Friday, February 19, 2016

16>से कौन सोता+कौन जागता+एकाग्रता व् ध्यान+ब्रह्म है+आप भी जाल में फंसी+बहुमूल्य वस्तु क्या

16>आ =Post=16>***से कौन सोता+कौन जागता***( 1 to 6 )

1---------------------वास्तव में सुख से कौन सोता है? कौन जाग्रत है?
2---------------------कौन जागता है अथवा जाग्रत है?
3----------------------मन की एकाग्रता व् ध्यान?
4----------------------प्रत्येक आत्मा का अंश अव्यक्त ब्रह्म है।
5----------------------क्या आप भी जाल में फंसी मकड़ी जैसे तो नहीं?
6----------------------जीवन की सबसे कीमती व् बहुमूल्य वस्तु क्या है ?
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1>वास्तव में सुख से कौन सोता है? कौन जाग्रत है?

वास्तव में सुख से कौन सोता है? कौन जाग्रत है?
दो प्रश्न हैं और उनका उत्तर है जिनकी संक्षिप्त व्याख्या दो भागो में करते हैं .
पहले प्रश्न पर चलते हैं, दोनों का उत्तर पढ़ना आवश्यक है इस पूरी स्थिति को समझने के लिए.
वास्तव में कौन है जो समाधि निष्ठ हो कर सुख से सोता है?

वही व्यक्ति अथवा सत्ता जो परमात्मा के स्वरुप में हमारे ही अंतकरण में स्थित या स्थापित है! परमात्मा का एक "स्वरुप" ही हम हैं और वह ही सब करता है. "हम" कौन हैं फिर? "मै जो जाग्रत अवस्था में सोचता है, करता है, जिसे भूख प्यास लगती है हमारा अहंकार है जो हमें इस शरीर से जोड़कर उसी को "मै - हम" बना देता है. पर आत्मिक ज्ञान होने पर जब सब दीखता है तो ज्ञात होता है के जिस सत्ता को हम "मै " समझते थे, वह तो केवल एक हाड मांस का एक शरीर है जिसे चलाने वाला वही अंतकरण में स्थापित देव मूर्त परम आत्मा है; जिसे हम अनदेखा कर, इस शरीर व् मायावी संसार के चक्कर में, पाप पर पाप करते चले जाते हैं. याद रखे के इसीलिए हम सुख से नहीं सो पाते, क्यूंकि हमने पापो का इतना बोझ पीठ पर लाद रखा है के हम दुःख में ही रहते हैं पर जब हम उस अंतर स्थित स्थापित सत्ता से जुड़ जाते हैं और इस संसार के मायावी रूप के लबादे को उतार कर, हलके फुल्के हो जाते हैं; अपने पाप कर्मो पर दृष्टि डालते हैं तब हम जिस स्थिति व् अवस्था में होंगे वहां न कोई चिंता होगी न किसी पाप कर्म का बोझ होगा न कभी न पूरी होने वाली इच्छाओ, स्वरूपी राक्षसो का भय होगा, तब हम अपने उस स्वरुप में सम्मलित होकर एक ही रूप में होंगे और वह ही हमारा वास्तविक रूप है, ये जो दीखता है वह तो उसी स्वरूप के भावो का प्रत्यक्ष प्रतिरूप है. जब इस बाहरी रुप को उस आंतरिक स्वरुप से जोड़ देंगे तो हमें इस संसार से कोई विशेष लालच ,मोह या जुड़ाव नहीं रहेगा. इसीलिए "मै " और "सत्ता" सुख से सोएँगे.

+ कौन जागता है के लिए दूसरा भाग पढ़े

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2>कौन जागता है अथवा जाग्रत है?

वही व्यक्ति जिसे सत्य व् असत्य का विवेक व् ज्ञान है. प्रश्न उठेगा के सत्य क्या है व् असत्य क्या है ?
जो जो दृश्य आँखों से दीखते हैं वो असत्य है !
वह जो हमारा आंतरिक स्वरूप व् अंतकरण में स्थित सत्ता देख रही है, वह ही सत्य है!

अब बाहरी दृश्य देखने वाला मन पूछेगा ये कैसे हो सकता है ये जो दिख रहा है - ये सत्य क्यों नहीं है? ये सत्य नहीं है, ये केवल दृश्य जगत का आभास है, प्रकृति है, जड़वत माया है; जो भौतिक, रासायनिक पदार्थो व् तत्वों का सम्मोहन मात्र है - इसे केवल एक अर्ध मूर्ख, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मूर्ख, ही सत्य कहेगा. जो आपको इस प्रकृति के दृश्यों को सच बताता हो, उसका आदर सत्कार करना पर उसकी बात को स्वीकार न करें.
सत्ता जो इस प्रकृति व् तत्वों के माया जाल को चलाती है, केवल वह ही सत्य देख पाती है.
तो उस सत्य को पहले देखना होगा, जब तक आप उस सत्य को न देख पाएं, आपको सब सच पता है इस अहंकार में पड़े रहने से आप अपने को सिद्ध न कर पाओगे।
ये सत्य नहीं है जो दिख रहा है.
जो घटित हो रहा है, और घटित करने वाली सत्ता ही सत्य है और जो कर्म व् परिवर्तन कर रही है वह ही सत्य है. जब तक आप उस सत्ता में स्थापित न होंगे, सत्य को देख पाने की बाते करना मूर्खता नहीं तो क्या है?
तो ये जो लोग अपने को सत्य - सच देखता बता रहें हैं उनमे और जड़वत वृक्ष, या ऊँठ, बैल या चिड़िया में कोई अधिक अंतर नहीं है.

अब आते हैं असत्य पर। असत्य क्या है? यहाँ तक यदि आपका चित "मेरे" साथ है तो असत्य को झूठ, फरेब; एक मूर्ख शरीर या जीवन की समझ न रखने वाले, "चिंतक" विचारक की दृष्टि से सांसारिक सच समझने वाले इस संसार के मूर्खो का सत्य है। बोलो स्वामी मूर्खानंद की जय. बोलो झूठे भगवन, ईश्वर, खुदा व् गॉड को बेचने वाले दुकानदारो की जय.

यह संसार जो हमारे आसपास घटित हो रहा है, ये जो आज हमें लग रहा है के कुछ चल रहा है या कुछ "हो" रहा है, परिवर्तनशील समय है जो मनुष्य के समय को नापने का एक उपकरण मात्र है, चित या चेतक सत्ताओ का कार्य शील मंच है, जो लगता है के जैसे वो हम हैं. ये कार्य शील कार्य रत्त चेतन या अचेतन इस प्रकृति में विचरण करते आत्मा हैं जो अपने पूर्व कर्मो के अनुसार, अपने उपयुक्त समय के अंश में, अपने निर्णय ले कर, जो करते हैं पर हमें ऐसा प्रतीत मात्र होता है के हम कर रहें हैं, ही असत्य है.
तो असत्य हमें दीखता है जिसे हम अपने द्वारा निर्मित या कार्यान्वित सत्य समझते हैं वह ही सत्य जैसा माया है, 'हमारी' स्थिति एक मकड़ी जैसी है जो लगातार जाल बुन रही है, यह जाल जितना अधिक गहरा और जटिल होगा, उतना ही जटिल उसमे से निकलना होगा।
हमें भूलना नहीं चाहियें के इस जीवन का उद्देश्य मूर्खतापूर्वक अपने को या किसी को भी किसी जाल में बुनना या फंसाना नहीं है अपितु इस बहुमूल्य जीवन रूपी विचरण व् अवस्था को अपने आप को जानने में लगाना है और सब जानकार अपने अंतर चित को ध्यान लगा कर अपने पूर्व कर्मो का समाधान ढूंढकर उनका प्रायश्चित करना है ताकि हम उन पूर्व कर्मो को, अच्छे या बुरे, अपने आत्मा के केंद्र से एक एक कर दूर करते रहें.

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3>मन की एकाग्रता व् ध्यान?

चित्त को एकाग्र करके किसी एक वस्तु पर केन्द्रित कर देना ध्यान कहलाता है। ध्यान एक क्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने मन को चेतना की एक विशेष अवस्था में लाने का प्रयत्न करता है। ध्यान का उद्देश्य कोई लाभ प्राप्त करना हो सकता है या ध्यान करना अपने-आप में एक लक्ष्य हो सकता है। 'ध्यान' से अनेकों प्रकार की क्रियाओं का बोध होता है। इसमें मन को विशान्ति देने की सरल तकनीक से लेकर आन्तरिक ऊर्जा या जीवन-शक्ति, प्राण का निर्माण तथा करुणा, प्रेम, धैर्य, उदारता, क्षमा आदि गुणों का विकास आदि सब समाहित हैं।
ध्यान की अवस्था में ध्यान करने वाला अपने आसपास के वातावरण को तथा स्वयं को भी भूल जाता है। ध्यान करने से आत्मिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास होता है। जिस वस्तु को चित मे बांधा जाता है उस मे इस प्रकार से लगा दें कि बाह्य प्रभाव होने पर भी वह वहाँ से अन्यत्र न हट सके, उसे ध्यान कहते है।
ध्यान से हमे अपने जीवन का उद्देश्य समझने में सहायता मिलती है। इसी तरह किसी कार्य का उद्देश्य एवं महत्ता का सही ज्ञान हो पाता है।
मन की यही प्रकृति है कि वह छोटी-छोटी अर्थहीन बातों को बडा करके गंभीर समस्यायों के रूप में बदल देता है। ध्यान से अर्थहीन बातों की समझ बढ जाती है; हम उनकी चिन्ता करना छोड देते हैं; सदा बडी तस्वीर देखने के अभ्यस्त हो जाते हैं।
मन शान्त होने पर उत्पादक शक्ति बढती है; शरीर की रोग-प्रतिरोधी शक्ति में वृद्धि, रक्तचाप में कमी, तनाव में कमी, स्मृति-क्षय में कमी (स्मरण शक्ति में वृद्धि), वृद्ध होने की गति में कमी जैसे लाभ होते हैं।

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4>प्रत्येक आत्मा का अंश अव्यक्त ब्रह्म है।

बाह्य एवं अन्तःप्रकृति को वशीभूत कर आत्मा के इस ब्रह्म भाव को व्यक्त करना ही जीवन का चरम लक्ष्य है

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5>क्या आप भी जाल में फंसी मकड़ी जैसे तो नहीं?

क्या आप भी जाल में फंसी मकड़ी जैसे तो नहीं? एक महत्वपूर्ण सूचना आपके भविष्य के लिए ?

भारत में १९९० तक सामाजिक आर्थिक व्यवस्था में उपभोग पर इतना जोर नहीं दिया जाता था क्यूंकि लोगो में अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करने में ही अधिक समय लगता था. १९९१ के बाद भारत के लोगो को उपभोक्ता बनाने के लिए प्रयास शुरू हुए और अगर आप ध्यान लगाए तो देखेंगे के जो आदमी या परिवार उपभोग के चक्करव्यूह में एक बार फंसगया उसकी स्थिति जाल में फंसी मकड़ी जैसी हो जाती है।
आज भारत के ४० % लोग पूर्ण रूप से उपभोक्ता बन चुके हैं. रेडियो,टीवी व् छपा मीडिया व् झूट और अफवाहों द्वारा एक चित्र बनाया जाता है जिसमे आपको कुछ लुभावने दृश्य दिखाए जाते हैं के कैसे आपका जीवन एक मनोरम व् सुंदर आरामदायक स्वर्ग बन जायेगा, लेकिन याद रखें की हर चीज़, वस्तु व् सेवा का उपभोग अगर एक छोटी ख़ुशी देने का वायदा करता है , उसके बदले में वो ३ या ५ गुना दुःख भी देकर जाएगा।
यह याद रखे और प्रयास करें व् एक सूची तैयार करें और देखें के ८६% उपभोग के सामान व् सेवाएं आपको कभी भी कोई सुख नहीं दे पायीं बल्कि उनसे दुःख अधिक मिला है. ये छोटे छोटे सुख या "मजा" जो विज्ञापन प्रेरित करते हैं , ये केवल शरीर तक ही सीमित हैं
और इनसे कभी कोई "आनंद" प्राप्त नहीं होगा. यद्यपि आरम्भ में लगेगा के बहुत सुख और "मजा" आया लेकिन उसके पीछे छिपे दुःख आप कभी देख नहीं पाते। यदि आप चिरस्थायी अनंत आनंद को चाहते हैं तो आज से अपने को भोक्ता, उपभोक्ता व् चक्करव्यूह में फंसी मकड़ी बनाने की अपेक्षा, अपने को इन उपभोग के संसाधनो से दूर रखने की चेष्टा करें; आप देखेंगे के आपके जीवन की ८६% मुसीबते, दुःख व् गन्दी आदतो की समाप्ति होनी आरम्भ होगी.
भारत के लोगो को जिन झूठे सपनो को दिखाकर कुछ मक्कार व् चालाक लोग अपने आप को कुबेर बनाने में लगे हैं और ये पूरा तंत्र व् "सिस्टम" केवल आपको गुलाम, दास बनाकर आपसे जीवन भर कोल्हू के बैल, जिसके गले में फंदा डालकर १२ घंटे कोल्हू के चक्के को उठाकर, एक छोटे दायरे या परिधि में घुमा कर काम करवाया जाता था, की तरह काम लिया जायेगा. कृपया इस विषय पर विचार करे.
इन झूठे, चमकते लोगों, विज्ञापनों, टीवी के कार्यक्रमों व् कहानिओं को सच ना समझें, ये सब हमें भ्रमित कर हमें अपने चंगुल में फंसाने के उपाय हैं जो चालाक और पापी प्रवृति के लोगो द्वारा कल युग की अति माया वादी संस्कृति का तामसिक जाल हैं. कृपा कर इस पुरे प्रकरण को अपने जीवन का भाग नहीं बनाएं। इन सब संसाधनो व् व्यवस्था के ताने बाने में आपको कभी कोई संतोष या आनंद प्राप्त नहीं होगा.
आज से इस बात पर मनन करें के क्या आप एक उपभोक्ता बन चुके हैं या बनने की श्रेणी में हैं या आप इस पर पहले से ही प्रश्न कर रहे थे.
मैंने इस संसार के कई चक्कर लगाए, निर्धन से "अति विकसित" देशो व् समाजो को बहुत पास से देखा और मुझे आज तक कोई उपभोग में रचा बसा समाज खुश नहीं दिखा। भारत एक अति विकसित व् स्वयं निर्भर समाज था और इसे उपभोक्ता बनाकर जो जाल बुना जा रहा है
उसका अंत बहुत बुरा होगा। आज जो अपने को विकसित व् बहुत उन्नत हैं उन समाजो की दरिद्रता केवल एक अंतर्मन से जाग्रत आत्मा ही देख
सकता है. आज जितने भी महा विकसित कहे जाने वाले देश हैं वह कर्जे में दबे, बीमारियो के शिकार, अति दुखी उपभोक्ता हैं जहाँ ख़ुशी को भौतिक सामान व् वस्तुओं में तलाशने के प्रयास किये जाते हैं, परन्तु वहां अँधेरे, नाकामी, अवसाद, निराशा व् शक्तिहीनता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिलता।
अपने को इस माया जाल से मुक्त करें.
अपने शरीर को उपभोग व् भोग की वस्तुओं से छुटकारा दिलाएं और ऐसा करने पर आत्मा तक पहुँचने का रास्ता आसान होगा.
कृपया सोचें, अपने मित्रो व् प्रिय लोगो को इस सन्देश को पहुंचाए और अपने को इस मायावादी राक्षस भौतिकवाद निर्मित उपभोग संस्कृति
से मुक्त करें.

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6>जीवन की सबसे कीमती व् बहुमूल्य वस्तु क्या है ?

हमारे वर्तमान जीवन की एकमात्र संपत्ति समय है जिसे उतना ही पकड़ा जा सकता है जितना अपने हाथों में मुट्ठी भर पानी पकड़ सकते हैं.

अपने समय का दुरुपयोग न करें नहीं तो समय हमसे दुर्व्यवहार व् हमारा ही दुरूपयोग करेगा।

हो सकता है जो समय हम उपयोग में नहीं ला रहे वह समय का भाग शायद दोबारा वहां हो ही नहीं; जब हमें उसकी सख्त आवश्यकता पड़ेगी।
ये जो समय "हमारा" है ये हमारे हाथ में सदैव नहीं रहने वाला न ये कोई कीमती धातु या पत्थर की भांति किसी तिजोरी में बंद कर के रखा सकता है के चलो आज तो हम इसे रख दें या गवां दे, कल इसे फिर से प्रयोग में लाएंगे.. कल जो आने वाला है उसमे यह समय की पूँजी जो आज हाथ में है वहां नहीं होगी.
ये पूंजी केवल दिन में अर्थात आज के दिन में सिर्फ एक बार ही मिलेगी. ये जो आज है न ये बड़ा बेशकीमती है ये जमाने व् दुनिया भर की दौलत भी नहीं खरीद पायेगी। इसकी कीमत व् मूल्य सिर्फ वह ही जान सकता है जिसने सिर्फ कुछ मिनटों या घंटो के कारण अपना बहुत या सब कुछ खो दिया हो. इससे ज्यादा कीमती व् बहुमूल्य वस्तु आप के हाथ कभी नहीं आ सकती।
आज जो प्रेम अपने अंदर है आज जो सोच, विचार व् अच्छा अवसर हमारे मन या हाथ में है कल वो वहां नहीं मिलने वाला।
इसलिए उठो अपनी एकमात्र मूल्यवान परिसंपत्ति का मूल्य जानो व् इसकी कीमत का आकलन करना सीखो। जिसका पूर्णअधिकार अभी अपने हाथ में है
ये जो पैसा रुपया, कीमती चीज़े या आदमी की बनाये वस्तुएं हैं ये तो कभी भी खरीदी जा सकती हैं और सदैव कहीं न कहीं से प्राप्त हो जाएंगी पर मूल्यवान समय कहीं नहीं मिलेगा किसी भी कीमत पर.
मात्र सस्ते या महंगे मनोरंजन, बेकार गतिविधियों, चीजों के संग्रह, या कब्जे या अस्थायी सपनों का या किसी सुन्दर सूरत का पीछा करते हुए इस जीवन के कीमती मोती बरबाद मत करो। यह सब जल पर बहते अस्थायी बुलबुले हैं.
इस जीवन को और इस आज के इस पल व् टाइम, वक़्त या समय को जीवन को देखने व् समझने के लिए एक अवसर के रूप में देखें अब तक की गलत या अवांछनीय शिक्षाओं को अपने अंतर्मन से निकाले कर फेंके, जो गुजर चुका , अच्छा या बुरा उसे भुला दें, और फिर ध्यान देते हैं अंतर्मन के ध्यान पर जिसका वास्तविक लक्ष्य जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के लिए नजर डालना हैं। आत्मा का ज्ञान ही असली ज्ञान है. शेष जो भी है वो यूँ ही गुजर जाएगा जिसका कोई वास्तविक मूल्य न रहेगा, पर आत्मिक ज्ञान प्राप्त होने पर जीवन में एक खजाना मिलेगा जो आपकी स्थायी पूंजी व् निधि होगी जो कभी
कोई भी न चुरा सकेगा न मिटा सकेगा. अगर आप अपने जीवन में सम्पूर्ण बदलाव लाने के लिए उत्सुक हों तो मेरे साथ विचार व् मनन करें और धीरे धीरे आपको एक ज्योति दिखने लगेगी जो अंतकरण की यात्रा करते हुए ब्रह्म ज्ञान तक भी ले जा सकती है.
इस आध्यात्मिक प्रक्रिया को करने से आप अपने सारे लक्ष्य सिद्ध कर सकते हैं और अपने और अपने आसपास के वातावरण को अर्थपूर्ण बना सकते हैं.

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