চলাকালীন ভগবান কে প্রনাম করবেন না, তাহলে তার পরম আয়ু কমে যাবে, তিনি রোগ গ্রস্থ হবেন।


আরতি কি? এবং কেন আরতি করা হয়
13>=Aআরতি কি? এবং কেন আরতি করা হয়?আরতিকে নীরাজন বলা হয়। একান্ত মনো নিবেশ করিয়া ভগবান কে ধূপ, দীপ, পুষ্প, প্রদীপ, চামর, অর্ঘ্যপাত্র, ধৌতবস্এ, ব্যজন ইত্যাদি দ্বারা ভগবান কে আরোতি করতে
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2>=जानिए आरती के बाद क्यों बोलते है कर्पूरगौर मंत्र

जानिए आरती के बाद क्यों बोलते हैं कर्पूरगौरं.. मंत्र ?

किसी भी मंदिर में या हमारे घर में जब भी पूजन कर्म होते हैं तो वहां कुछ मंत्रों का जप अनिवार्य रूप से
किया जाता है। सभी देवी-देवताओं के मंत्र अलग-अलग हैं, लेकिन जब भी आरती पूर्ण होती है तो यह मंत्र
विशेष रूप से बोला जाता है-

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।

ये है इस मंत्र का अर्थ

इस मंत्र से शिवजी की स्तुति की जाती है। इसका अर्थ इस प्रकार है-
कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।

करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।

संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं।

भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।

सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में

निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।

मंत्र का पूरा अर्थ- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण

वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी

सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।

यही मंत्र क्यों....?

किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारं....मंत्र ही क्यों बोला जाता है, इसके पीछे

बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गाई हुई

मानी गई है। अमूमन ये माना जाता है कि शिव शमशान वासी हैं, उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी

वाला है। लेकिन, ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य है। शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है,

वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव

हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति। ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का

अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे। शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं। हमारे मन

में शिव वास करें, मृत्यु का भय दूर हो।

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3>बिल्व पत्र का महत्व

एस्ट्रोलॉजी हाउस :-बिल्व पत्र का महत्व बिल्व तथा श्रीफल नाम से प्रसिद्ध (famous) यह फल 
बहुत ही काम का है। यह जिस पेड़ (tree) पर लगता है वह शिवद्रुम भी कहलाता है। बिल्व का 
पेड़ संपन्नता का प्रतीक, बहुत पवित्र तथा समृद्धि देने वाला है। बेल के पत्ते शंकर जी 
(shiv shanker ji) का आहार माने गए हैं, इसलिए भक्त लोग बड़ी श्रद्धा से इन्हें महादेव के ऊपर
 चढ़ाते हैं। शिव की पूजा के लिए बिल्व-पत्र बहुत ज़रूरी माना जाता है। शिव-भक्तों का विश्वास है 
कि पत्तों (leaves) के त्रिनेत्रस्वरूप् तीनों पर्णक शिव के तीनों नेत्रों को विशेष प्रिय हैं।
2=भगवान शंकर का प्रियभगवान शंकर को बिल्व पत्र बेहद प्रिय हैं। भांग धतूरा और बिल्व पत्र से 
प्रसन्न होने वाले केवल शिव ही हैं। शिवरात्रि (shiv ratri) के अवसर पर बिल्वपत्रों से विशेष रूप 
से शिव की पूजा की जाती है। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र आसानी से उपलब्ध (easily available)
 हो जाते हैं, 
किंतु कुछ ऐसे बिल्व पत्र भी होते हैं जो दुर्लभ पर चमत्कारिक और अद्भुत होते हैं।
3=बिल्वाष्टक और शिव पुराणबिल्व पत्र का भगवान शंकर के पूजन (poojan) में विशेष महत्व (special importance) है जिसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। बिल्वाष्टक और शिव पुराण में 
इसका स्पेशल उल्लेख है। 
अन्य कई ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। भगवान शंकर एवं पार्वती को बिल्व पत्र चढ़ाने का 
विशेष महत्व है।
4=मां भगवती को बिल्व पत्रश्रीमद् देवी भागवत में स्पष्ट वर्णन है कि जो व्यक्ति मां 
भगवती (ma bhagwati) को बिल्व पत्र अर्पित करता है वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में 
दुखी नहीं होता। 
उसे हर तरह की सिद्धि प्राप्त होती है और कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और वह भगवान 
भोले नाथ का प्रिय भक्त हो जाता है। उसकी सभी इच्छाएं (wishes) पूरी होती हैं और अंत में मोक्ष 
की प्राप्ति होती है।
5=बिल्व पत्र के प्रकारबिल्व पत्र चार प्रकार के होते हैं – अखंड बिल्व पत्र, तीन 
पत्तियों के बिल्व पत्र, छः से 21 पत्तियों तक के बिल्व पत्र और श्वेत बिल्व पत्र। इन सभी बिल्व 
पत्रों का अपना-अपना आध्यात्मिक महत्व (spiritual importance) है। आप हैरान हो जाएंगे ये 
जानकर की कैसे ये बेलपत्र आपको भाग्यवान बना सकते हैं और लक्ष्मी कृपा दिला सकते हैं।
6=अखंड बिल्व पत्रइसका विवरण बिल्वाष्टक में इस प्रकार है – ‘‘अखंड बिल्व पत्रं नंदकेश्वरे सिद्धर्थ लक्ष्मी’’। यह अपने आप में लक्ष्मी सिद्ध है। एकमुखी रुद्राक्ष के समान ही इसका अपना विशेष महत्व है। 
यह वास्तुदोष का निवारण भी करता है। इसे गल्ले में रखकर नित्य पूजन करने से व्यापार में चैमुखी 
विकास होता है।
7=तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्रइस बिल्व पत्र के महत्व का वर्णन भी बिल्वाष्टक में आया है जो इस 
प्रकार है- ‘‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् त्रिजन्म पाप सहारं एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम’’ यह 
तीन गणों से युक्त होने के कारण भगवान शिव को प्रिय है। इसके साथ यदि एक फूल धतूरे का चढ़ा 
दिया जाए, तो फलों (fruits) में बहुत वृद्धि होती है।
8=तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्रइस तरह बिल्व पत्र अर्पित करने से भक्त को धर्म, अर्थ, काम और 
मोक्ष की प्राप्ति होती है। रीतिकालीन कवि ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है- ‘‘देखि त्रिपुरारी की 
उदारता अपार कहां पायो तो फल चार एक फूल दीनो धतूरा को’’ भगवान आशुतोष त्रिपुरारी भंडारी 
सबका भंडार भर देते हैं।
9=तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्रआप भी फूल चढ़ाकर इसका चमत्कार स्वयं देख सकते हैं और सिद्धि 
प्राप्त कर सकते हैं। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र में अखंड बिल्व पत्र भी प्राप्त हो जाते हैं। कभी-कभी 
एक ही वृक्ष पर चार, पांच, छह पत्तियों वाले बिल्व पत्र भी पाए जाते हैं। परंतु ये बहुत दुर्लभ हैं।
10=छह से लेकर 21 पत्तियों वाले बिल्व पत्रये मुख्यतः नेपाल (nepal) में पाए जाते हैं। पर भारत (india) में भी कहीं-कहीं मिलते हैं। जिस तरह रुद्राक्ष कई मुखों वाले होते हैं उसी तरह बिल्व पत्र 
भी कई पत्तियों वाले होते हैं।
11=श्वेत बिल्व पत्रजिस तरह सफेद सांप, सफेद टांक, सफेद आंख, सफेद दूर्वा आदि होते हैं 
उसी तरह सफेद बिल्वपत्र भी होता है। यह प्रकृति (nature) की अनमोल देन है। इस बिल्व पत्र 
के पूरे पेड़ पर श्वेत पत्ते पाए जाते हैं। इसमें हरी पत्तियां नहीं होतीं। इन्हें भगवान शंकर को अर्पित 
करने का विशेष महत्व है।
12=कैसे आया बेल वृक्षबेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में ‘स्कंदपुराण’ में कहा गया है कि एक बार 
देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत (mandaar mountain) पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं।
13=कांटों में भी हैं शक्तियाँकहा जाता है कि बेल वृक्ष के कांटों में भी कई शक्तियाँ समाहित हैं।
 यह माना जाता है कि देवी महालक्ष्मी का भी बेल वृक्ष में वास है। जो व्यक्ति शिव-पार्वती की पूजा 
बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है। 
‘शिवपुराण’ में इसकी महिमा विस्तृत रूप में बतायी गयी है।
14=ये भी है श्रीफलनारियल (coconut) से पहले बिल्व के फल को श्रीफल माना जाता था क्योंकि 
बिल्व वृक्ष लक्ष्मी जी का प्रिय वृक्ष माना जाता था। प्राचीन समय में बिल्व फल को लक्ष्मी और सम्पत्ति 
का प्रतीक मान कर लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए बिल्व के फल की आहुति दी जाती थी जिसका 
स्थान अब नारियल ने ले लिया है। प्राचीन समय से ही बिल्व वृक्ष और फल पूजनीय रहा है, पहले लक्ष्मी 
जी के साथ और धीरे-धीरे शिव जी के साथ।
15=यह एक रामबाण दवा भी हैवनस्पति में बेल का अत्यधिक महत्व है। यह मूलतः शक्ति का प्रतीक 
माना गया है। किसी-किसी पेड़ पर पांच से साढ़े सात किलो वजन वाले चिकित्सा विज्ञान में बेल का 
विशेष महत्व है। आजकल कई व्यक्ति इसकी खेती करने लगे हैं। इसके फल से शरबत, अचार और 
मुरब्बा आदि बनाए जाते हैं। यह हृदय रोगियों (heart patients) और उदर विकार से ग्रस्त लोगों के 
लिए रामबाण औषधि (medicine) है।
16=यह एक रामबाण दवा भी हैधार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों 
(mandir/temple) के पास लगाया जाता है। 
बिल्व वृक्ष की तासीर बहुत शीतल होती है। 
गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल का शर्बत बड़ा ही लाभकारी (helpful) होता है। 
यह शर्बत कुपचन, आंखों की रोशनी (eye sight) में कमी, पेट में कीड़े और लू लगने जैसी 
समस्या ओं से निजात पाने के लिए उत्तम है। 
औषधीय गुणों से परिपूर्ण बिल्व की पत्तियों मे टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम (magnesium) जैसे रसायन (chemical) पाए जाते हैं। 

क्या हैं बेल पत्र अथवा बिल्व-पत्र?बिल्व-पत्र एक पेड़ की पत्तियां हैं, जिस के हर पत्ते लगभग तीन-तीन 
के समूह में मिलते हैं। कुछ पत्तियां चार या पांच के समूह की भी होती हैं। किन्तु चार या पांच के समूह 
वाली पत्तियां बड़ी दुर्लभ होती हैं। बेल के पेड को बिल्व भी कहते हैं। बिल्व के पेड़ का विशेष धार्मिक 
महत्व हैं। शास्त्रोक्त मान्यता हैं कि बेल के पेड़ को पानी या गंगाजल से सींचने से समस्त तीर्थो का फल प्राप्त होता हैं एवं भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती हैं। 
बेल कि पत्तियों में औषधि गुण भी होते हैं। जिसके उचित औषधीय प्रयोग से कई रोग दूर हो जाते हैं। भारतिय संस्कृति में बेल के वृक्ष का धार्मिक महत्व हैं, क्योकि बिल्व का वृक्ष भगवान शिव का ही रूप है। धार्मिक ऐसी मान्यता हैं कि बिल्व-वृक्ष के मूल अर्थात उसकी जड़ में शिव लिंग स्वरूपी भगवान शिव का वास होता हैं। इसी कारण से बिल्व के मूल में भगवान शिव का पूजन किया जाता हैं। पूजन में इसकी मूल यानी जड़ को सींचा जाता हैं।
धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता हैं--
बिल्वमूले महादेवं लिंगरूपिणमव्ययम्।य: पूजयति पुण्यात्मा स शिवं प्राप्नुयाद्॥
बिल्वमूले जलैर्यस्तु मूर्धानमभिषिञ्चति।स सर्वतीर्थस्नात: स्यात्स एव भुवि पावन:॥ 
(शिवपुराण)भावार्थ: बिल्व के मूल में लिंगरूपी अविनाशी महादेव का पूजन जो पुण्यात्मा व्यक्ति करता है, उसका कल्याण होता है। जो व्यक्ति शिवजी के ऊपर बिल्वमूल में जल चढ़ाता है उसे सब तीर्थो में स्नान 
का फल मिल जाता है।

बिल्व पत्र तोड़ने का मंत्रबिल्व-पत्र को सोच-समझ कर ही तोड़ना चाहिए। बेल के पत्ते तोड़ने से पहले 
निम्न मंत्र का उच्चरण करना चाहिए- 
अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रियःसदा।गृह्यामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्॥ 
-(आचारेन्दु)भावार्थ: अमृत से उत्पन्न सौंदर्य व ऐश्वर्यपूर्ण वृक्ष महादेव को हमेशा प्रिय है। भगवान शिव की पूजा के लिए हे वृक्ष में तुम्हारे पत्र तोड़ता हूं।

कब न तोड़ें बिल्व कि पत्तियां?* विशेष दिन या विशेष पर्वो के अवसर पर बिल्व के पेड़ से पत्तियां तोड़ना निषेध हैं। 
* शास्त्रों के अनुसार बेल कि पत्तियां इन दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए-
* बेल कि पत्तियां सोमवार के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
* बेल कि पत्तियां चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथियों को नहीं तोड़ना चाहिए।
* बेल कि पत्तियां संक्रांति के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
अमारिक्तासु संक्रान्त्यामष्टम्यामिन्दुवासरे ।बिल्वपत्रं न च छिन्द्याच्छिन्द्याच्चेन्नरकं व्रजेत ॥ 
(लिंगपुराण)भावार्थ: अमावस्या, संक्रान्ति के समय, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी तिथियों तथा सोमवार के दिन बिल्व-पत्र तोड़ना वर्जित है।

चढ़ाया गया पत्र भी पूनः चढ़ा सकते हैं?
शास्त्रों में विशेष दिनों पर बिल्व-पत्र तोडकर चढ़ाने से मना किया गया हैं तो यह भी कहा गया है कि इन दिनों में चढ़ाया गया बिल्व-पत्र धोकर पुन: चढ़ा सकते हैं।
अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि चित्॥ 

(स्कन्दपुराण) और (आचारेन्दु)भावार्थ: अगर भगवान शिव को अर्पित करने के लिए नूतन बिल्व-पत्र 
न हो तो चढ़ाए गए पत्तों को बार-बार धोकर चढ़ा सकते हैं।
बेल पत्र चढाने का मंत्र भगवान शंकर को विल्वपत्र अर्पित करने से मनुष्य कि सर्वकार्य व मनोकामना सिद्ध होती हैं। 
श्रावण में विल्व पत्र अर्पित करने का विशेष महत्व शास्त्रो में बताया गया हैं। विल्व पत्र अर्पित करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए:
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।त्रिजन्मपापसंहार, विल्वपत्र शिवार्पणम्भावार्थ: 
तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पाप को संहार करने वाले हे शिवजी आपको त्रिदल बिल्व पत्र अर्पित करता हूं।
शिव को बिल्व-पत्र चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। 
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