Friday, February 19, 2016

14>जीवनकामूल्य+বিশ্বাসইবড়োধন+क्रोधाग्नि+गरीबीकेकारण+उपायघरमेंसुखसमृद्धि+आध्यात्मिकशिक्षा+येहीसत्यहैं+

14>आ =Post=14>***जीवनकामूल्य+বিশ্বাসইবড়োধন+क्रोधाग्नि***( 1 to 8)

1---------------------जीवन का मूल्य :
        1/a>प्राण क्या है , प्राण किसे कहते है ?
2----------------------বিশ্বাসই বড়ো ধন
3----------------------क्रोधाग्नि=क्रोध भी ज़रूरी, किन्तु समयसे।
4----------------------आज आपको गरीबी आने के कुछ कारण बताता हु ।
5-----------------------उपाय जो आपके घर में लाएंगे सुख-समृद्धि
6----------------------आध्यात्मिक शिक्षा का महत्व
7------------------------ |||||| "ये ही सत्य हैं" |||||
8------------------------जीवन का लेखा जोखा........

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 1>जीवन का मूल्य :
एक आदमी ने गुरुनानक साहब से पुछा : गुरूजी, जीवन का मूल्य क्या है?
गुरूनानक ने उसे एक Stone दिया और कहा : जा और इस stone का  मूल्य पता करके आ , लेकिन ध्यान रखना stone को बेचना नही है I
वह आदमी stone को बाजार मे
एक संतरे वाले के पास लेकर गया और बोला :
इसकी कीमत क्या है? संतरे वाला चमकीले stone को देख कर बोला, "12 संतरे  लेजा और इसे मुझे दे जा। "
आगे एक सब्जी वाले ने
उस चमकीले stone को देखा और कहा "एक बोरी आलू ले जा और  इस stone को मेरे पास छोड़ जा"
आगे एक सोना बेचने वाले के पास गया
उसे stoneदिखाया सुनार उस चमकीले stone को देखकर बोला, "50 लाख मे बेच दे" l
उसने मना कर दिया तो सुनार बोला "2 करोड़ मे दे दे या बता इसकी कीमत जो माँगेगा वह दूँगा तुझे..
उस आदमी ने सुनार से कहा मेरे गुरू ने इसे बेचने से मना किया है l
आगे हीरे बेचने वाले एक जौहरी के पास गया उसे stone दिखाया l
जौहरी ने जब उस बेसकीमती रुबी को देखा , तो पहले उसने रुबी के पास एक लाल कपडा  बिछाया फिर उस बेसकीमती रुबी की परिक्रमा लगाई माथा टेका l फिर जौहरी बोला ,
"कहा से लाया है ये बेसकीमती रुबी? सारी कायनात , सारी दुनिया को बेचकर भी इसकी कीमत  नही लगाई जा सकती ये तो बेसकीमती है l"
वह आदमी हैरान परेशान होकर सीधे गुरू के पास आया l
अपनी आप बिती बताई और बोला "अब बताओ गुरूजी, मानवीय जीवन का मूल्य क्या है?
गुरूनानक बोले : संतरे वाले को दिखाया उसने इसकी कीमत "12 संतरे" की बताई l
सब्जी वाले के पास गया उसने इसकी कीमत "1 बोरी आलू" बताई l आगे सुनार ने "2 करोड़" बताई l
और जौहरी ने इसे "बेसकीमती" बताया l अब ऐसा ही मानवीय मूल्य का भी है l तू बेशक हीरा है..!!
लेकिन, सामने वाला तेरी कीमत, अपनी औकात - अपनी जानकारी - अपनी हैसियत से लगाएगा।
घबराओ मत दुनिया में.. तुझे पहचानने वाले भी मिल जायेगे।
Respect Yourself, You are very Unique..
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1/a>प्राण क्या है , प्राण किसे कहते है ?

 हमने बहुत बार अपने जीवन में व्यवहारिक रूपसे “प्राण” शब्द का उपयोग किया है

, परंतु हमे प्राण की वास्तविकता के बारे मे शायद ही पता हो , अथवा तो हम भ्रांति
से यह मानते है की प्राण का अर्थ जीव या जीवात्मा होता है , परंतु यह सत्य नही
है , प्राण वायु का एक रूप है , जब हवा आकाश में चलती है तो उसे वायु कहते है
, जब यही वायु हमारे शरीर में 10 भागों में काम करती है तो इसे “प्राण” कहते
है , वायु का पर्यायवाचि नाम ही प्राण है ।
मूल प्रकृति के स्पर्श गुण-वाले वायु में रज गुण प्रदान होने से वह चंचल ,
गतिशील और अद्रश्य है । पंच महाभूतों में प्रमुख तत्व वायु है । वात् , पित्त
कफ में वायु बलिष्ठ है , शरीर में हाथ-पाँव आदि कर्मेन्द्रियाँ , नेत्र -
श्रोत्र आदि ज्ञानेन्द्रियाँ तथा अन्य सब अवयव -अंग इस प्राण से ही शक्ति पाकर
समस्त कार्यों का संपादन करते है . वह अति सूक्ष्म होने से सूक्ष्म छिद्रों
में प्रविष्टित हो जाता है । प्राण को रुद्र और ब्रह्म भी कहते है ।
प्राण से ही भोजन का पाचन , रस , रक्त , माँस , मेद , अस्थि , मज्जा , वीर्य ,
रज , ओज , आदि धातुओं का निर्माण , फल्गु ( व्यर्थ ) पदार्थो का शरीर से बाहर
निकलना , उठना , बैठना , चलना , बोलना , चिंतन-मनन-स्मरण-ध्यान आदि समस्त स्थूल
व् सूक्ष्म क्रियाएँ होती है . प्राण की न्यूनता-निर्बलता होने पर शरीर के अवयव
( अंग-प्रत्यंग-इन्द्रियाँ आदि ) शिथिल व रुग्ण हो जाते है . प्राण के बलवान्
होने पर समस्त शरीर के अवयवों में बल , पराक्रम
आते है और पुरुषार्थ , साहस , उत्साह , धैर्य ,आशा , प्रसन्नता , तप , क्षमा
आदि की प्रवृति होती है .
शरीर के बलवान् , पुष्ट , सुगठित , सुन्दर , लावण्ययुक्त , निरोग व दीर्घायु
होने पर ही लौकिक व आध्यात्मिक लक्ष्यों की पूर्ति हो सकती है . इसलिए हमें
प्राणों की रक्षा करनी चाहिए अर्थात शुद्ध आहार , प्रगाढ़ निंद्रा , ब्रह्मचर्य
, प्राणायाम आदि के माध्यम से शरीर को प्राणवान् बनाना चाहिए .
परमपिता परमात्मा द्वारा निर्मित १६ कलाओं में एक कला प्राण भी है . ईश्वर इस
प्राण को जीवात्मा के उपयोग के लिए प्रदान करता है . ज्यों ही जीवात्मा किसी
शरीर में प्रवेश करता है , प्राण भी उसके साथ शरीर में प्रवेश कर जाता है तथा
ज्यों ही जीवात्मा किसी शरीर से निकलता है , प्राण भी उसके साथ निकल जाता है .
श्रुष्टि की आदि में परमात्मा ने सभी जीवो को सूक्ष्म शरीर और प्राण दिया जिससे
जीवात्मा प्रकृति से संयुक्त होकर शरीर धारण करता है । सजीव प्राणी नाक से
श्वास लेता है , तब वायु कण्ठ में जाकर विशिष्ठ रचना से वायु का
दश विभाग हो जाता है । शरीर में विशिष्ठ स्थान और कार्य से प्राण के विविध नाम
हो जाते है ।
प्रस्तुत चित्र में प्राणों के विभाग , नाम , स्थान , तथा कार्यों का वर्णन
किया गया है .
मुख्य प्राण ५ बताए गए है जिनके नाम इस प्रकार है ,
१. प्राण ,
२. अपान,
३. समान,
४. उदान
५. व्यान
और उपप्राण भी पाँच बताये गए है ,
१. नाग
२. कुर्म
३. कृकल
४. देवदत
५. धनज्जय
मुख्य प्राण :-
१. प्राण :- इसका स्थान नासिका से ह्रदय तक है . नेत्र , श्रोत्र , मुख आदि
अवयव इसी के सहयोग से कार्य करते है . यह सभी प्राणों का राजा है . जैसे राजा
अपने अधिकारीयों को विभिन्न स्थानों पर विभिन्न कार्यों के लिये
नियुक्त करता है , वैसे ही यह भी अन्य अपान आदि प्राणों को विभिन्न स्थानों पर
विभिन्न कार्यों के लिये नियुक्त करता है .
२. अपान :- इसका स्थान नाभि से पाँव तक है , यह गुदा इन्द्रिय द्वारा मल व
वायु को उपस्थ ( मुत्रेन्द्रिय) द्वारा मूत्र व वीर्य को योनी द्वारा रज व गर्भ
का कार्य करता है .
३. समान :- इसका स्थान ह्रदय से नाभि तक बताया गया है . यह खाए हुए अन्न
को पचाने तथा पचे हुए अन्न से रस , रक्त आदि धातुओं को बनाने का कार्य करता है
.
४. उदान :- यह कण्ठ से सिर ( मस्तिष्क ) तक के अवयवों में रहेता है ,
शब्दों का उच्चारण , वमन ( उल्टी ) को निकालना आदि कार्यों के अतिरिक्त यह
अच्छे कर्म करने वाली जीवात्मा को अच्छे लोक ( उत्तम योनि ) में , बुरे
कर्म करने वाली जीवात्मा को बुरे लोक ( अर्थात सूअर , कुत्ते आदि की योनि )
में तथा जिस आत्मा ने पाप – पुण्य बराबर किए हों , उसे मनुष्य लोक ( मानव योनि
) में ले जाता है ।
५. व्यान :- यह सम्पूर्ण शरीर में रहेता है । ह्रदय से मुख्य १०१ नाड़ीयाँ
निकलती है , प्रत्येक नाड़ी की १००-१०० शाखाएँ है तथा प्रत्येक शाखा की भी
७२००० उपशाखाएँ है । इस प्रकार कुल ७२७२१०२०१ नाड़ी शाखा- उपशाखाओं में
यह रहता है । समस्त शरीर में रक्त-संचार , प्राण-संचार का कार्य यही करता है
तथा अन्य प्राणों को उनके कार्यों में सहयोग भी देता है ।
उपप्राण :-
१. नाग :- यह कण्ठ से मुख तक रहता है । उदगार (डकार ) , हिचकी आदि कर्म
इसी के द्वारा होते है ।
२. कूर्म :- इसका स्थान मुख्य रूप से नेत्र गोलक है , यह नेत्रा गोलकों में
रहता हुआ उन्हे दाएँ -बाएँ , ऊपर-नीचे घुमाने की तथा पलकों को खोलने बंद करने
की किया करता है । आँसू भी इसी के सहयोग से निकलते है ।
३. कूकल :- यह मुख से ह्रदय तक के स्थान में रहता है तथा जृम्भा ( जंभाई
=उबासी ) , भूख , प्यास आदि को उत्पन्न करने का कार्य करता है ।
४. देवदत्त :- यह नासिका से कण्ठ तक के स्थान में रहता है । इसका कार्य
छिंक , आलस्य , तन्द्रा , निद्रा आदि को लाने का है ।
५. धनज्जय :- यह सम्पूर्ण शरीर में व्यापक रहता है , इसका कार्य शरीर के
अवयवों को खिचें रखना , माँसपेशियों को सुंदर बनाना आदि है । शरीर में से
जीवात्मा के निकल जाने पर यह भी बाहर निकल जाता है , फलतः इस प्राण
के अभाव में शरीर फूल जाता है ।
जब शरीर विश्राम करता है , ज्ञानेन्द्रियाँ , कर्मेन्द्रियाँ स्थिर हो जाती है
, मन शांत हो जाता है । तब प्राण और जीवात्मा जागता है । प्राण के संयोग से
जीवन और प्राण के वियोग से मृत्यु होती है ।
जीव का अंन्तिम साथी प्राण है ।
प्राण के नाम,स्थान और कार्य–विवरण को संक्षिप्त जानकारी के लिए कृपया संलग्न
चित्र को देखे ।
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2> বিশ্বাসই বড়ো ধন
শ্রী শ্রী চন্ডি তে "মা " বার বার বলেছেন -
তিনি আমাদের অন্তরেই আছেন --তবু আমরা তা অনুভব করার চেষ্টা করিনা
শুধু তাঁকে নিজের মধ্যে স্বরণ করলে ,আমাদের যুদ্ধ আমাদের হয়ে তিনিই  লড়ে দেবেন একি কম আশ্বাস ?
কিন্তু এর জন্য চাই বিশ্বাস।
প্রবল বিশ্বাসই বড় ধন ,
প্রবল বিশ্বাসই অসম্ভব কে সম্ভব করতে পারে।
সকল বড় বড় কার্যের জনক বিশ্বাস।
তথাপি অসাবধানী তথা ক্ষণিকের জন্যও অবিশ্বাসি কে কেউই রক্ষা  করতে পারেনা। এমনকি কোনও দেবতার আশির্বাদও তাঁকে রক্ষা  করতে পারেনা। সেই কারণেই সদা সর্বদা সচেতন ও নিজের প্রতি নিজের বিশ্বাস বিশেষ প্রয়োজন। ক্ষণিকের অসাবধানী যে কোনো মুনি, ঋষি রও  তপস্যা ভঙ্গ করে দিতে পারে এবং তাঁকে গভীর অতল গওভরে নিক্ষেপ  করতে পারে।
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3> क्रोधाग्नि==क्रोध भी ज़रूरी, किन्तु समयसे।

क्रोध भी ज़रूरी, किन्तु समयसे।
: पितामह भीष्म के जीवन का
एक ही पाप था ,
कि उन्होंने समय पर क्रोध नहीं किया ।

और जटायु के जीवन का
एक ही पुण्य था,
कि उसने समय पर क्रोध किया ।
परिणामस्वरूप .....
एक को बाणों की शैय्या मिली,
और एक को प्रभु श्री राम की गोद ।

अतः क्रोध भी तब पुण्य बन जाता है,
जब " धर्म और मर्यादा"
के लिए किया जाए और,
" सहनशीलता " भी तब पाप बन जाती है,
जब धर्म और मर्यादा को बचा ना पाये ।

क्रोधाग्नि=
कैसे जन्म लेती है क्रोधाग्नि की ज्वाला
क्रोध, गुस्सा, आवेश, प्रज्जवलन जैसे शब्दों से आप क्या अनुमान लगाते हैं। ये बहुत साफ है कि ऐसे शब्द हमारे मन की उस अवस्था को बताते हैं, जहां हम आपा खो चुके होते हैं। हमारी बुद्धि-विवेक का ह्रास हो जाता है और हम मन के पूरी तरह नियंत्रण में आ जाते हैं। ऐसे में अक्सर आपा खो बैठने की हालत हो जाती है और अंतिम रूप से पश्चाताप के अलावे कुछ भी हाथ नहीं लगता है।
निश्चित रूप से यह एक दयनीय अवस्था होती है, जहां हम दूसरे को दुःख तो पहुंचाते ही हैं लेकिन इससे बुरी बात ये है कि इसमें अंतिम रूप से हमारा ही नुकसान होता है। व्यवहारिक जीवन में इससे बड़ा दुःख और कुछ नहीं हो सकता कि क्रोध की अवस्था में हम दूसरे को दुःख पहुंचाना चाहते हैं किंतु इसमें हमारा बहुत अधिक बिगड़ जाता है।

मानसिक संतुलन का इस तरह क्षरण कितना उचित है? भावावेश, भावातिरेक और मानसिक उद्देलन की अवस्थाएं खतरनाक होती हैं। अनियंत्रित तरीके से शरीर का रोम-रोम नकारात्मक रूप से प्रभावित होने के कारण निर्णय शक्ति खत्म हो जाती है। इस दशा में प्रायः गलत फ़ैसले हो जाते हैं, जो जीवन भर के लिए अभिशाप साबित होते हैं।
गहराई से देखा जाए तो क्रोध केवल भावातिरेक की स्थिति है। जब भी कोई डिमांड पूरी नहीं होती, अपेक्षा पर कोई खरा नहीं उतरता या फिर अहंकार को चोट पहुंचती है तब ऐसी अवस्था में क्रोध का जन्म होता है। ऊपरी तौर पर यह एक सहज-स्वाभाविक स्टेज मालूम होता है लेकिन हकीकत में ये सहजता से अलग बिल्कुल थोपी गई अवस्था है। क्रोध कभी भी सहज हो ही नहीं सकता वरन् ये अपेक्षाओं की प्रतिपूर्ति न होने का परिणाम होता है।
क्रोधाग्नि की ज्वाला भयंकरतम ज्वालाओं में शुमार है। इसका प्रभाव एकतरफा या एकपक्षीय न होकर बहुपक्षीय और बहुआयामी होता है। ये न सिर्फ कारक को नष्ट करने में सक्षम है बल्कि इसके आसपास जो भी होता है, उसे भी हानि पहुंचाने में सक्षम है। एक बार क्रोधाग्नि का शिकार बन जाने पर इससे बहुत कठिनाई से पिंड छूट पाता है।हमें इस तथ्य पर अवश्य चर्चा करनी चाहिए कि क्रोध का वास्तविक कारण क्या है तब कहीं जाकर इससे मुक्त होने की चर्चा सार्थक होगी।वस्तुतः सहज बोध को सबसे अधिक नुकसान वाह्य पर्यावरण से होता है।

●क्रोध पर विजय कैसे प्राप्त करें?

मनोविकारों पर विजय प्राप्त करने के लिए सबसे पहले उनके बारे में पूरी समझ का होना जरूरी है। बिना गहरी समझ के किसी भी दोष (विकार) पर सम्पूर्ण विजय प्राप्त करना सहज सम्भव नहीं होता। क्रोध विकार पर सम्पूर्ण विजय प्राप्त करने के लिए हमें यह जानना होगा कि क्रोध क्या है? क्रोध पर विजय पाना क्यों जरूरी है? क्रोध के आने के कारण क्या-क्या हैं। क्रोध से होने वाली हानियां क्या-क्या है,? क्रोध पर विजय प्राप्त करने के लिए उपाय क्या-क्या हैं?क्रोध क्या है?क्रोध और कुछ नहीं अपितु एक नकारात्मक भाव है। मानसिक पटल पर उभरी हुई किसी क्रिया की यह आक्रामक प्रतिक्रिया मात्र है। इस प्रतिक्रिया के कारण शरीर के समूचे स्नायविक तन्त्र (नर्वस सिस्टम) में आक्रामक भाव की तरंगें पैदा हो जाती हैं। यह प्रतिक्रिया अपने स्व के अस्तित्व की पूर्णतः विस्मृति की अवस्था में होती है। यह पूरी तरह बहिर्मुखी चेतना होती है। बहिर्मुखी वृत्ति ंिहंसात्मक होती है। बहिर्मुखी आत्म से अंहिसा की आशा नहीं की जा सकती। क्रोध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा ही है। इस मानसिक अवस्था में आत्मा की बुद्धि किसी घटना, परिस्थिति, व्यक्ति या विचार से अत्यन्त सम्बन्द्ध हो जाती है। इसलिए बुद्धि की निर्णय शक्ति समाप्त हो जाती है। शरीर की सभी मुद्राऐं हिंसात्मक अर्थात् आक्रामक हो जाती हैं। मनोविज्ञान के अनुसार यह प्रतिक्रिया (क्रोध) अपनी तीव्रता या मंदता की अवस्था की हो सकती है।💐💐💐💐💐💐

●क्रोध से हानियां
क्रोध के प्रभाव से शरीर की अन्तःश्रावी प्रणाली पर बुरा असर पड़ता है। क्रोध से रोग प्रतिकारक शक्ति कम हो जाती है। हार्ट एटैक, सिर दर्द, कमर दर्द, मानसिक असन्तुलन जैसी अनेक प्रकार की बीमारियां पैदा हो जाती हैं। परिवार में कलह-क्लेश मारपीट होने से नारकीय वातावरण हो जाता है। सम्बन्ध विच्छेद हो जाते हैं। जीवन संघर्षों से भर जाता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व (चरित्र) खराब हो जाता है। क्रोध से शारीरिक व मानसिक रूप से अनेक प्रकार की हानियां ही हानियां हैं।

●क्रोध के कारण
क्रोध के कारण क्या-क्या हो सकते हैं? जैसेः- जब कोई व्यक्ति इच्छा पूर्ति में बाधा डाले या असहयोग करे, तब होने वाली प्रतिक्रिया ही क्रोध का रूप होती है। यदि कोई व्यक्ति अधिक समय तक चिन्ताग्रस्त रहे, तब भी वह मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जाता है। इस के कारण छोटी-छोटी बातों में क्रोध आता है। आहार का हमारे विचारों पर बहुत असर पड़ता है। जैसा आहार, वैसा विचार। तामसिक और राजसिक आहार का सेवन करने से शारीरिक रासायनों का सन्तुलन बिगड़ता है। हारमोन्स का प्रभाव असन्तुलित हो जाता है। इसका मस्तिश्क पर बुरा असर पड़ता है। प्रकृति के नेगेटिव ऊर्जा के प्रभाव के कारण विचार ज्यादा चलने लगते हैं। अनियंत्रित मानसिक स्थिति में क्रोध के शीघ्र आने की सम्भावनाएं बढ़ जाती है। नींद कुदरत का वरदान है। नींद से ऊर्जा के क्षय की पूर्ति होती है। अन्तःश्रावी ग्रन्थियों से निकलने वाले हारमोन्स संतुलित रहते हैं। शरीर की सभी कोशिकाएं तरोताजा हो जाती हैं। यदि अनुचित आहार, चिन्ता या अन्य किसी भी कारण से नींद गहरी नहीं होती है, तब कोशिकाएं ऊर्जा वान नहीं रहती। ऐसी स्थिति में भी क्रोध आने की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं। किसी भी ज्ञात या अज्ञात कारण से यदि शरीर से पित्त की वृद्धि हो जाती है, तब भी हारमोन्स असन्तुलित हो जाते हैं। यह राजसिक आहार के कारण भी हो सकता है। नेगेटिव दृष्टिकोण के कारण भी पित्त (एसिड) में वृद्धि हो सकती है। पित्त वृद्धि के कारण स्वभाव चिड़चिड़ा होने या क्रोध आने की सम्भावना बढ़ जाती है। अधिक समय से अस्वस्थ्य रहने से हाने वाली शारीरिक व मानसिक कमजोरी भी क्रोध आने का एक कारण बनती है। मैं ही ठीक हूं। मेरी बात ही ठीक है। यह अपनी बात मनवाने की मानसिकता क्रोध आने का कारण बनती है। जब हम दूसरों को जबरदस्ती कन्ट्रोल करना चाहते हैं। लेकिन कन्ट्रोल करने में असफल होते हैं तब क्रोध आने की सम्भावना रहती है। जब कोई झूठ बोलता है। इसने झूठ क्यों बोला? झूठ बोलने वाले पर गुस्सा आता है। झूठ को सहन नहीं कर सकने पर क्रोध आता है। न्याय न मिलने पर या अन्याय होने पर गुस्सा आता है। यदि व्यर्थ की टीका- टिप्पणी पसन्द नहीं है। कोई व्यर्थ ही टीका-टिप्पणी करता है, तब उस पर क्रोध आता है। कभी-कभी क्रोध ऐसे ही नहीं आता बल्कि हम पहले से ही अन्दर-अन्दर सोचकर प्रोग्रामिंग कर देते हैं। फलां आदमी ऐसे ऐसे कहेगा, तो मैं ऐसे ऐसे जवाब दूंगा। क्रोध पर विजय प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक और व्यवहारिक ज्ञान की बौद्धिक समझ के साथ साथ राजयोग के गहन अभ्यास का द्विआयामी पुरुषार्थ अनिवार्य है। आध्यात्मिक व व्यवहारिक बौद्धिक समझ:- इस विश्‍व नाटक में हर आत्मा का अपना अपना अविनाशी अभिनय है। वह अपना पार्ट ड्रामानुसार ठीक प्ले कर रही है। उसका सहयोग देना, न देना और अवरोध करना, वह इसमें भी स्वतन्त्र नहीं है। परतन्त्र परवश आत्मा के साथ क्रोध की प्रतिक्रिया का क्या औचित्य? स्वयं की शक्तियों को पहचान कर आत्मनिर्भरता में विश्‍वास करना चाहिए। अनावश्‍यक अपेक्षाओं को मन में नहीं पालना चाहिए। अपने चिन्तन को श्रेष्‍ठ बनायें। चिन्ता वे ही करतें है, जिनके जीवन में कोई परिस्थिति विशेष हो और जिन की गहरी समझ नहीं हो। आध्यात्मिक व्यक्तित्व की धनी आत्माएं कभी चिन्ता नहीं करती अपितु वे तो एकाग्र चिन्तन करती हैं। आध्यात्म के सैद्धान्तिक ज्ञान के मनन-मंथन से मानसिक विक्षिप्तता हो नहीं सकती। शरीर की आयु और कर्मयोगी जीवन की परि पक्वता के आधार पर नींद की आवश्‍यकता कम-ज्यादा होती है। आवश्‍यकता के अनुसार नींद का औसतन समय 5 से 6 घंटे हो सकता है। औसतन समय जो भी हो लेकिन एक बात का ध्यान रखना है कि नींद गहरी होनी चाहिए। इसके लिये काम और विश्राम (नींद) दोनों का सन्तुलन रखना चाहिए। शरीरिक या बौद्धिक कार्य की थकान के बाद गहरी नींद आ सकती है। नींद की जितनी गहराई बढ़ती है। उतनी ही लम्बाई घटती है। सामान्यतः एक कर्मयोगी को सात्विक आहार के सेवन के महत्व को समझ कर अपने आहार को सात्विक और सन्तुलित रखना चाहिए। ऐसे आहार का परित्याग कर देना चहिए जो रासायनिक प्रक्रिया के बाद तेजाब (ऐसिड) ज्यादा बनाता हो। आहार को सात्विक और सन्तुलित रख पित्त को बढ़ने नहीं देना चाहिए। दृष्टिकोण सदा पाॅजिटिव ही रखना चाहिए। अशुभ (नेगेटिव) शुभ का शत्रु न मानें। नेगेटिव तो पाॅजिटिव का अवरुद्ध है और कुछ नहीं। नकारात्कता, सकारात्मकाता की अनुपस्थिति है। समय प्रति समय अपनी शारीरिक जांच कराते रहना चाहिए। स्वयं की प्रकृति की पूरी समझ होना आवश्‍यक है। स्वयं को प्रकृति से अलग समझ प्रकृति के साथ सद्भाव सामंजस्य का भाव रखना चाहिए। व्यायाम आदि के द्वारा स्वयं को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखना चाहिए। किसी एक ही बात को देखने समझने के अनेक दृष्टिकोण हो सकते हैं। किसी हद तक हर आदमी अपनी बात को ठीक समझ कर ही अपने दृष्टिकोण बनाता है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि सभी दृष्टिकोण सदा ही ठीक या मान्य समझें जायें इसलिए दृश्टिकोण को ठीक ठहराने की जिद्द ना करते हुए स्वयं को शान्त रखना चाहिए। अपनी दृष्टि का कोण बदल समाधान की भाषा में सोचना चाहिए। यह याद रखना चाहिए कि झूठ के पैर नहीं होते। झूठ अधिक समय तक चल नहीं सकता। अन्तिम विजय सत्य की ही होती है। इस विश्‍व नाटक में अन्याय में भी कहीं ना कहीं न्याय छिपा होता है। वह दिखाई न देने पर भी कहीं न कहीं मौजूद रहता है। यह याद रखें कि ईश्‍वर के दरबार में देर हो सकती है लेकिन कभी अन्धेर नहीं होती। सांच को आंच नहीं के सिद्धांत पर अटल रहना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में तुरन्त प्रतिक्रिया नहीं करने की आदत बना लेनी चाहिए। परिस्थिति विशेष में न कोई क्रिया और न प्रतिक्रिया की साक्षीपन की स्थिति के क्रोध आदि किसी भी मनोविकार पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। व्यवहार में आत्मीयता है, तो क्रोध की स्थिति ही पैदा नहीं होती। अपनेपन की भावना रख आपस में एक दूसरे को ठीक ठीक समझना चाहिए। अनुमान, शंका, संदेह से सदा दूर रहना चाहिए। पारस्परिक विचारों और भावनाओं का सम्प्रेशण सही समय पर सही व्यक्ति के साथ होना चाहिए। व्यर्थ और नकारात्मक भावनाओं को पनपनें ही नहीं देना चाहिए। किसी भी बात को ज्यादा गम्भीरता से नहीं लेना चाहिए। बातों को हल्के रूप से लेकर उनका निरा-करण करना चाहिए।राजयोग के अभ्यास द्वारा अपने चिन्तन को यथार्थ और सकारात्मक बनायें। स्वयं से स्वयं की बातें करनी चाहिए। मैं कौन हूं? मेरा यथार्थ परिचय क्या है? मैं किस स्थान पर हूं? मेरे कर्तव्य क्या-क्या हैं? मुझे करना क्या है? अपनी महानताओं और सम्भावनाओं को याद करना चाहिए। अन्तर्मुखी होकर अपनी आध्यात्म जगत की महानताओं के चित्रांकन द्वारा उन्हें यथार्थ रूप से महसूस करना चाहिए। आत्म केन्द्रित हो अपनी आत्म ज्योति को अपने मस्तक सिंहासक भृकुटि में देखने को अभ्यास करना। इस अभ्यास को प्रातः व सायं कम से कम 6 महीने तक करना चाहिए। परमात्म ज्योति को देखने और उसके साथ भावनात्मक रूप से (कम्बाइन्ड) एकाकार होने का अभ्यास करना। यह अभ्यास भी प्रातः व सायं कम से कम 6 महीने तक करना चाहिए। आत्मा के मूल गुण पवित्रता का चिन्तन और अनुभूति का लक्ष्य रखकर राजयोग का अभ्यास करना। बुद्धि रूपी नेत्र से देखना कि पवित्रता की सफेद किरणें मेरे सिर के ऊपर से उतर रही हैं और मैं आत्मा शीतलता का अनुभव कर रही/रहा हूं। कम से कम 6 महीने दिन में 4 बार अभ्यास करना चाहिए। इस प्रकार यथार्थ बौद्धिक समझ और राजयोग के विधि पूर्वक अभ्यास के द्वारा क्रोध पर सम्पूर्ण विजय सम्भव है।

●जानिए! कैसे डालें अपने क्रोध पर काबू

अगर आप कार चला रहे हैं और कोई गाड़ी आपको गलत साइड से ओवरटेक कर दे तो क्या आप गुस्से से तिलमिला जाते हैं? यदि घर पर आपके बच्चे या फिर आपका जीवन साथी सहयोग न करें तो क्या आपका पारा बढ़ जाता है। यदि दफ्तर में कोई अधीनस्थ कर्मचारी बिना बताए छुट्टी पर चला जाए तो क्या आपका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है।
क्रोध एक सामान्य और स्वस्थ भावना है, लेकिन इससे एक सकारात्मक तरीके से निपटना बहुत महत्वपूर्ण है। अनियंत्रित क्रोध आपके स्वास्थ्य और रिश्तों दोनों पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। क्रोध शब्द आते ही माथे पर तनाव से उभर आने वाली लकीरें एकाएक दिमाग के पर्दे पर पदर्शित होने लगती हैं। ना तो क्रोध करने वाला और ना ही उसके सामने वाला इस अवस्था से प्रसन्न होता हैं। ये एक ऐसी अभिव्यक्ति है, जो कोई पसन्द नहीं करता लेकिन ऐसा हो जाता है। इसके नुक्सान से हम सब वाकिफ हैं और इसके प्रभाव से हम सब बचना चाहते हैं। क्रोध समस्या तब बनता है, जब अकारण हो और किसी पर अकारण ही निकले। ये एक चैन रिएक्शन की तरह पहले आप से फिर आपके पास के लोगों में परिवर्तित होता है।

जैसे कि पहले ही बताया गया है कि ये एक सामान्य प्रक्रिया है। मनोवैज्ञानिकों के विचार से क्रोध एक तरह से क्षुब्ध भावनायों का क्षय है। इस प्रकार से जो विचार अन्तः मन में दबे हुए हैं – वो क्रोध के जरिए बाहर निकल आते हैं। यदि क्रोध को लिया जाए तो क्रोध बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक है। क्रोध एक उर्जा है और यदि यही उर्जा सही तरीके से उपयोग मे लाई जाए तो कठिन से कठिन कार्य भी सुगम हो जाता है। जैसे कि फ्लॉरेन्स नाइटिंगल को क्रोध था लेकिन वो क्रोध रोगों के लिए था, ना कि रोगियों के लिए। अतः उन्होंने उस क्रोध की उर्जा को रोगियों की सेवा में लगाकर अपना और समाज का विकास किया।

क्रोध की ऊर्जा को सही तरीके से सही जगह पर उपयोग करना ही इसका सदुपयोग है। कहना बहुत आसान है परंतु इस ऊर्जा का सही उपयोग करना भी आना चाहिए, जैसे हमारे मनोविज्ञान एवं धर्म ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है। किसी भी क्रिया का ब्रह्माण्ड में सामंजस्य लाने के लिए ऊर्जा से संयोग ही योग है। इसी को योगी परमशक्ति से मिलन कहते हैं।
भगवद्गीता संसार में जीने के लिए सुगम पथ से मार्गदर्शन करने हेतु उत्तम ग्रंथ है। भगवद्गीता के अनुसार आसन, प्राणायाम जैसी क्रियाएं करने वाले को योगी नहीं कहा जा सकता। गीता के अनुसार, जब नियंत्रित किया हुआ शरीर, अपने आप में स्थित हो जाता है और सभी कामनाओं से दूर हो जाता है, तब ऐसे चित्त वाले व्यक्ति को युक्त कहा जाता है। योगी वही है, जिसका चित्त किसी भी कामना में नहीं लगता।

ऐसा तो है नहीं कि दुख ना आए- दुख शरीर के कष्ट से होता है और व्यथा मन के कष्ट से और क्रोध के ये ही दो कारण होते हैं। क्रोध की उत्पत्ति दुख अथवा व्यथा से होती है। जब किसी के मानस पटल पर कोई दुख हो या फिर कोई परेशानी हो तो क्रोध आना स्वाभाविक है। क्रोध का निर्माण आस पास की परिस्थितयों के कारण होता है। अब उन परिस्थितयों को बदला नहीं जा सकता और यदि बदला जा सके तो इसके लिए प्रयत्न करना होगा। इसलिए अध्यात्मिक साधनों का लक्ष्य शोक या रोग मिटाना नहीं है, अपितु ऐसी स्थिति प्राप्त कर लेना, जिसको बड़े से बड़े दुख भी विचलित ना कर पाए। इसलिए हमें अपने मन को ऐसा बनाना पड़ेगा, जिससे परेशानियों का प्रभाव मन पर ना पड़े। हम हमेशा प्रसन्न और निश्चिंत रह सकें। इस स्थिति को प्राप्त कर लेना ही योग है। चित्तवृत्ति के निरोध का यही परम परिणाम है कि वहां स्थित होने के बाद ज्ञानी दुख से विचलित नहीं होते और इस स्थिति से बड़ा लाभ दूसरा कुछ नहीं होता है।

इस अवस्था में स्थित होकर उस आत्यंतिक सुख का अनुभव करते हैं जो इंद्रगम्य नहीं है। केवल बुद्धि से उसे जाना जा सकता है, उसका अनुभव किया जा सकता है। इस प्रकार यह स्थिति केवल दुख की निवृत्ति रूप नहीं है। यदि आप क्रोध को काबू करना चाहते हैं तो अपने मन को सुदृढ़ बनाना पड़ेगा। उसके लिए अनेक मनोवैज्ञानिकों ने सरल उपाए दिए हैं, जिसे आप क्रम से ग्रहण कर सकते हैं।

सर्वप्रथम एक आदत अपना लें- बोलने से पहले सोचें, गुस्से में व्यक्ति हमेशा उन शब्दों को चुनेगा और बोलेगा, जो दूसरे को चुभे, परंतु ऐसा करते समय भूल जाता है कि जब क्रोध की अवस्था समाप्त हो जाती है तो ये चुभे हुए शब्द तीर की भांति सीने में गढ़ जाते हैं जो आगे दूसरे व्यक्ति में क्रोध का रोपण करते हैं। वो ही क्रोध फिर कभी ना कभी मौका पाकर अवश्य निकलता है। इसलिए इस चेन को रोकने के लिए आवश्यक है कि क्रोध में भी संयम बनाए रखें। कभी भी क्रोधित अवस्था में कोई भी बात ना करें। अपने विचार या क्रोध तब दर्शाएं, जब आप संयमित अवस्था में हों।

जब भी क्रोधित हों तो अपने क्रोध कि उर्जा को किसी शारीरिक व्यायाम या फिर शारीरिक कार्य द्वारा जैसे कि बागवानी कर के या फिर घर की सफाई कर के अथवा उस स्थान से हट कर किसी बाज़ार मे चहलकदमी कर ले जिस से ध्यान भी बटेगा और मन शांत भी हो जायेगा। कोई कोई तो कुछ देर बगीचे मे बैठ कर बच्चो को देख कर संयमित हो जाते हैं। यदि कुछ ना हो सके तो किसी ग्रंथ का पाठ करना आरंभ कर लेना चाहिए इससे उचित मार्गदर्शन का लाभ भी मिलेगा।

इस बीच में आप अपनी समस्या को पहचानें- इससे आपका क्रोध काफी हद तक संभल जाएगा। याद रखिये कि किसी भी समस्या को पहचान लेना आधी लड़ाई जीतने के बराबर होता है। जब आप समस्या को पहचान लेंगे तो स्वतः ही समाधान का कोई ना कोई रास्ता निकल आएगा। हमेशा इस बात को याद रखिये कि क्रोध किसी समस्या का समाधान नहीं अपितु क्रोध तो आग में घी का काम करता है।

●माफी एक शक्तिशाली उपकरण है।

यदि आप क्रोध और अन्य नकारात्मक भावनाओं को अपने विचारों में आने की अनुमति देते हैं, तो आप अपने आपको अपनी खुद की कड़वाहट या अन्याय की भावना द्वारा निगल सकते हैं। यदि आप किसी को माफ कर सकते हैं तो आप अपने लिए तो अच्छा करते ही हैं अपितु दूसरे व्यक्ति के लिए भी उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। हर कोई आप के अनुरूप ही व्यवहार करें – ऐसा तो हो नहीं सकता। हम अपने विचार के फ्रेम में दूसरे व्यक्तियों के स्वभाव को रखते हैं और जब वो फिट नहीं बैठता तो क्षुब्ध हो जाते हैं।
इस के अलावा किसी भी धार्मिक ग्रंथ से यदि अपनी समस्या का समाधान ढूँढे तो अवश्य मिलेगा। यदि आप ऊपर बताए गए मार्ग पर चलें तो अवश्य लाभ होगा। इसके साथ यदि आप सुबह उठकर शुद्ध मन से पद्मासाना या फिर सिद्धासन में बैठकर शांत मुद्रा में ध्यान लगाएं तो पाएंगे कि आपका जीवन के प्रति बड़ा ही सरल नज़रिया होता जा रहा है।

मंत्रों में बड़ी शक्ति होती है। क्रोध शांति का ये मंत्र आपको अवश्य लाभ प्रदान करेगा।

ओम शांते प्रशान्ते मॅम क्रोध पश् नीन स्वाहा

इस मंत्र को पढ़ने के बाद थोड़े से पानी में फूंक मारें – ऐसा २१ बार दोहराएं और फिर इस पानी को पी जाएं। आप पाएंगे कि धीरे धीरे आपका क्रोध शांत हो गया है।
इसके अलावा निम्नलिखित दो मंत्र हैं, जिन्हें आप अपनी सुविधा अनुसार उपयोग कर सकते हैं।

1. दैहिका दैविका भौतिका तापराम राजा नहीं कहू ब्यापा
2. भारत चरिता करी मांऊ तुलसईजे सादर सुनहिंसिया राम पड़ा प्रेमा आवासी होई भवा रासा बिराती
याद रखिए मंत्र भी तभी काम करेंगे, जब आप मन से इनको स्वीकार करेंगे और क्रोध शांति का प्रयास करेंगे।
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4>आज आपको गरीबी आने के कुछ कारण बताता हु ।

घर में गरीबी आने के कारण..

1=रसोई घर के पास में पेशाब करना ।
2=टुटी हूई कन्घी से कंगा करना ।
3=टूटा हुआ सामान उपयोग करना।
4= घर में कूडा-करकट रखना।
5=रिश्तेदारो से बदसुलूकी करना।
6=बांए पैर से पैंट पहनना।
7=सांध्या वेला मे सोना।
8=मेहमान आने पर नाराज होना।
9=आमदनी से ज्यादा खर्च करना।
10=दाँत से रोटी काट कर खाना।
11=चालीस दीन से ज्यादा बाल रखना
12=दांत से नाखून काटना।
13=खडे खडे पेशाब करना ।
14=औरतो का खडे खडे बाल बांधना।
15 =फटे हुए कपड़े पहनना ।
16=सुबह सूरज निकलने तक सोते रहना।
17=पेंड के नीचे पेशाब करना।
18=बैतूल खला में बाते करना।
19=उल्टा सोना।
20=श्यमशान भूमि में हसना ।
21=पीने का पानी रात में खुला रखना
22=रात में मागने वाले को कुछ ना देना
23=बुरे ख्याल लाना।
24=पवित्रता के बगैर धर्मग्रंथ पढना।
25=शौच करते वक्त बाते,करना।
26=हाथ धोए बगैर भोजन करना ।
27=अपनी औलाद को कोसना।
28=दरवाजे पर बैठना।
29=लहसुन प्याज के छीलके जलाना।
30=साधू फकीर को अपमानित करना या उस से रोटीया फिर और कोई चीज खरीदना।
31=फूक मार के दीपक बुझाना।
32=ईश्वर को धन्यवाद किए बगैर भोजन करना।
33=झूठी कसम खाना।
34=जूते चप्पल उल्टा देख करउसको सीधा नही करना।
35=हालात जनाबत मे हजामत करना।
36=मकड़ी का जाला घर में रखना।
37=रात को झाडू लगाना।
38=अन्धेरे में भोजन करना ।
39=घड़े में मुंह लगाकर पानी पीना।
40=धर्मग्रंथ न पढ़ना।
41=नदी , तालाब में शौच साफ करना और उसमें पेसाब करना ।
42=गाय , बैल को लात मारना ।
43=माँ-बाप का अपमान करना ।
44=किसी की गरीबी और लाचारी का मजाक उडाना ।
45=दाँत गंदे रखना और रोज स्नान न करना ।
46=बिना स्नान किये और संध्या के समय भोजन करना ।
47=पडोसियों का अपमान करना , गाली देना ।
48=मध्यरात्रि में भोजन करना ।
49=गंदे बिस्तर में सोना ।
50=वासना और क्रोध से भरे रहना ।
51= दूसरे को अपने से हीन समझना !।
शास्त्रों में है कि जो दूसरो का भला करता है । ईश्वर उसका भला करे
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5>उपाय जो आपके घर में लाएंगे सुख-समृद्धि

अगर आप जिंदगी में सुख-समृद्धि से परिपूर्ण हैं और फिर भी सब कुछ सही नही लग रहा, तो उसके लिए हम अभी आपको कुछ ऐसे वास्तु पे निर्भर करने वाले उपाय बता रहे हैं। जिनसे आपकी जिंदगी काफी हद तक बेहतर हो सकती है।
पानी की टंकी घर के ऊपर न रखें। यह मनोबल को कमजोर करती है।
घर की छत पर चौखट, अनावश्यक सामान, टीन-कबाड़ इत्यादि न रखें। इससे आकस्मिक परेशानियां आती हैं। छत को हमेशा साफ रखें।
आपके मकान के मेंन गेट पर गणेश जी या किसी इष्ट देवता की मूर्ति लगा लेवे । लेकिन इनका मुख अंदर की ओर रखें। इससे घर में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है।
अगर कभी सड़क पर चलते हुए पैसा मिल जाए तो उसे धोकर पूजा करे, कहते हे इससे धन में वृद्धि होती है।
आपका घर चौकोर या आयताकार हो, लंबाई-चौड़ाई समान हो अथवा चोड़ाई से लंबाई दोगुनी हो तो यह अति शुभ होता है। यदि ऐसा नहीं है तो इसे वास्तु दोष कहते हैं। इस दोष को दूर करने के लिए भवन के बाहर आग्नेय की ओर अनार का पौधा लगाना उचित होता है।
जरुरी बात, घर में कोई सी भी सफाई करने वाली वस्तु न तो खड़ी अवस्था में रखी जाएं और न ही यह सामने दिखाई दें। इससे नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। इन्हें लिटाकर या बिछाकर ही रखें।
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6>आध्यात्मिक शिक्षा का महत्व

ऋषियों ने इसको शिक्षा का आधार माध्यम वर्णन किया है-
आध्यात्म में तीन प्रकार की शिक्षाएॅ हैं ।
1⃣ ईश्वर का विश्वास
ईश्वर की पूजा नहीं,ईश्वर का विश्वास ।
कयोकि ईश्वर की पूजा और विश्वास में जमीन-आसमान का फर्क है । डाकू भी पूजा करते हैं पर वे विश्वासी नहीं हैं वरन पूजा करते हैं ।
इसीलिए पुजारियों और ईश्वरविश्वासियों में भी वही फर्क होता है ।
ईश्वर के विश्वास की शिक्षा हमारे धर्मग्रंथों और वेदशास्त्रों में है ।

2⃣ दूसरी बात है अपनी अंतरात्मा के ऊपर मल,आवरण और विक्षेप की जो परतें जमा हो गई हैं,उन्हें साफ किया जाय ।
भीतर जो ब्रह्म का तेज है वह चमक पड़े मानो हम साक्षात् भगवान हैं ।
मनुष्य तो भगवान का नमूना है ।मनुष्य भगवान की कृति है ।
भगवान ने एक मूर्तिवान नमूना बनाया और वह है-------इंसान

3⃣ तीसरी शिक्षा आध्यात्म के ग्रंथों और धर्मग्रंथों में मनुष्य को उदार होना बताया गया है ।
मनुष्य का जन्म ही महान उद्देश्य के लिए होता है । स्वार्थी नहीं परमारथी होकर आत्मबोध का ज्ञान हो जाय तो उसका जीवन सफल हो जाय ।
आत्मबोध को ही ज्ञान का सार कहते हैं,अपने आप को जानना कहते हैं
अगर इन शिक्षाओं को मनुष्य जीवन में अमल कर ले तो सच्ची भक्ति ईश्वर की प्राप्त हो सकती है ।
मनुष्य का जीवन ईश्वर भक्ति में लीन होकर राममय वातावरण में समाहित हो सकता है ।
जिसके अंदर बाहर राम ही दिखाई देंगे ।

जैसा कि गोस्वामी जी ने लिखा है
सीय राममय सब जग जानी =//=करउॅ प्रनाम जोरि जुग पानी
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7> |||||| "ये ही सत्य हैं" |||||
Qus→ जीवन का उद्देश्य क्या है ?
Ans→ जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है - जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है..!!
Qus→ जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है ?
Ans→ जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया - वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है..!!
Qus→ संसार में दुःख क्यों है ?
Ans→ लालच, स्वार्थ और भय ही संसार के दुःख का मुख्य कारण हैं..!!
Qus→ ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की ?
Ans→ ईश्वर ने संसारकी रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की..!!
Qus→ क्या ईश्वर है ? कौन है वे ? क्या रुप है उनका ? क्या वह स्त्री है या पुरुष ?
Ans→ कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो, इसलिए वे भी है - उस महान कारण को ही आध्यात्म में 'ईश्वर' कहा गया है। वह न स्त्री है और ना ही पुरुष..!!
Qus→ भाग्य क्या है ?
Ans→ हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है तथा आज का प्रयत्न ही कल का भाग्य है..!!
Qus→ इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?
Ans→ रोज़ हजारों-लाखों लोग मरते हैं और उसे सभी देखते भी हैं, फिर भी सभी को अनंत-काल तक जीते रहने की इच्छा होती है..इससे बड़ा आश्चर्य ओर क्या हो सकता है..!!
Qus→ किस चीज को गंवाकर मनुष्यधनी बनता है ?
Ans→ लोभ..!!
Qus→ कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
Ans → अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है..!!
Qus → किस चीज़ के खो जानेपर दुःख नहीं होता ?
Ans → क्रोध..!!
Qus→ क्या चीज़ दुसरो को नहीं देनी चाहिए ?
Ans→ तकलीफें, धोखा..!!
Qus→ क्या चीज़ है, जो दूसरों से कभी भी नहीं लेनी चाहिए ?
Ans→ इज़्ज़त, किसी की हाय..!!
Qus→ ऐसी चीज़ जो जीवों से सब कुछ करवा सकती है?
Ans→ मज़बूरी..!!🌸
Qus→ दुनियां की अपराजित चीज़ ?
Ans→ सत्य..!!
Qus→ दुनियां में सबसे ज़्यादा बिकने वाली चीज़ ? Ans→ झूठ..!!💜
Qus→ करने लायक सुकून काकार्य ?
Ans→ परोपकार..!!🌸
Qus→ दुनियां की सबसे बुरी लत ?
Ans→ मोह..!!💝
Qus→ दुनियां का स्वर्णिम स्वप्न ?
Ans→ जिंदगी..!!🍀
Qus→ दुनियां की अपरिवर्तनशील चीज़ ?
Ans→ मौत..!!💜
Qus→ ऐसी चीज़ जो स्वयं के भी समझ ना आये ?
Ans→ अपनी मूर्खता..!!🌸
Qus→ दुनियां में कभी भी नष्ट/ नश्वर न होने वाली चीज़ ?
Ans→ आत्मा और ज्ञान..!!💝
Qus→ कभी न थमने वाली चीज़ ?
Ans→ समय..
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8>जीवन का लेखा जोखा........

एक गिलहरी रोज अपने काम पर समय से आती थी और अपना काम पूर्ण मेहनत तथा ईमानदारी से करती थी !

|गिलहरी जरुरत से ज्यादा काम कर के भी खूब खुश थी क्यों कि उसके मालिक .......
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जंगल के राजा शेर नें उसे दस बोरी अखरोट देने का वादा कर रक्खा था !
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गिलहरी काम करते करते थक जाती थी तो सोचती थी कि थोडी आराम कर लूँ ....
|
वैसे ही उसे याद आता था :- कि शेर उसे दस बोरी अखरोट देगा - गिलहरी फिर काम पर लग जाती !
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गिलहरी जब दूसरे गिलहरीयों को खेलते - कूदते देखती थी तो उसकी भी ईच्छा होती थी कि मैं भी enjoy करूँ !
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पर उसे अखरोट याद आ जाता था !
और वो फिर काम पर लग जाती !
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शेर कभी - कभी उसे दूसरे शेर के पास भी काम करने के लिये भेज देता था !
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ऐसा नहीं कि शेर उसे अखरोट नहीं देना चाहता था , शेर बहुत ईमानदार था !
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ऐसे ही समय बीतता रहा....
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एक दिन ऐसा भी आया जब जंगल के
राजा शेर ने गिलहरी को दस बोरी अखरोट दे कर आजाद कर दिया !
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गिलहरी अखरोट के पास बैठ कर सोचने लगी कि:-
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अब अखरोट हमारे किस काम के ?
पूरी जिन्दगी काम करते - करते दाँत तो घिस गये, इसे खाऊँगी कैसे !
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यह कहानी आज जीवन की हकीकत बन चुकी है !
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इन्सान अपनी इच्छाओं का त्याग करता है, और पूरी जिन्दगी नौकरी में बिता देता है !
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58/60 वर्ष की उम्र जब वो रिटायर्ड होता है तो उसे उसका फन्ड मिलता है !
|
तब तक जनरेसन बदल चुकी होती है, परिवार को चलाने वाला मुखिया बदल जाता है ।
|
क्या नये मुखिया को इस बात का अन्दाजा लग पायेगा की इस फन्ड के लिये : -
कितनी इच्छायें मरी होगी ?
कितनी तकलीफें मिली होंगी ?
कितनें सपनें रहे होंगे ?
- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - क्या फायदा ऐसे फन्ड का जिसे
पाने के लिये पूरी जिन्दगी लगाई जाय और उसका इस्तेमाल खुद न कर सके !
|
"इस धरती पर कोई ऐसा अमीर अभी
तक पैदा नहीं हुआ जो बीते हुए समय
को खरीद सके ।
|
*भविष्य की चिन्ता छोड़ो, भुत को कंधो पर मत लादो।
वर्तमान को भोंगे.......
*Enjoy the TODAY*

Accounting of life........
A squirrel on your daily work time was perfect and hard work and honesty were!
|
Squirrel needs to work more than the well was happy because his owner.......
|
King of the jungle lion in ten bori walnut promise of giving the whole country!
|
Squirrel work was do tired but think that it can rest....
|
Just remember it could be :- That Lion ten bori walnut - squirrel will then take on the job!
|
Squirrel when other gilaharīyōṁ to play she was singing, he was also the mood that I will enjoy myself!
|
It Nut was missing!
And then she goes to work!
|
Lions sometimes it lion near work was sent!
|
It does not befit the lion to not nut it was a very honest, Lion!
|
There moving quickly at the same time....
|
A day came when the jungle
Lion King has squirrel ten bori and nut free!
|
Squirrel Nut Sat with herself :-
|
Our Walnut now how work?
Full life - work, dentist wont tear it how khā'ūm̐gī!
|
This is the story of life today has become a reality!
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Human sacrifice, their own desires, and fulfill the job in my life!
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58/60 years of age when he retired, he gets his phanḍa!
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So far have changed janarēsana, family-run leader gets changed.
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New head to measure will take this for phanḍa: -
How Icchāyēṁ Mari?
How got them?
Sapanēṁ Kitanēṁ.?
- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - what benefits of which such phanḍa
Perfect for getting placed in my life and use it for yourself you will not be able to!
|
" no one on this earth so rich right now
Not long been past that
To be able to buy.
|
* worried for the future, the son fell to the mat. Lādō
The current bhōṅgē.......
*Enjoy the TODAY*

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