Friday, February 19, 2016

17>संसारसमस्यानहीं+अंतकरणकीज्योतिकोदेखाजासकता+चमत्कार व् तपकाभेद+गुरुअंतरमें

17=आ =Post=17>***संसारसमस्यानहीं***( 1 to 4 )

1------------------------ संसार समस्या नहीं है
2-------------------------क्या अंतकरण की ज्योति को देखा जा सकता है ?
3-------------------------चमत्कार व् तप का भेद
4-------------------------गुरु हमारे ही अंतर में है
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1> संसार समस्या नहीं है

संसार समस्या नहीं है वह तो प्रकृति है जो माया जाल है समस्या केवल उसमे रहने वाले जीव की है जो हम हैं शरीर या शरीर के पर यानि अशरीर किसी भी स्थिति में हमें ही इस पहेली को समझना है और उसका हल भी
हमारे ही अपने अंदर है यदि आप कुछ सन्देश और पढ़े तो आपको इस प्रश्न का उत्तर मिलेगा - ऐसी मेरी आशा और प्रार्थना है
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2>क्या अंतकरण की ज्योति को देखा जा सकता है ?

ज्योत व् उसका प्रकाश ध्यान लगाने पर केवल अंतर्मन ही "देख" सकता है.

एक स्थिति ऐसी होती है जहाँ अंतर्मन ही कार्यरत होता है उस स्थिति में प्रकाशित ज्योति केवल अंतकरण के चक्षु ही देख सकते हैं. ज्योति अपने ही प्रकाश में इतनी प्रज्जवलित होती है के उसे देखने के लिए बाह्र्य आँखे काम नहीं करतीं।

प्रश्न ये नहीं के ज्योत दिखे या नहीं, क्यूंकि एक दिन अपने आप उसे अनुभूत कर सकते हैं, और कुछ अवस्थाओं में बाह्र्य संसार या अस्थायी माया अंधकार सा लगने लगता है. इस स्थिति में आप शून्यस्थ होते हैं पर शुद्धतम अवस्था केवल तभी सम्भव है जब मन में छिपी या रहने वाली मलिनता सम्पूर्ण रूप से स्वच्छ हो.

ध्यान कैसे लगाएं और इसके बाद क्या होता है?
ध्यान व् एकाग्रता के स्थायित्व होने पर क्या होता है, क्या परिवर्तन आते हैं हमारे जीवन में, इसका वर्णन अगले लेख में. ध्यान की प्रक्रिया और उसमें कैसे स्थापति हों इसकी पूर्ण व्याख्या दो तीन लेखो में होगी. कृपया प्रतीक्षा करें.
स्मरण रहे के ध्यान लगाने से पहले कुछ विशेष परिवर्तन अनिवार्य नहीं तो आवश्यक हैं जिनकी जानकारी कुछ दिनों में चर्चा करेंगे.
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3>चमत्कार व् तप का भेद

चमत्कारों की इस युग की कसौटी यह है कि कौन व्यक्ति , वस्तु या घटना किस हद तक सदुद्देश्यपूर्ण, मानवता की सेवा करने वाली एवं धर्म मर्यादा के अनुकूल है। पिछले समय में साधु महात्माओं के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार की मान्यता जन साधारण में रही है कि जो जितना पहुँचा हुआ फकीर-सिद्ध, महात्मा होगा, वह उतना ही चमत्कार दिखला सकेगा। इस गलत कसौटी के कारण अनेक सत्पुरुष, जो अपनी सत्य निष्ठा पर कायम रहे, जनता में सम्मान प्राप्त न कर सके और न किसी पर अपना प्रभाव जमा सके। इस असफलता से खिन्न होकर कई सत्पुरुषों ने मौन स्वीकृति से अपने चमत्कार होने की बात स्वीकार कर ली, और अनेक अपने भक्तों द्वारा गुण गाथा गाये जाने से सिद्ध बन गये, कुछ ने तो जान बूझकर इस प्रकार का आडम्बर स्वयं बना लिया। धूर्तों की इस अज्ञानान्धकार में खूब बन आई। आज भी अनेक साधु और महात्मा नामधारी ऐसे ही अड्डे जगह-जगह लगाये बैठे हैं।
सौभाग्यवश यह अज्ञानान्धकार का युग अब धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है और महापुरुषों की महानता का मूल्याँकन दूसरी कसौटी पर किया जाने लगा है। चमत्कारों की पुरानी, खोटी कसौटी पर तो केवल अज्ञान और धूर्तता की वृद्धि होना ही संभव है।

तप एक विज्ञान है और प्रत्येक विज्ञान एक शक्ति उत्पन्न करता है। कोई भी साधारण साधक या विशेष तपस्वी यदि साधना करता है, तो निश्चित है कि उसे अपने परिश्रम के अनुकूल आत्मबल प्राप्त होगा। जिस प्रकार बुद्धिबल, बाहुबल, धनबल, संगठनबल, पुण्यबल आदि बलों के द्वारा अनेक प्रकार की सफलताएं और परास्त और समृद्धि को वरण किया जा सकता है, उसी प्रकार तप द्वारा उत्पन्न आत्मबल के बदले में भी भौतिक एवं आध्यात्मिक समृद्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। जप, अनुष्ठान, यज्ञ, दान आदि का यही रहस्य है। तप-साधना का विज्ञान यही है कि कोई मनुष्य चाहे तो स्वयं परिश्रम करके तप-शक्ति एकत्रित करे, या कोई तपस्वी किसी के दुख पर द्रवित होकर अपना पुण्यफल उसे दान करके सुखी बना दे। बस इतनी ही तप-शक्ति की मर्यादा है।

जो व्यक्ति लोगों को आश्चर्य में डालने वाली करामातें दिखाते हैं वे या तो धूर्त या मूर्ख होते हैं। एक दो करामात दिखाने में ही वर्षों की संचित तपस्या व्यय हो जाती है। केवल बाजीगर जैसा कौतुक करने में कोई बुद्धिमान व्यक्ति अपनी तपस्या के फल को निरर्थक नष्ट करेगा यह बात समझ में नहीं आती। यदि कोई करता है तो उसे अवश्य महामूर्ख समझा जायगा। अन्यथा ऐसे व्यक्ति में धूर्तता का छिपा होना निश्चित है। इस प्रकार की अगणित घटनाओं का भंडाफोड़ होते रहने के कारण जनता अब बहुत सतर्क हो गई है और उसने अपने महानता नापने के गज को ठीक कर लिया है। अब जनता उन व्यक्तियों तथा कार्यों में महानता का दर्शन करना चाहती है जिनमें स्वार्थत्याग, आत्मसंयम, परोपकार, लोकहित का कुछ अंश पाया जाता है

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4> गुरु हमारे ही अंतर में है

i गुरु हमारे ही अंतर में है जो इस शरीर व् मन को चलाने वाला है. हम उस "सुप्त" गुरु को कैसे
आवेदन करें के वह हमारा मार्ग दर्शन करे - उसी क्रिया को क्रियान्वित करने के लिए यह पृष्ठ प्रकाशित किया गया है. गुरु जरुरी नहीं के आपके सामने ही हो या पुस्तको के माध्यम से आपके पास आये. जब आप जाग्रत होने की इच्छा रखेंगे गुरु जाग्रत होगा और आपके सम्मुख होगा.

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2 comments:

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